अश्विन को लेकर कोहली का रवैया निरंकुशता की मिसाल!

02:12 pm Sep 03, 2021 | विमल कुमार

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि टीम इंडिया के महानतम टेस्ट खिलाड़ियों में से एक रविचंद्रण अश्विन को किसी विदेशी टेस्ट मैच के लिए प्लेइंग इलेवन में शामिल नहीं किया गया हो। लेकिन, यह ज़रूर पहली बार हुआ है जब उन्हें 1 या 2 नहीं बल्कि लगातार 4 मैचों के लिए नज़रअंदाज़ किया गया हो, ख़ासकर तब टीम सीरीज़ में संघर्ष करती हुई दिख रही है।

ओवल टेस्ट से पहले आम क्रिकेट फैन और दुनिया के हर एक्सपर्ट अगर किसी एक बात पर सहमत दिखाई दे रहे थे तो वो यह कि अश्विन को हर हाल में ओवल टेस्ट में खेलना चाहिए था। लेकिन, जब कोहली टॉस के लिए आये और अपनी टीम का खुलासा किया तो हर कोई भौंचक्का रह गया। इसे कुछ कोहली समर्थक दिलेर और बहादुरी वाला फ़ैसला भी कह सकते हैं, कुछ यह भी तर्क देंगे कि चूँकि ओवल की पिच में घास काफी थी इसलिए कोहली का 4 तेज़ गेंदबाज़ों के साथ उतरना इस सीरीज़ में उनके गेंदबाज़ी टैमप्लेट को बरकरार रखना था। 

‘ये कोहली की सिर्फ़ ज़िद है’

लेकिन, इंग्लैंड के पूर्व टेस्ट कप्तान और मौजूदा समय के एक बेहद सम्मानित नाम नासिर हुसैन ने स्काई स्पोर्ट्स पर कमेंट्री के दौरान दो-टूक में कह दिया कि ये कोहली की सिर्फ ज़िद है।

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व दिग्गज शेन वार्न जो हुसैन के साथ कामेंट्री कर रहे थे उन्होंने तपाक से कहा- ‘ज़िद, जी हां बहुत ही अच्छे शब्द का प्रयोग नासिर ने किया है कोहली के लिए। मेरे ख्याल से वाक़ई में ये ज़िद ही है। अगर आप इंग्लैंड और भारत की तुलना करें तो निश्चित तौर पर मैं अश्विन को शामिल करता। यहाँ ओवल में गेंद घूमेगी और आप टीम का चयन सिर्फ़ एक पारी में क्या हो सकता है, ये सोचकर नहीं करते हैं।’ 

सच तो ये है कि हुसैन ने टेस्ट शुरू होने के पहले ही अपने कॉलम में यह लिख डाला था कि- ‘दुनिया के नंबर 2 स्पिनर अश्विन को हेडिंग्ले में खेलना चाहिए था और अब ओवल में तो खेलना ही होगा क्योंकि इंग्लैंड के पास 5 बायें हाथ के बल्लेबाज़ हैं।’

मतलब कुछ भी कह दो!

लेकिन, कोहली ने तो अजीबोगरीब तर्क देकर बायें हाथ के बल्लेबाज़ों के ख़िलाफ़ अश्विन के मुक़ाबले जडेजा को बेहतर विकल्प बता डाला। मतलब कि कुछ भी कह दो! 

कोहली शायद भूल गये कि टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सिर्फ़ अश्विन इकलौते ऐसे गेंदबाज़ हैं जिन्होंने 200 से ज़्यादा बायें हाथ के बल्लेबाज़ों को चलता किया है।

इतना ही नहीं, इंग्लैंड के कप्तान जो रुट को उन्होंने 5 मौक़े पर आउट किया है जो अभी तक सीरीज़ में टीम इंडिया के लिए सबसे बड़ी मुश्किल साबित हुए हैं। फिर भी कप्तान अश्विन की दावेदारी को खारिज़ कर रहें हैं?

जडेजा को बेहतर दिखाने की ज़िद!

