चुनावों में अपने मुताबिक़ मुद्दे तय करने में माहिर बीजेपी पश्चिम बंगाल में लगता है कि तृणमूल द्वारा तय मुद्दे में फँसती दिख रही है। 'भगवान राम और दुर्गा' विवाद के बहाने बाहरी और बंगाली का मुद्दा ख़ड़ा होता दिख रहा है। ऐसा इसलिए कि बीजेपी के ख़िलाफ़ जिस धारणा को तृणमूल ने बनाया उस पर बीजेपी के नेता सफ़ाई देते फिर रहे हैं। बंगाल बीजेपी अध्यक्ष से लेकर पार्टी के कद्दावर नेता अमित शाह तक। आख़िर ममता बनर्जी की पार्टी ऐसा कैसे कर पाई?
तृणमूल ने लगता है कि ऐसा बीजेपी के पैंतरे से ही किया। समझा जाता है कि बीजेपी विरोधी दलों के नेताओं के उन कमज़ोर बयानों को उठाती है जिससे मुद्दे सेट किये जा सकें और फिर लगाताार उसी के ईर्द-गिर्द चुनावी अभियान तय करती है। लगता है अब तृणमूल बीजेपी का यह पैंतरा उसी पर आजमा रही है।
तृणमूल ने इसके लिए निशाना बनाया पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के बयान को जिसमें उन्होंने भगवान दुर्गा और राम की तुलना की थी। 12 फरवरी को कोलकाता में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में घोष ने कहा था, 'ऐसी पार्टियाँ (टीएमसी) राजनीति के बजाय धर्म की बात करती हैं, और धर्म के बजाय राजनीति की। हम राजनीति खुलेआम करते हैं। भगवान राम एक राजा थे। कुछ लोग सोचते हैं कि वह एक अवतार थे। 14 पीढ़ियों के उनके वंश का पता लगाया जा सकता है। क्या कोई दुर्गा का वंश खोज सकता है? राम को एक आदर्श व्यक्ति और प्रशासक माना जाता है।' उन्होंने आगे कहा था, 'हमारे पास एक बंगला रामायण है। गांधीजी ने हमें रामराज्य की कल्पना दी थी। मुझे नहीं पता कि दुर्गा कहाँ से आई है। रावण को नष्ट करने के लिए उन्होंने दुर्गा से प्रार्थना की। इसलिए यह एक और मामला है। मैं यह नहीं समझता कि आप दुर्गा को राम के ख़िलाफ़ कैसे खड़ा कर सकते हैं। इन लोगों ने सिखाया है कि राम बंगाल में देवता नहीं हैं और मुझे नहीं पता कि यह अवधारणा कहाँ से आई है।'
राम को एक 'राजनीतिक आइकन' और 'आदर्श व्यक्ति' बताए जाने के बीच 'दुर्गा कहाँ से आ गई' वाले बयान को तृणमूल ने पकड़ लिया। इसने कहा कि बीजेपी ने दुर्गा का अपमान किया है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में अपने सिर मुड़ा लिए।
बता दें कि दुर्गा पश्चिम बंगाल की वह धार्मिक आइकॉन हैं और वह एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं। यही वजह है कि दुर्गापूजा धार्मिक कम और सांस्कृतिक उत्सव अधिक है, जिसमें सभी संप्रदायों के लोग शिरकत करते हैं, मुसलमान भी और ईसाई भी।
और इसीलिए तृणमूल ने इसको मुद्दा बना दिया।
तृणमूल कांग्रेस के नेता अब दिलीप घोष के बयान को आम लोगों तक पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
कहा जा रहा है कि पार्टी घोष के बयान को लोगों तक ले जाने के लिए तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाली है। तृणमूल नेताओं का मक़सद लोगों को यह बताना होगा कि 'बीजेपी ने दुर्गा का अपमान किया' है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, एक वरिष्ठ नेता ने कहा है, 'अब इसे बढ़ाना होगा। कई स्थानों पर पार्टी कार्यकर्ता यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि घोष ने जो कहा उसे लोग सुनें। यदि आप बारीकी से सुनते हैं तो दो बार वह दुर्गा का ज़िक्र करते हैं। एक बार जब वे कहते हैं कि राम की वंशावली 14 पीढ़ियों तक दर्ज की जा सकती है, जबकि दुर्गा की नहीं। एक अन्य सवाल पर उन्होंने कहा कि दुर्गा इस बातचीत में कहाँ से आई हैं।'
तृणमूल नेताओं ने दिलीप घोष के बयान को बंगाली बनाम बाहरी से भी जोड़ दिया है। तृणमूल ने जो नया नारा- 'बंगला निजेर मयेके छै' यानी 'बंगाल अपनी ही बेटी चाहता है' दिया है उसमें भी यही मुद्दा सेट करना मक़सद है कि विरोधी दल बाहरी लोगों को सत्ता सौंपना चाहता है।
यह मामला कितना बड़ा है यह इससे भी समझा जा सकता है कि तृणमूल के इस अभियान पर बीजेपी सफ़ाई जारी कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को ही कहा है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बाहरी व्यक्ति नहीं होगा।
उन्होंने कहा है कि टीएमसी ने बंगाल में बाहरी लोगों के बारे में एक ग़लत अभियान शुरू किया है। क्या ममता बनर्जी बंगाल को ऐसा बनाने की कोशिश कर रही हैं, जहाँ देश के किसी भी हिस्से से कोई नहीं आ सकता है? उन्होंने कहा, 'मैंने 25 बार कहा है कि अगला मुख्यमंत्री बंगाल की मिट्टी का ही होगा। अगर ममता बनर्जी बाहरी मुद्दे पर लोगों को विभाजित करने की कोशिश करती हैं तो मुझे कहना होगा कि वह बंगालियों को नहीं जानती हैं। हमारी पार्टी के संसदीय बोर्ड ने अभी तक मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तय नहीं किया है।'
दिलीप घोष ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'अब कौन अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए दुर्गा का उपयोग कर रहा है? एक पार्टी जिसने सरस्वती पूजा पर प्रतिबंध लगाया। वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और हीन भावना का मुद्दा है। वे अपने पिछले पापों को राजनीतिक रूप से देवी दुर्गा का इस्तेमाल कर धोने की कोशिश कर रहे हैं। दुर्गा हमारे लिए एक आध्यात्मिक और धार्मिक प्रतीक हैं। हम पूजा करते हैं लेकिन राम हमारे लिए एक राजनीतिक प्रतीक हैं। बीजेपी राम राज्य की बात करती है और यह हमारा अंतिम उद्देश्य भी है। टीएमसी की न कोई विचारधारा है और न ही आइकॉन। इसलिए वे इस तरह के मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं।'