पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अभियान शुरू होने के साथ दिन दूना रात चौगुना बढ़ते कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए लेफ्ट, कांग्रेस और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने अपनी रैलियों और रोड शो में कटौती का एलान कर दिया था। इससे चौतरफ़ा आलोचना और बढ़ते दबाव के बाद बीजेपी ने भी प्रधानमंत्री समेत बाक़ी नेताओं की रैलियों में भीड़ की संख्या पाँच सौ तक रखने की बात कही है। लेकिन न तो उसने किसी रैली में कटौती की बात कही है और न ही भीड़ को पाँच सौ तक सीमित रखने का कोई फ़ॉर्मूला बताया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को एक इंटरव्यू में कहा था कि चुनाव के साथ कोरोना संक्रमण बढ़ने का कोई संबंध नहीं है। महाराष्ट्र में तो सबसे ज़्यादा संक्रमण है। क्या वहाँ चुनाव हो रहे हैं?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में चुनाव अभियान के साथ संक्रमण बढ़ने का सीधा संबंध है। आँकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। मार्च के पहले सप्ताह में जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई थी तो दो मार्च को संक्रमण के नए मामलों की संख्या महज 171 थी। 27 मार्च को जिस दिन पहले चरण का मतदान हुआ था, राज्य में 24 घंटों के दौरान 812 नए मामले सामने आए थे और चार लोगों की मौत हुई थी। लेकिन अब यह आँकड़ा साढ़े चार हज़ार के पार पहुँच गया है। पहली अप्रैल यानी दूसरे चरण के मतदान के दिन यह आँकड़ा 1,274 था जो तीसरे चरण के मतदान के दिन बढ़ कर 2,058 तक पहुँच गया। उसके बाद 10 अप्रैल यानी चौथे चरण के मतदान के दिन 4,043 नए मामले सामने आए थे। अब ऐसे मामले क़रीब नौ हज़ार तक पहुँच चुके हैं।
विशेषज्ञों ने चेताया है कि विधानसभा चुनाव ख़त्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण नया रिकॉर्ड बना सकता है। उनका कहना है कि आठ चरणों तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया कोरोना के लिहाज से भारी साबित हो सकती है। तमाम राजनीतिक दलों की रैलियों और चुनाव अभियान के दौरान न तो कहीं किसी के चेहरे पर मास्क नज़र आता है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन हो रहा है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को रैलियों और रोड शो के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस क़दम उठाने का निर्देश दिया था।
अदालत ने आयोग से इस मुद्दे पर रिपोर्ट भी मांगी है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयोग ने 16 अप्रैल को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। लेकिन उसके बाद भी उसका कोई ज़मीनी असर नहीं पड़ा है।
कोरोना के बढ़ते संक्रमण को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर सीपीएम ने पहल की थी और कोई भी बड़ी सभा या रैली आयोजित नहीं करने का फ़ैसला किया था। उसके बाद राहुल गांधी ने भी अपनी तमाम रैलियाँ रद्द कर दूसरे दलों से भी ऐसा करने को कहा था। उसके बाद भी बीजेपी से लेकर तृणमूल की रैलियों और रोड शो में उमड़ती भीड़ कोविड प्रोटोकॉल को ठेंगा दिखाती रही। राज्य में संकट गहराने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि कोलकाता में वे महज एक प्रतीकात्मक रैली करेंगी। उसके अलावा न तो कोई रोड शो होगा और न ही रैली। उनकी बाक़ी रैलियाँ छोटी होंगी और उनके समय में भी काट-छाँट की गई है। अब कहीं भी ममता की रैली आधे घंटे में ख़त्म हो जाएगी।
उधर, बीजेपी ने तत्काल प्रभाव से बड़ी रैलियों और सभाओं पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। बीजेपी ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि बीजेपी बंगाल चुनाव के बाक़ी बचे तीन चरणों में छोटी-छोटी सभाएँ करेगी। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों की सभाओं में पाँच सौ से ज़्यादा लोग शामिल नहीं हो सकेंगे। सभी रैलियाँ खुली जगहों पर आयोजित की जाएँगी ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
पार्टी ने राज्य में छह करोड़ मास्क और सैनिटाइजर बांटने का भी लक्ष्य रखा है। बीजेपी यह सुनिश्चित करेगी कि चुनावी रैलियों में कोरोना के प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए।
लेकिन इसके साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि भीड़ पांच सौ से ज़्यादा नहीं हो?
अभी 22 और 26 अप्रैल को क्रमशः छठे और सातवें चरण के मतदान के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम से कम चार रैलियाँ होनी थी। प्रदेश बीजेपी के एक नेता बताते हैं कि अब मोदी की चारों रैलियाँ एक ही दिन यानी 22 अप्रैल को ही आयोजित करने पर विचार किया जा रहा है। यानी पार्टी मोदी या दूसरे बड़े नेताओं की रैली में कटौती को तैयार नहीं है। उनके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा के अलावा अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के भी कई रोड शो और रैलियों का आयोजन किया जाना है।
बीजेपी का कहना है कि वह सोशल मीडिया समेत प्रचार के दूसरे तरीक़ों पर जोर दे रही है। प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, ‘पार्टी के नेताओं की तमाम रैलियों और रोड शो में कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है।’ हालाँकि तमाम टीवी चैनलों पर नज़र आने वाली तसवीरें अलग ही कहानी कहती हैं। भट्टाचार्य ने राहुल गांधी के चुनावी रैलियां नहीं करने के फ़ैसले को नाटक बताया है।
लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमण से होने वाली मौतों को रोकने के लिए ऑनलाइन प्रचार पर जोर दिया जाना चाहिए। एक विशेषज्ञ अरिंदम विश्वास कहते हैं कि राहुल गांधी ने इस मामले में ठोस पहल की। दूसरे दलों को उनके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए। वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम के महासचिव राजीव पांडेय कहते हैं कि तमाम राजनीतिक दलों को अपनी रैलियाँ और रोड शो तुरंत बंद कर देना चाहिए।