बंगाल के जंगलमहल इलाके में जाने और गाजन उत्सव देखने का सौभाग्य हुआ। गाजन, भोक्ता और चड़क पूजा के कारण पूरा इलाका उत्सव के रंगों से सराबोर हो चुका है। अब कहाँ पुलिस की गश्ती और कहाँ चुनावी तपिश?
आसमान से सूरज जैसे आग का गोला बरसा रहा है फिर भी लोग महादेव शिवजी की आराधना में लीन। महिलाएं नील के रूप में शिवजी की पूजा-अर्चना कर घर, परिवार और समाज की बेहतरी की कामना कर रही है। पूरे दिन वे निर्जला उपवास रहकर समृद्धि की कामना के लिए नील पर जलार्पण करती हैं।
दरअसल 13 अप्रैल को नील की पूजा के साथ ही इस इलाके में शिवजी की आराधना और सप्ताह व्यापी गाजन उत्सव की धूम शुरू हो जाता है। 14 अप्रैल को गाजन होता है। गाजन के कई अर्थ लोग बताते हैं। 'गा' का मतलब गाँव और 'जन' का अर्थ जनसमावेश। लोगों का जुटना।
शरीर पर ज़ख़्म
13 अप्रैल की रात जंगलमहल के बाँकुड़ा जिले के सालतोड़ा पहुँचा। वहाँ मुरलू गाँव के पास खाली बदन और नए धोती पहने शिव भक्तों को सड़कों पर लोटते देखा। वे नदी घाट से लेकर बिहारी नाथ के मंदिर तक अपने भूखे-प्यासे शरीर से सड़क को नाप रहे थे या कहिए लोटकर मंदिर तक पहुंच रहे थे।
इस क्रम में शरीर पर ज़ख्म भी बनते जा रहे हैं, लेकिन महादेव शिवजी को प्रसन्न रखने के लिए सात साल के बच्चे से लेकर सत्तर साल के बुजुर्ग तक समर्पित भाव से यह कार्य कर रहे हैं ।
सैकड़ों श्रद्धालु भक्तों के चरण स्थल से माटी निकालकर मस्तक में लगा रहे हैं। पुरुलिया जिले के मौतोड़, मंगलदा, रघुनाथपुर इलाकों में भी भोक्ता पर्व की धूम मची है।
निर्जला उपवास रखनेवाले भक्त महादेव को खुश करने के लिए जीभ, पीठ जैसे अंगों पर कील इस पार- उस पार करते हैं। फिर लकड़ी की बड़ी चौखट पर रस्सी से खुद को बांधकर झूलते हैं।
ख़ून से लथपथ
यह करतब हैरत अंगेज़ करनेवाला आइटम है। कई भक्त खून से लहूलुहान भी हो जाते हैं। भक्तों का एकमात्र ध्येय महादेव को खुश करना है। अपनी जिस्म को खून से लथपथ कर शांति, सुकून और समृद्धि की राह पर नई यात्रा की शुरूआत करना चाहते हैं जंगलमहल के लोग।
यहां से लेकर धनबाद के बलियापुर और बोकारो जिले के चंदनकियारी तथा जमशेदपुर-सिंहभूम तक का इलाका इस उत्सव से सराबोर रहता है। वर्ष 1956 तक बंगाल और झारखण्ड का यह इलाका एक साथ ही था।
इस पर्व को लोग गाजन, चड़क, नील पूजा कई तरह से मनाते हैं। कुछ लोग कहते हैं जब धरती सूरज के ताप से ताम्रवर्ण हो जाती है तब सूरज और धरती के मिलन के समय शिवजी गर्जन कर उठते हैं। इसलिए शिव के गर्जन से गाजन शब्द की उत्पत्ति की बात पुरुलिया के लोग करते हैं।
चड़क पूजा मेंं जीभ को भेद कर शिव अर्चना की जाती है।
बौद्ध धर्म का असर
जानकार लोगों का कहना है कि अतीत में बौद्ध धर्म के अनेक अनुयायियों जंगलमहल के इलाकों में आश्रय लिया था। धर्मावतार की पूजा उन्हीं लोगों ने शुरू की जो बाद में शिवेर गाजन में तब्दील हो गई।
बाँकुड़ा में आज भी आकारहीन पत्थर दिख जाता है जो अश्वों से घिरा रहता है। बंगाल की टेराकोटा कल्चर का छाप इसमें देखा जा सकता है। शिवथान के समीप चड़क वृक्ष की पूजा की जाती है। चड़क गाछ काफी लंबा होता है। इसकी शाखाएं नहीं होती और ग्रंथों में अर्द्धनारीश्वर के रूप में इस वृक्ष की कल्पना की गई है।
देश की नज़र बंगाल के चुनाव पर है। बंगाल की सत्ता की राह जंगलमहल से ही निकलती है, ऐसा लोगों का मानना है। ममता बनर्जी ने इसी रास्ते होकर राज्य की सत्ता हासिल की थी। संयोग से नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी इसी रास्ते होकर नबान्न तक कमल को पहुँचाना चाहते हैं।
अभी जंगलमहल शांत है। लग ही नहीं रहा कि अभी अभी चुनाव सम्पन्न हुआ और जबर्दस्त तनाव के दौर से लालमाटी का यह मुलुक गुज़रा है।
कभी यह इलाका लेफ्ट का गढ़ था। बाद में पूरा इलाका जोड़ा फूल के प्रभाव में आया। 2019 के संसदीय चुनाव में कमल को यहां बढ़त मिली।
पूजा की तैयारी में बच्चे
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कोलकाता जाने का रास्ता जंगलमहल ज़रूर है, लेकिन जो भी सत्ता में आये 'धर्मेर गाजन' अर्थात इंसाफ के जनसंगम को महत्व दें। जंगलमहल को राजनीतिक वर्चस्व की रक्तरंजित धरती न बनावे। सत्ता की चाबी देने के बावजूद यह इलाका घोर उपेक्षित है।
सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है। उद्योग-धंधे चौपट है। एक फसल पर गुजारा करते हैं लोग। लोग चाहते हैं सत्ता के हाक़िम शिवजी की तरह बने। वे विषपान कर नील बन जाए। नीलकंठ। नील जिसकी पूजा जंगलमहल के घर-घर हो रही है।