दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा हो गई है। पाँच फरवरी को मतदान होगा और उसके तीन दिन बाद आठ फरवरी को नतीजे आ जाएंगे। इस चुनाव में आप, बीजेपी और कांग्रेस तीनों दलों की साख दाँव पर लगी है। आप पिछले दो चुनावों से रिकॉर्ड सीटें जीत रही है, बीजेपी लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद दशकों से सत्ता से दूर है और कांग्रेस अपनी खोयी ज़मीन पाने के लिए संघर्ष कर रही है। तीनों ही दलों के लिए साख इतनी ज़्यादा दाँव पर है कि इसको उनके लिए 'करो या मरो' जैसी स्थिति कहा जा सकता है। तो सवाल है कि आख़िर तीनों दलों के लिए इतनी साख दाँव पर क्यों है और चुनाव में इन तीनों दलों की मौजूदा स्थिति क्या है।
पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आप लगातार तीसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता हथियाने की कोशिश में है। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका, लेकिन वह भी कड़ी टक्कर की तैयारी कर रही है और उसे उम्मीद है कि वह चौंकाने वाली जीत हासिल करेगी।
विधानसभा चुनाव को सभी खेमों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले साल सितंबर में शराब नीति मामले में जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, इसके बाद आप ने घोषणा की थी कि दिल्ली की जनता के उन पर भरोसा जताने के बाद वह सत्ता में वापस आएंगे। इस बीच, भाजपा आप को सत्ता से बेदखल करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है और पार्टी पर हर स्तर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है।
विपक्षी दलों का मानना है कि राजनीतिक माहौल उनके पक्ष में बदल गई है, जबकि आप को उम्मीद है कि विपक्ष के आरोपों के बावजूद उनकी कल्याणकारी योजनाओं को लोगों का समर्थन मिलेगा। कांग्रेस और आप ने 2024 का लोकसभा चुनाव इंडिया ब्लॉक के बैनर तले मिलकर लड़ा था, लेकिन विधानसभा चुनाव वे अलग-अलग लड़ेंगी।
गवर्नेंस, विकास, भ्रष्टाचार और सरकारी सेवाओं जैसे प्रमुख मुद्दे प्रचार अभियान में हावी रहने की उम्मीद है। आप अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे के विकास में अपनी उपलब्धियों को गिना सकती है। दूसरी ओर, भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों और दिल्ली के भविष्य के लिए अपने दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करेगी, साथ ही वह आप के कथित भ्रष्टाचार और खाली पदों को भी उजागर करेगी। कांग्रेस भी खुद को एक विकल्प के रूप में पेश करने का लक्ष्य रखेगी।
तीनों दलों ने विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की शुरुआती सूची की घोषणा कर दी है। केजरीवाल का मुकाबला नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में पूर्व भाजपा सांसद प्रवेश साहिब सिंह और दिवंगत मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे पूर्व कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित से होगा।
मुख्यमंत्री आतिशी का मुकाबला कांग्रेस की अलका लांबा और दक्षिण दिल्ली के पूर्व भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी से कालकाजी सीट पर होगा।
आप पहली बार दिसंबर 2013 में त्रिशंकु विधानसभा में कांग्रेस की मदद से सत्ता में आई थी। हालांकि, सत्ता में आने के महज 49 दिन बाद ही केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल विधेयक पारित न कर पाने का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अगले दो चुनावों- 2015 और 2020 में पार्टी ने क्रमश: 67 और 62 सीटों के साथ दिल्ली में जीत दर्ज की और उन चुनावों में भाजपा सिंगल डिजिट पर रह गई।
वैसे, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आप ने बड़ी जीत हासिल की थी। तब उस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 62 सीटें मिली थीं। बीजेपी 8 सीटों पर सिमट गई थी। पिछले चुनावों की तरह, कांग्रेस जीरो पर ही रही। हालाँकि आप को इस चुनाव में पाँच सीटों का नुक़सान हुआ था। आप को 53.57 फीसदी वोट मिले थे तो बीजेपी को 38.51 फीसदी और कांग्रेस को 4.26 फीसदी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2015 के मुक़ाबले काफी कम हो गया।
इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में आप ने रिकॉर्ड 67 सीटें जीती थीं। तब बीजेपी सिर्फ़ 3 सीटें ही जीत पाई थी। 2015 के चुनाव में कांग्रेस की हालत ख़राब थी और वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। इस चुनाव में आप को 54.3 फीसदी, बीजेपी को 32.2 फीसदी और कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले थे।
आप की साख दाँव पर क्यों?
