कोरोना महामारी के बीच आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रही मोदी सरकार के सामने अब महँगाई बेकाबू होने का संकट है। मई में थोक महंगाई दर रिकॉर्ड 12.94 फ़ीसदी पर पहुँच गई है। इसका साफ़ मतलब यह है कि थोक में सामान महंगा होने पर ख़ुदरा में लोगों पर इसका बोझ पड़ेगा और सामान खरीदना आम लोगों के लिए पहुँच से बाहर होता जाएगा। इसका खामियाजा आख़िरकार राजनीतिक तौर पर मोदी सरकार को भी भुगतना पड़ेगा।
थोक महंगाई बढ़ने का कारण मुख्य तौर पर कच्चे तेल और निर्मित सामानों के दाम में बढ़ोतरी है। वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, ‘मासिक डब्ल्यूपीआई पर आधारित मुद्रास्फीति की वार्षिक दर मई 2021 में पिछले साल मई के मुक़ाबले बढ़कर 12.94 प्रतिशत हो गई। यह दर मई 2020 में ऋणात्मक 3.37 प्रतिशत थी।'
यह लगातार पाँचवाँ महीना है जब महंगाई लगातार बढ़ती गई है। अप्रैल महीने में थोक महंगाई यानी मुद्रास्फीति 10.49 फ़ीसदी थी।
मई महीने में ईंधन और बिजली की मुद्रास्फीति सबसे ज़्यादा बढ़ी है और यह बढ़कर 37.61 प्रतिशत हो गई है। यह एक महीने पहले अप्रैल में 20.94 प्रतिशत थी। विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति मई में 10.83 प्रतिशत रही, जो पिछले महीने 9.01 प्रतिशत थी।
कच्चे तेल के दाम में 102.51 फ़ीसदी और पेट्रोल के दाम में 62.28 फ़ीसदी, डीजल में 66.3 फ़ीसदी और सब्जियों के दाम में 51.71 फ़ीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई है। दालों की क़ीमतें 12.09 फ़ीसदी, प्याज की 23.24 फ़ीसदी, फलों की 20.17, तिलहन की क़ीमतों में 35.94 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
बता दें कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें तो सेंचुरी लगा भी चुकी हैं। बंगाल चुनाव ख़त्म होने के बाद से यानी चार मई से बीते शनिवार तक इनके दाम बाइस बार बढ़ चुके हैं। मगर पेट्रोल डीज़ल के चक्कर में खाने के तेल के भाव पर ख़ास बातचीत नहीं हो रही है। जबकि उसके भाव में भी कम आग नहीं लगी हुई है। पिछले कुछ महीनों में तो इन तेलों की महंगाई बहुत तेज़ हुई है। सरसों के तेल ने तो डबल सेंचुरी मार दी।
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ मूंगफली का तेल बीस परसेंट, सरसों का तेल चवालीस परसेंट से ज्यादा, वनस्पति क़रीब पैंतालीस परसेंट, सोया तेल क़रीब तिरपन परसेंट, सूरजमुखी का तेल छप्पन परसेंट और पाम ऑयल क़रीब साढ़े चौवन परसेंट महंगा हुआ।
ये आँकड़े 28 मई 2020 से 28 मई 2021 के बीच का हाल बताते हैं।
थोक महंगाई बढ़ना सरकार के लिए चिंता की बड़ी वजह होगा। ऐसा इसलिए कि महंगाई दर ख़तरे के निशान को पार कर गई है।
महंगाई को काबू में रखने के लिए ही रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया यानी आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में अपनी मौद्रिक नीति में ब्याज दरों को रिकॉर्ड निचले स्तर पर बरकरार रखा है। लेकिन थोक महंगाई के बढ़ने से ख़ुदरा महंगाई के बढ़ने के भी आसार हैं। आरबीआई ने इस वित्त वर्ष के लिए खुदरा महंगाई को 5.1 फ़ीसदी से कम रखना तय किया है। खुदरा महंगाई दर पिछले साल दिसंबर महीने में ही सात फ़ीसदी से ज़्यादा हो गई थी।
इसका साफ़ मतलब है कि महँगाई दर ख़तरे के निशान को पहले ही पार कर गई है और यह लगातार बढ़ती ही जा रही है।