हाथरस की महाभारत से पूरा देश परिचित हो चुका है। लेकिन आप यह नहीं जानते कि इस महाभारत का व्यास कौन है व्यास मुनि नहीं होते तो ऐतिहासिक महाभारत का डॉक्यूमेंटेशन कैसे हो पाता वैसे ही यदि हाथरस का यह दलित ‘व्यास’ न होता तो हाथरस की निर्भया की महाभारत से देश परिचित नहीं हो पाता। निर्भया और उसकी महाभारत दोनों गुमनामी के अँधेरे में डूब जाते। इस व्यास का परिचय जानिए जो इन दिनों पुलिस और ‘इंटेलिजेंस’ एजेंसियों के डर से भागा-भागा घूम रहा है, पुलिस सर्विलांस के डर से जिसे रोज़ अपने फ़ोन बदलने पड़ रहे हैं।
हाथरस गैंगरेप को अखिल भारतीय स्तर पर पहुंचाने वाला ‘व्यास’ हाथरस का दलित युवक कुलदीप कुमार है। कुलदीप नहीं होते तो हाथरस की दमन और उत्पीड़न की ये दर्द भरी दास्तान कोने में पड़ी पुलिस फ़ाइलों में धूल खा रही होती।
26 वर्षीय बीटेक स्नातक कुलदीप कुमार इन दिनों हाथरस कांग्रेस की 'एससी-एसटी सेल' के संयोजक हैं। राजनीति से ज़्यादा कुलदीप की सामाजिक सक्रियता रहती है। बचपन से दलितों पर होने वाले दमन और अत्याचारों को उन्होंने बहुत निकटता से देखा है।
हाथरस की वारदात 14 सितम्बर की है। 17 सितम्बर की शाम कुलदीप के एक मित्र ने स्थानीय अख़बार के हवाले से उन्हें इस घटना के बारे में बताया था। अख़बार के क्राइम कॉलम में चंदपा थाने से सम्बद्ध एक दलित लड़की के साथ बलात्कार की छोटी सी ख़बर लगी थी। कुलदीप कुमार व्यापक जानकारी एकत्र करने के उद्देश्य से 18 सितम्बर की दोपहर पुलिस थाना चंदपा पहुंचे। वहां इत्तेफ़ाक़ से उनकी मुलाक़ात रामबाबू (बदला हुआ नाम -लड़की के पिता) से हुई जिन्हें पुलिस ने बयान दर्ज़ करने की नीयत से बैठा रखा था।
निर्भया के पिता से बातचीत
'सत्य हिन्दी' से बातचीत में कुलदीप बताते हैं, "रामबाबू बुरी तरह से रो रहे थे। उनके साथ उनके कुछ रिश्तेदार भी थे। उनका मन अलीगढ़ के अस्पताल में अटका था जहाँ गंभीर रूप से घायल उनकी बेटी भर्ती थी। रामबाबू जी ने बताया कि ‘न तो काऊ ए पकड़ो है न तो लड़की को मेडिकल (मेडिको लीगल) भओ है।"
कार्रवाई के बजाए धमकाने लगी पुलिस
कुलदीप बताते हैं, “पुलिस ने उन्हें सुबह-सवेरे से बुला रखा था लेकिन तब तक उनके बयान दर्ज़ नहीं हुए थे। मैंने उन्हें सांत्वना दी और थाने में मालूम करने की कोशिश की लेकिन कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। तब मैंने कुछ सख्ती दिखा कर पुलिस वालों से कहा कि लड़की के पिता का बयान लिया जाए और लड़की का मेडिकल करवाया जाए। लेकिन पुलिस वाले मुझे ही धमकाने लगे।”
थाने में ही दिया धरना
कुलदीप ने आगे बताया, “फिर मैंने कांग्रेस के अपने सीनियर साथियों और अनुसूचित जाति सेल के मित्रों को फ़ोन करके घटना की जानकारी दी। कुछ ही देर में वे सभी वहां पहुँच गए। उनके पहुँचने पर लड़की के पिता सहित हम सभी, कोई बीस लोग, थाने में ही धरने पर बैठ गए। लगभग तीन घंटे के बाद एसएचओ ने आकर हम लोगों को आश्वासन दिया और चौबीस घंटे का समय देने की बात की। पिता का बयान दर्ज हुआ और स्थानीय अख़बारों में हमारे समाचार छपने शुरू हो गए।”
