किसान आंदोलन की तपस्या में कमी कहाँ रह गई?

07:23 am Jan 04, 2025 | जगदीप सिंधु

पंजाब हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे जगजीत सिंह डल्लेवाल को 37 दिन हो गए। उनके स्वास्थ्य की हालत चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केंद्र सरकार को स्थिति पेचीदा बनाने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया है। कल सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के बाद किसान आंदोलन के नेताओं ने भी केंद्रीय सरकार से किसानों की मांगों की उपेक्षा करने की अपनी बात को दोहराया है।

वर्तमान में किसान आंदोलन दोबारा पिछले साल 2024 के फरवरी माह में दो किसान संगठनों संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा द्वारा लंबित मांगों को लेकर शुरू किया गया था। राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से अलग होकर अपने संगठन के समर्थकों के साथ पंजाब से जगजीत सिंह डल्लेवाल संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और स्वर्ण सिंह पंधेर किसान मजदूर मोर्चा ने दिल्ली कूच करने और सरकार से मांगें मनवाने के लिए आह्वान किया था जिनको हरियाणा के अलग-अलग बॉर्डर पर हरियाणा के सुरक्षा बलों द्वारा रोक दिया गया और सरकारी दमन को पूरे देश ने देखा। 

तब से ही किसान संगठन हरियाणा की सीमाओं पर अलग-अलग स्थानों- अंबाला के पास शम्भू में, नरवाना के पास खनौरी में और डबवाली के पास रतनपुरा- पर मोर्चा खोले बैठे हैं। हालाँकि 10 जुलाई 2024 में पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक आदेश में हरियाणा सरकार को राष्ट्रीय राजमार्ग को खोलने के निर्देश दे दिए थे और स्पष्ट किया था कि नागरिकों के लिए यातायात सुलभ किया जाना चाहिए लेकिन कोई कार्यवाही हरियाणा सरकार के द्वारा इस दिशा में की नहीं गयी। अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय ने भी हरियाणा सरकार को राजमार्ग खोलने के लिए जवाब मांगा था।

किसान दिल्ली कूच करना चाहते हैं लेकिन हरियाणा प्रदेश की सरकार उन्हें आगे नहीं जाने देने का रवैया अपनाये हुए है। गतिरोध निरंतर बना हुआ है। हरियाणा सरकार की आपत्ति को स्वीकार करके किसान शांतिपूर्वक ढंग से पैदल दिल्ली जाने और केंद्र की सरकार से अपनी मांगों के समाधान के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन हरियाणा सरकार ने किसानों के किसी भी अनुरोध को मानने में टालमटोल का रुख ही अपनाया हुआ है जिसका कोई हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा।

किसान आंदोलन 2020 में तीन कृषि कानून को खत्म करने के साथ साथ जो मुख्य मांगें थीं उसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्ज से मुक्ति, बिजली आपूर्ति कानूनों में सुधार व दरों में कटौती, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसानों पर किये गए केस वापसी आदि शामिल थीं। उनको सरकार द्वारा लिखित आश्वासन दिए जाने के बावजूद पूरा नहीं किया जाना वर्तमान किसान आंदोलन का आधार बना हुआ है।

राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हो कर जगजीत सिंह डल्लेवाल की अगुवाई वाले किसानों के संगठन एसकेएम गैर राजनीतिक और स्वर्ण सिंह पंधेर के नेतृत्व में किसान मज़दूर मोर्चा उन्ही मांगों को लेकर यह आंदलोन फिर से कर रहे हैं।

दुबारा आंदोलन शुरू करने को लेकर इन दोनों संगठनों ने समर्थन के लिए राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से कोई विमर्श नहीं किया था। देश के सभी प्रदेशों के विभिन्न संगठन पूरी तरह एकजुट नहीं होने के कारण यह आंदोलन फिलहाल पंजाब हरियाणा की सीमाओं पर ही सक्रिए हैं। केंद्र की सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए तब इन दो संगठनों से बातचीत का रास्ता खोला था और कई दौर की बातचीत के बाद किसानों को कोई हल निकालने के लिए आश्वस्त भी किया था। चुनावों के बाद सरकार द्वारा पहल न किये जाने से क्षुब्ध जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठ गए।

राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से एकता के लिए कोई तालमेल न होने के चलते यह दोनों संगठन अपने बूते ही आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन अब केंद्रीय सरकार के उपेक्षापूर्ण और दमनकारी रवैये के प्रति किसानों में असंतोष धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। अन्य किसान संगठन भी अब इनके साथ आने को तैयार होने लगे हैं। पहले किसान आंदोलन में देश के सभी प्रदेशों के 42 बड़े संगठन एकजुट हो गए थे और राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा का गठन हुआ था। लेकिन आंदोलन स्थगित होने बाद से मतभेदों के कारण कुछ संगठन अलग हो गए थे। किसान आंदोलन में एकता के लिए राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा ने 6 सदस्य कमेटी बना कर इस आंदोलन के नेताओं से बातचीत की पहल की थी लेकिन जगजीत सिंह डल्लेवाल और स्वर्ण सिंह पंधेर ने एकता बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं किये।

अब राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार द्वारा लाये गए नए  नेशनल पॉलिसी ड्राफ्ट ऑन एग्रीकल्चर मार्केटिंग के मसौदे में पुराने कृषि कानून के कुछ प्रावधान शामिल किये जाने को लेकर एक बड़ी बैठक 4 जनवरी को हरियाणा के टोहाना में रखी है जिसमें देश के सभी बड़े किसान संगठन शामिल होंगे। 

कहा जा रहा है कि सरकार की मंशा पुराने कृषि क़ानून को नए रूप में लागू करने की है जिसमें कृषि मंडी व्यवस्था के समानान्तर प्राइवेट मंडी व्यवस्था को स्थापित करने की नीति के प्रावधान हैं। संयुक्त संसदीय समिति ने भी 17  दिसंबर को कृषि में न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रूप से सुनिश्चित करने बारे में अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है। इसके अलावा कृषि क्षेत्र में सुधारों को नियमित करने के लिए और विभिन्न क्रियाओं के मानकीकरण के लिए भी एक मसौदा तैयार किया है, जैसे की भवन निर्माण के लिए किया गया है। राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में सरकार द्वारा किये जा रहे नीतिगत बदलाव का निरीक्षण और उसके प्रभावों पर निर्णय लिए जाने की संभावना है। वर्तमान किसान मोर्चा को समर्थन देने के बारे में या एक नया बड़ा आंदोलन करने की योजना का निर्णय होने की संभावना जताई जा रही है। कृषि क्षेत्र को निजी पूंजीपतियों के हवाले करने की सरकार की मंशा का किसान नेता हमेशा से विरोध करते रहे हैं।

अब देखना होगा कि खुद को किसानों की हितैषी बताने वाली सरकार किस दिशा में आगे बढ़ती है या फिर किस तपस्या का हवाला देती है।