पहले दिन का खेल ख़त्म होने के बाद टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज़ संजय मांजेरेकर ने साफ़ कहा कि अंजिक्य रहाणे और ऋषभ पंत से पहले जडेजा को ब्ललेबाज़ी के लिए ऊपर भेजना कोहली की ही ज़िद का नतीजा रहा जिसमें वो हर हाल में ये साबित करना चाहते थे कि जडेजा इतने तगड़े बल्लेबाज़ हैं। लेकिन, अब तक सीरीज़ में बल्लेबाज़ के तौर पर झंडा नहीं गाड़ने वाले जडेजा ओवल टेस्ट की पहली पारी में भी नाकाम ही हुए। 

फ़ोटो साभार: ट्विटर/जडेजा

जडेजा को हर हाल में इलेवन में शामिल करने के लिए कोहली अक्सर यह तर्क दे देते हैं कि इससे बायें हाथ से बल्लेबाज़ के तौर पर विविधता मिलती है और साथ ही वो अश्विन से बेहतर बल्लेबाज भी हैं। लेकिन क्या इस तर्क के ज़रिये देश के सबसे बड़े मैच-विनर को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए।

जिस खिलाड़ी ने भारत के लिए सबसे ज़्यादा मैन ऑफ़ द सीरीज का खिताब जीता हो (सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, कपिल देव, सुनील गावस्कर और कोहली जैसे दिग्गजों को पछाड़कर) उसे कितनी बेरुख़ी से बाहर कर दिया जाता है। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सीरीज़ से पहले टीम इंडिया के चयन को लेकर हर किसी के ज़ेहन में अक्सर यही सवाल होता था कि अगर टेस्ट मैच के लिए सिर्फ़ एक स्पिनर की जगह बने तो अश्विन और जडेजा में किस को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 

इंग्लैंड के डेविड गावर जैसे पूर्व कप्तान ने इस लेखक को कहा था,

अश्विन का टीम में होने का मतलब है एक ख़ास खिलाड़ी का होना’ और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान रमीज राजा ने भी बिना किसी हिचकिचाहट के कहा कि ‘जडेजा को टेस्ट में तो मैं सिर्फ ऑलराउंडर मानता हूँ। अगर सिर्फ़ एक स्पिनर की बात हो अश्विन ही होंगे।


डेविड गावर, इंग्लैंड के पूर्व कप्तान

बदसलूकी की इंतहा-

सिर्फ़ 79 टेस्ट में 413 विकेट लेने वाले अश्विन भारतीय इतिहास के चौथे सबसे कामयाब गेंदबाज़ हैं। अगर वो 4 विकेट और झटकते हैं तो वो हरभजन सिंह को पछाड़ देंगे। लेकिन, हरभजन को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए 103 मैच खेलने पड़े थे। इसी से आपको भज्जी और अश्विन का फासला समझ में आ जायेगा। 

पिछले कुछ सालों में विदेशी ज़मीं पर अश्विन का खेल इतने ज़बरदस्त तरीक़े से निखरा है कि उस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो। विदेशों में खेले गये अपने पिछले 12 मैचों में अश्विन ने 43 विकेट झटके हैं (ऑस्ट्रेलिया में 4 मैचों में 18, इंग्लैंड में 5 मैचों में 15 और साउथ अफ्रीका में 2 मैचों में 7)।

इंग्लैंड के एक और पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने ओवल में अश्विन को नहीं खिलाने के फ़ैसले को ‘पागलपन’ करार दिया! बीसीसीआई के पूर्व मुख्य चयनकर्ता एम एस के प्रसाद भी हैरान हैं क्योंकि उन्होंने सीरीज़ से पहले हर किसी को इत्तला किया था जब उन्होनें मुझे कहा कि-

‘कैसी भी पिच हों, दोनों को खेलना चाहिए। लेकिन, अगर अश्विन को बाहर करने के बार में सोचना भी एक बड़ी भूल होगी’। 

न्यूज़ीलैंड पूर्व तेज़ गेंदबाज़ डैनी मॉरिसन ने तो यहाँ तक कह डाला कि अगर गेंदबाज़ी कॉम्बिनेशन बनाने में मुश्किल आ रही हो तो 3 ही तेज़ गेंदबाज़ लेकर उतारो भले ही इसके लिए दोनों यानी कि जडेजा और अश्विन को हर मैच में क्यों नहीं खिलाना पड़े।

