खेल में भी 'सांप्रदायिकता' का विवाद? सवाल अजीब है, लेकिन उत्तराखंड क्रिकेट में यही आरोप लग रहा है। खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात का मुद्दा तो अक्सर उठता रहा है, लेकिन उत्तराखंड क्रिकेट में अब सांप्रदायिकता का विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद भी तब खड़ा हुआ जब उत्तराखंड क्रिकेट के कोच पद से वसीम जाफर ने इस्तीफ़ा दिया। भारतीय टीम के ओपनर रहे जाफर ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा था कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारी अयोग्य खिलाड़ियों के लिए दबाव डाल रहे थे। इसके बाद जाफर पर ड्रेसिंग रूम के सांप्रदायिकरण करने और मुसलिम खिलाड़ियों को तरजीह देने का आरोप मढ़ दिया।
यह विवाद कैसे उपजा उसको जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर पूरा मामला क्या है। वसीम जाफर को पिछले साल उत्तराखंड का कोच नियुक्त किया गया था। उनका अनुबंध एक सत्र के लिए था। इस बीच इसी हफ़्ते वसीम जाफर ने कोच पद से इस्ताफ़ा दे दिया।
रणजी क्रिकेट के सबसे बड़े ख़िलाड़ियों में से एक रहे जाफर ने बुधवार को इस्तीफ़े को लेकर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारियों पर आरोप लगाया। आरोप था कि वे उन खिलाड़ियों की नियुक्ति के लिए दबाव डाल रहे थे जो 'अयोग्य' थे। इसके बाद तो इस मामले ने तूल पकड़ लिया। इसके बाद ही राज्य के क्रिकेट संघ के अधिकारियों ने जाफर पर एक के बाद एक कई आरोप लगाए। इसमें सांप्रदायिकरण करने का आरोप भी शामिल है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड क्रिकेट संघ के सचिव महिम वर्मा ने कहा कि उन्हें टीम से फ़ीडबैक मिला था कि जाफर ने ड्रेसिंग रूम के माहौल को 'सांप्रदायिक' कर दिया था और मुसलिम खिलाड़ियों का पक्ष लिया था।
रिपोर्ट के अनुसार वर्मा ने कहा कि उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने उन्हें बताया था कि टीम के प्रशिक्षण सत्र के दौरान जाफर ने मैदान में एक मौलवी को आमंत्रित किया था और यहाँ तक कि टीम के मंत्र को भी बदल दिया जिसमें हनुमान का जयकारा लगता है।
उन्होंने कहा, 'बाद में मुझे बताया गया कि देहरादून में हमारे बायो-बबल प्रशिक्षण सत्रों के दौरान एक मौलवी ने आकर ग्राउंड में दो बार नमाज़ अदा की। जब एक बायो-बबल प्रशिक्षण चल रहा है तो एक मौलवी कैसे प्रवेश कर सकता है। मैंने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें पहले मुझे सूचित करना चाहिए था, मैंने कार्रवाई की होती।'
बता दें कि इससे पहले जाफर ने अपनी नियुक्ति के बाद उत्तराखंड के लिए खेलने के लिए तीन पेशेवर खिलाड़ियों- जय बिस्सा, इक़बाल अब्दुल्ला और समद फालाह को राज्य के बाहर से चुना था।
मुंबई के पूर्व खिलाड़ी अब्दुल्ला को सैयद मुश्ताक घरेलू टी-20 टूर्नामेंट के लिए कप्तान बनाया गया था। हालाँकि, इस मामले में पहले ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ था। न ही इस मामले में किसी भी तरह की आपत्ति की कोई ख़बर आई थी।
हालाँकि, महिम वर्मा के आरोपों के बाद देर शाम को वसीम जाफर ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। इसमें उन्होंने कहा, 'इससे नीचे कोई नहीं गिर सकता है। मुझ पर सांप्रदायिक होने और इसे सांप्रदायिक रंग देने के आरोप दुखद हैं।' उन्होंने कहा कि "यदि मैं कम्युनल होता तो मैं कहता कि 'अल्ला हू अकबर' बोलो। मैंने सत्र को सुबह कर दिया होता जिससे कि मैं दोपहर में नमाज़ अदा कर सकूँ।" बता दें कि इस मामले में उन्होंने ट्वीट भी किया है।
मौलवी को बुलाने और नमाज़ के आरोपों पर वसीम जाफर ने कहा, 'उन्होंने कहा मैंने एक मौलवी को बुलाया और ग्राउंड पर नमाज़ अदा की। सबसे पहली चीज, मैंने मौलवी को फ़ोन नहीं किया; यह इक़बाल अब्दुल्ला थे जिन्होंने उन्हें बुलाया था। शुक्रवार को हमें नमाज़ अदा करने के लिए एक मौलवी की ज़रूरत थी। इक़बाल ने मुझसे पूछा और मैंने हाँ कही। अभ्यास समाप्त हो गया और हमने ड्रेसिंग रूम के अंदर नमाज़ की पेशकश की। यह केवल दो या तीन बार हुआ, वह भी बायो बबल सत्र के शुरू होने से पहले।'
हनुमान के जयकारे के आरोपों पर जाफर ने कहा, "मुझ पर खिलाड़ियों को 'जय हनुमान जय' के जयकारे करने की अनुमति नहीं देने के आरोप हैं। सबसे पहली बात, किसी भी खिलाड़ी ने कोई जयकारा नहीं लगाया। हमारे पास कुछ खिलाड़ी हैं जो सिख समुदाय से हैं, और वे कहते थे 'रानी माता सच दरबार की जय’। इसलिए, मैंने एक बार सुझाव दिया था कि हमारे पास 'गो उत्तराखंड' या 'कम ऑन उत्तराखंड' जैसा कुछ होना चाहिए। जैसे, जब मैं विदर्भ के साथ हुआ करता था तो टीम ने नारा दिया था, 'कम ऑन विदर्भ'। और यह मैं नहीं था जिसने नारा चुना, यह खिलाड़ियों पर छोड़ दिया गया था।"
सचिव वर्मा ने यह भी आरोप लगाया है कि जाफर काफ़ी ज़्यादा हस्तक्षेप कर रहे थे और वह चयन समिति की भी नहीं सुन रहे थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि एक बैठक के दौरान उन्होंने मुझसे कहा, ‘आप क्रिकेट के बारे में नहीं जानते’। वर्मा ने कहा कि न केवल मेरे लिए बल्कि चयन समिति के लिए भी उनका व्यवहार एक मुद्दा बन गया।
इन आरोपों पर जाफर ने कहा कि यदि उनके ये आरोप सही थे तो उन्होंने पहले ही मुझे हटा दिया होता। जाफर ने कहा कि उन्हें 'खिलाड़ियों के लिए वास्तव में दुखद' महसूस हुआ। उन्होंने कहा, 'मैं वास्तव में सोचता हूँ कि उनमें बहुत क्षमता है और वे मुझसे बहुत कुछ सीख सकते हैं, लेकिन चयनकर्ताओं और सचिवों के इतने हस्तक्षेप और पूर्वाग्रह के कारण वे इस अवसर से वंचित हैं।’