2013 में सत्ता में आने के बाद आप ने कभी खुद को बदलाव का वाहक बताया था, लेकिन अब भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। केजरीवाल ने खुद को ईडी द्वारा पहले गिरफ्तार किए जाने के बाद लगभग छह महीने जेल में बिताए और बाद में कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में उनकी भूमिका के लिए सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया। पिछले साल सितंबर में उन्हें जमानत मिली। केजरीवाल के सहयोगी और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी आबकारी नीति मामले में 17 महीने से अधिक समय जेल में बिताया। एक अन्य पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन और राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी गिरफ्तार किया गया और वे जमानत पर बाहर हैं।
मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार, बिजली और पानी की सब्सिडी सहित केजरीवाल का कल्याणकारी मॉडल आप का मुख्य आधार है। यह दिल्ली मॉडल ही था जिसने आप को गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के वोट बैंक पर कब्ज़ा कराया और कांग्रेस की हवा निकालने में मदद की। कांग्रेस को कभी इन वर्गों का काफ़ी समर्थन प्राप्त था। भाजपा को उच्च मध्यम वर्ग और पंजाबी और व्यापारिक समुदाय का समर्थन प्राप्त है। इसको अपने वोट बैंक में इस तरह की गिरावट का सामना नहीं करना पड़ा है।
भाजपा ने अपना पूरा ध्यान भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप पर हमला करने और सीएम आवास के जीर्णोद्धार “शीशमहल” को लेकर केजरीवाल को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने पर केंद्रित कर दिया है। आप पहली बार भ्रष्टाचार के मोर्चे पर आलोचनाओं का सामना कर रही है।
पंजाब को छोड़कर, दिल्ली उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पिछले दो दशकों में भाजपा ने सत्ता का स्वाद नहीं चखा है। लेकिन, पिछले तीन दशकों में भाजपा के वोट शेयर पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि पार्टी ने अपना एक बड़ा जनाधार बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है।
1998 से दिल्ली में सत्ता से बाहर होने के बावजूद, भाजपा छह विधानसभा चुनावों में कभी भी 32% के वोट शेयर से नीचे नहीं गिरी।
इस बार, पार्टी दिल्ली में अपना अब तक का सबसे आक्रामक अभियान चलाने के लिए तैयार है, जिसमें मोदी सबसे आगे हैं। पार्टी का मानना है कि उच्च मध्यम वर्ग, व्यापारिक और पंजाबी समुदायों के बीच उसका वोट शेयर बरकरार है और उसे पूर्वांचली मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का भी समर्थन प्राप्त है। और अब यह निम्न मध्यम वर्ग, दलितों और गरीबों में सेंध लगाने के लिए ठोस प्रयास कर रही है।
दिल्ली में कांग्रेस का उत्थान और पतन किसी नाटकीय घटना से कम नहीं है। पार्टी 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई थी, लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। दिल्ली में भी भाजपा ने सात में से छह सीटें जीती थीं। कांग्रेस की एकमात्र विजेता मीरा कुमार करोल बाग सीट से थीं। वास्तव में, शीला दीक्षित जो सीएम बनीं, पूर्वी दिल्ली सीट पर भाजपा के लाल बिहार तिवारी से हार गई थीं।
लेकिन नवंबर 1998 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 47.76% वोट शेयर के साथ 70 में से 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस सरकार के मुखिया के रूप में शीला दीक्षित ने 15 साल तक दिल्ली की कमान संभाली। यह सत्ता 2013 में ख़त्म हो गई, जब कांग्रेस सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गई, और शीला दीक्षित खुद केजरीवाल से हार गईं।
2015 में पार्टी को बड़ा झटका लगा, जब वह खाता खोलने में विफल रही और उसका वोट शेयर 10% से भी कम हो गया। पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी और भी पीछे चली गई, उसे केवल 4.26% वोट मिले, जबकि उसके 66 में से 63 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
विपक्षी इंडिया ब्लॉक के लिए यह चुनाव काफ़ी अहम है क्योंकि केजरीवाल की पार्टी विपक्षी ब्लॉक में एकमात्र घटक है जो एक से ज़्यादा राज्यों में सत्ता में है। केजरीवाल के विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे व्यक्तिगत समीकरण हैं, जिनका कांग्रेस के साथ अच्छा तालमेल नहीं है। दिल्ली में आप की लगातार तीसरी जीत से केजरीवाल की इंडिया ब्लॉक में स्थिति मज़बूत होगी और कांग्रेस पर और दबाव बढ़ेगा। इसके विपरीत, आप की हार कांग्रेस के लिए राहत की बात होगी।