कोहली को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी

ऐसा नहीं है कि कोहली अभी कप्तान हैं और निरंकुश फ़ैसले लिए जा रहे हैं और उन्हें कोई कुछ नहीं कह रहा है तो आगे भी कोई कुछ नहीं होगा। अश्विन बहुत सुलझे हुए खिलाड़ी है और आने वाले वक़्त में आप उनके यू-ट्यूब चैनल या फिर उनकी आत्म-कथा में उनकी आप बीती ज़रूर सुनेंगे।

वैसे, क्रिकेट इतिहास गवाह है कि दिग्गज खिलाड़ियों के साथ बार-बार ऐसा रुख़ा रवैया हमेशा के लिए साथी खिलाड़ियों के बीच खटास भर देता है। आपको याद है ना कि कैसे शेन वार्न अपने पूर्व कप्तान स्टीव वॉ की हर मंच पर धज्जियाँ उड़ाने से नहीं चूकते हैं क्योंकि वॉ ने उनकी जगह 1999 में वेस्टइंडीज़ के दौरे पर स्टुअर्ट मैक्गिल को खिला दिया था। ठीक उसी तरह से वीवीएस लक्ष्मण ने तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली और कोच जॉन राइट से कई सालों तक सीधे मुंह बात तक नहीं की थी जब उन्हें साउथ अफ्रीका में हुए 2003 वर्ल्ड कप के लिए दिनेश मोंगिया जैसे खिलाड़ी के चलते टीम से बाहर कर दिया गया था।

फ़ाइल फ़ोटो

बल्लेबाज़ों की नाकामी के चलते अश्विन क्यों हो बाहर?

अब तक इस सीरीज़ में चेतेश्वर पुजारा, कोहली, रहाणे और पंत ने मिलकर जितने रन नहीं बनाये हैं इंग्लैंड के कप्तान जो रुट ने अकेले उनसे ज़्यादा बना डाले हैं। टीम इंडिया के लिए सीरीज़ में बैक-फुट पर जाने की सबसे बड़ी वजह यही है लेकिन इसका खामियाजा कौन भुगत रहा है- अश्विन। यूँ तो क्रिकेट के मूलभूत स्वभाव में ही बल्लेबाज़ों और गेंदबाज़ों को लेकर पक्षपात वाला नज़रिया रहा है और यही वजह है कि उप-महाद्वीप की बल्लेबाज़ी वाली पिचों पर रनों का अंबार खड़ा करने वाले बल्लेबाज़ों के चयन की बात जब ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड या फिर साउथ अफ्रीका जैसे मुल्कों में बात आती है तो कोई ये नहीं कहता है कि ऐसी पिचों पर आपको दूसरे क़िस्म के बल्लेबाज चाहिए। लेकिन, गेंदबाज़ों को और खासतौर पर स्पिनर को दोहरी परीक्षा से हमेशा गुजरना पड़ता है। 

अभी तक इस दौरे पर रोहित शर्मा, कोहली, पुजारा और रहाणे जैसे सीनियर बल्लेबाज मिलकर भी 1 शतक नहीं जमा पाये हैं लेकिन इसके बावजूद कोई यह तर्क नहीं देता है कि इन्हें बाहर कर दो। लेकिन, अश्विन जैसे चैंपियन गेंदबाज के साथ कोई सहानूभित वाला नज़रिया नहीं अपनाता है। आख़िर क्यों?

ग्यारह खिलाड़ी तो दूर की बात, कायदे से अगर टीम में सिर्फ़ 3 खिलाड़ी चुनने की बात आये तो कप्तान कोहली और जसप्रीत बुमराह के साथ हर मैच में अश्विन का नाम सबसे पहले होना ही चाहिए। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि मैच भारत में हो रहा है या भारत के बाहर। लेकिन, एक ज़िद्दी कप्तान को कोई यह बात समझाये तो कैसे समझाये?