25 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में यह बेहद ज़रूरी है कि किसी बड़े राजनीतिक दल के साथ कुछ छोटे दल भी हों। मतलब गठबंधन हो। क्योंकि 403 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बहुमत के लिए 202 विधायकों की ज़रूरत होती है। इतिहास देखें तो बीजेपी-बीएसपी को भी गठबंधन करना पड़ा है, कांग्रेस-एसपी को भी और धुर विरोधी एसपी-बीएसपी को भी।
एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के चुनावों को नज़दीक आते देख एक बार फिर से गठबंधन की दिशा में क़दम बढ़ाया है।
आरएलडी के साथ चल रहे अपने गठबंधन में उन्होंने आज़ाद समाज पार्टी के अलावा कुछ और छोटे राजनीतिक दलों को जोड़ने की कवायद शुरू की है। क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि बीजेपी को हराने के लिए वोटों के बंटवारे को रोकना बेहद ज़रूरी है और यह काम गठबंधन ही कर सकता है।
उत्तर प्रदेश की सियासत में जो ताज़ा सूरत-ए-हाल है उसमें विपक्षी दलों का एकमात्र लक्ष्य बीजेपी को सत्ता में वापस आने से रोकना है। लेकिन बीजेपी को रोकना क्या इतना आसान है।
इसके लिए मज़बूत गठबंधन, समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम सहित बहुत सारी चीजों की ज़रूरत है लेकिन पहली जो शर्त है वह है- मज़बूत गठबंधन। एक ऐसा गठबंधन जिसमें शामिल दल जनता को भरोसा दिला सकें कि वे बीजेपी को हरा सकते हैं, तभी जनता उन्हें वोट देगी, वरना वोट बंट जाएगा।
अखिलेश यादव की क्या तैयारी है, इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने सत्य हिंदी के कार्यक्रम में कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एसपी प्रमुख ने मज़बूत किलेबंदी कर ली है और महान दल को भी एसपी के गठबंधन में शामिल कर लिया है।
इस बात की भी चर्चा है कि अखिलेश यादव अपने रुठे हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव को मना रहे हैं और उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को भी अपने गठबंधन में शामिल करेंगे।
सुनील यादव ने लगाई मुहर
सत्य हिंदी के कार्यक्रम में एसपी के वरिष्ठ नेता सुनील यादव ने भी सिद्धार्थ कलहंस की बात पर मुहर लगाई और कहा कि जो छोटे दल साथ आना चाहते हैं, एसपी उनका स्वागत करती है।
यादव ने कहा कि बीजेपी के सर्वे में जब चुनाव में एसपी को 200 से ज़्यादा सीटें मिलने की बात कही गई है लेकिन ज़मीन पर एसपी की स्थिति इससे ज़्यादा मज़बूत है। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में एसपी को बड़ी सफ़लता मिली है और इससे पता चलता है कि गांवों में हमारा संगठन बेहद मज़बूत है। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले अखिलेश यादव ने कई जिलों का दौरा किया और प्रशिक्षण शिविर लगाए थे।
अखिलेश ने गठबंधन में ज़्यादा से ज़्यादा दलों को जोड़ने की तैयारी करके उन आलोचकों को भी जवाब देने की कोशिश की है जो उन पर ट्विटर की राजनीति करने और घर से बाहर न निकलने का आरोप लगाते हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब जब सिर्फ़ 7 महीने का वक़्त बचा है और इतने बड़े प्रदेश को मथने के लिए तो 7 साल का वक़्त भी कम पड़ जाता है, ऐसे में तेज़ और मज़बूत तैयारी ज़रूरी है। कोरोना के कारण बहुत सारा क़ीमती समय पहले ही ज़ाया हो चुका है, ऐसे में अखिलेश यादव किसी मज़बूत गठबंधन के भरोसे ही सियासी ताल ठोकने और उत्तर प्रदेश को फतेह करने की तैयारी में जुटे हैं।
राजभर भी जुटे हैं तैयारी में
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ अखिलेश यादव ही छोटे दलों को जोड़ रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर भी पिछले दो साल से उत्तर प्रदेश में छोटे दलों का गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से बनाए गए गठबंधन में वह अब तक दस दलों को जोड़ चुके हैं। इसमें उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, के अलावा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल, ओवैसी की एआईएमआईएम शामिल हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी को भी इसमें जोड़ने की तैयारी है।