कुलदीप कुमार के अनुसार, “अगले दिन यानी 18 सितम्बर को मैं थाना इंचार्ज के पास पहुंचा। उन्होंने बताया कि टीम गठित कर दी है। क्या, कहाँ, कैसे पूछने पर वह कुछ नहीं बोले। तब हम सब एसपी ऑफिस पहुंचे। एसपी साहब तो नहीं थे लेकिन हमारी मुलाक़ात एडिशनल एसपी प्रकाश कुमार से हुई। उन्होंने बताया कि वे खुद इस सारे मामले को देख रहे हैं। उन्होंने यह भी इत्तला दी कि दबाव बनाने के लिए नामजद मुख्य अभियुक्त के दो परिजनों को उठा लिया है। मैंने कहा कि ‘मुख्य’ का क्या मतलब, जब चार लोग नामजद हैं इसी दिन शाम को सीओ रामशब्द लड़की का बयान लेने अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज पहुंचे।”
कुलदीप कुमार ने बताया, “सीओ को दिए गए अपने बयान में लड़की ने बताया कि उसके साथ गलत काम हुआ है...कि वो चार लोग थे। उसने उन चारों के नाम बताए। लेकिन पुलिस ने एक को ही नामजद किया। रिपोर्ट में अभी तक केवल ‘हत्या का प्रयास’ और ‘एससी-एसटी एक्ट’ की धारा ही थी और बलात्कार की धारा नहीं जोड़ी गई थी।”
कांग्रेस हुई सक्रिय
वह बताते हैं कि वे लोग वहीं थाने में धरने पर बैठ गए। 20 सितम्बर को संदीप गिरफ़्तार हुआ। 21 को हाथरस कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल एसपी से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि तीन और अभियुक्तों- रवि, लवकुश और रामकुमार को भी नामजद किया जाए और उनकी गिरफ़्तारी हो। इसके बाद 22 सितम्बर को लखनऊ से कांग्रेस के नेता पूरे मामले की जाँच के लिए हाथरस पहुंचे। इनमें पूर्व मंत्री संदीप कुमार, ‘एससी-एसटी’ सेल के प्रदेश उपाध्यक्ष योगी जाटव और प्रदेश कांग्रेस के संगठन सचिव संजीव शर्मा थे।
पीड़िता ने बताई पूरी घटना
ये सभी नेतागण एसएसपी से भी मिले। मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में कुलदीप कुमार भी थे। बाद में नेताओं की इस टीम को कुलदीप पीड़िता से मिलवाने अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज ले गए। पीड़िता ने अपने साथ हुए हादसे का पूरा हाल सुनाया। इन लोगों ने डॉक्टरों के इंचार्ज से भी मुलाक़ात कर पीड़िता का हालचाल लिया। डॉक्टर ने मरीज़ के हालात के बारे में और बलात्कार किये जाने की जानकारी दी। इसी बीच सीओ रामशब्द वहां पहुँच गए। सीओ ने लड़की के पिता से कहा कि दिल्ली से 'सफाई कर्मचारी आयोग' के सदस्य श्यामलाल वाल्मीकि आए हैं और तुम्हें हाथरस बुलाया है।
कुलदीप बताते हैं, “हम लोगों ने इसका प्रतिरोध किया और कहा कि यह यहाँ अस्पताल में देखभाल में जुटे हैं, वाल्मीकि जी अगर मिलना चाहते हैं तो यहाँ आ जाएं। सीओ चले गए। बाद में वाल्मीकि जी आए। लड़की ने उन्हें भी आपबीती सुनाई। घरवालों ने उसे दिल्ली ‘एम्स’ में दाखिल करवाने का अनुरोध किया। हम लोगों ने मुआवज़े की बात की। वह आश्वासन देकर चले गए। स्थानीय मीडिया हमारी ख़बरों को पर्याप्त स्थान दे रहा था।”
योगी सरकार कैसे कह रही है कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ। देखिए, वीडियो -
बलात्कार की धारा जोड़ने में देरी क्यों
कुछ पल ठहर कर कुलदीप आगे बताते हैं, "अलीगढ़ से लौट कर हम लोग एसपी से मिलने गए। उन्होंने हमें दो घंटे तक इंतज़ार करवाया। हमने उनसे बलात्कार का मामला शामिल किये जाने की मांग की। काफी देर बाद वह बोले कि अगर ज़रूरी हुआ तो एफ़आईआर में बलात्कार वाली धारा जोड़ेंगे। हम लोगों के यह पूछने पर कि बाक़ी की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही, उन्होंने जवाब दिया-जल्द होगी। इसी दिन हम लोग गाँव जाकर लड़की की मां और दादी से भी मिले। 22 सितम्बर की रात में हमें ख़बर मिली कि बलात्कार की धारा जोड़ दी गई है। इसी रात बाक़ी अभियुक्त भी गिरफ़्तार कर लिए गए।"
कुलदीप के अनुसार, अगले दिन यानी 23 सितम्बर को उन लोगों का प्रतिनिधिमंडल ज़िलाधिकारी से मिला। इस प्रतिनिधिमंडल में लखनऊ से आए नेताओं के अलावा कांग्रेस के हाथरस ज़िला अध्यक्ष चन्द्रगुप्त और शहर अध्यक्ष विनोद कर्दम भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि हम लोगों ने डीएम साहब को ज्ञापन दिया जिसमें पीड़िता को ‘एम्स’ में शिफ्ट करने के अलावा मुआवज़े और परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की मांग थी। हमें इस ज्ञापन को शासन को भेजने का आश्वासन दिया गया।
झूठ बोल रहा योगी का प्रशासन
यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि पीडिता की मृत्यु के बाद प्रशासन लगातार यह सफाई देता रहा कि वह पीड़िता को दिल्ली शिफ्ट करना चाहता था लेकिन घर वालों के विरोध के चलते ऐसा न हो सका। जबकि असलियत यह है कि पीड़िता के परिजन और कांग्रेसी बीती 18 सितम्बर से ही पुलिस और प्रशासन से पीड़िता को एम्स में शिफ्ट करने का अनुरोध कर रहे थे।
कुलदीप के अनुसार, "26 सितम्बर को मैंने और कांग्रेस की 'अनुसूचित जाति सेल' के लोगों ने पीड़िता को दिल्ली भेजने की मांग को लेकर कलेक्ट्रेट पर धरना दिया। डीएम साहब तो नहीं मिले लेकिन उन्होंने प्रतिनिधि के रूप में एसडीएम को भेजा जो हमारा ज्ञापन लेकर चले गए। 27 को मैं अलीगढ़ अस्पताल पहुंचा तो पुलिस ने मुझे रोक लिया। सीओ हाथरस वहां मौजूद थे। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने मरीज़ से बाहर से आने वालों से ज़्यादा मिलना-जुलने से मना कर दिया है। मैंने कहा कि ठीक है, लड़की के पिता को बाहर बुला दें। रामबाबू जी बाहर आये तो मैंने उन्हें दिलासा दिया और कहा- दादा चिंता मत करना, हम सभी लड़की को दिल्ली भेजने की कोशिश में लगे हैं। वह रो रहे थे।”
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मैं कई दिनों से महसूस कर रहा था कि पुलिस और सीआईडी मेरा पीछा कर रही है। कई बार मैंने रुक कर पीछा करने वालों को रोका-टोका भी। फिर पुलिस के ही एक मित्र ने बताया कि मेरा फ़ोन सर्विलांस पर लगा दिया गया है। मैंने फ़ोन नम्बर बदलने शुरू कर दिए।
कुलदीप कुमार
दुनिया से चली गई पीड़िता
“28 सितम्बर को ख़बर मिली कि पुलिस लड़की को दिल्ली ले गयी। मैंने उसके भाई से फ़ोन पर कहा- घबराना नहीं, ज़रुरत पड़े तो बताना, हम लोग भी आ जाएंगे। भाई से दिन भर फ़ोन पर बात होती रही। 29 की सुबह-सुबह सात बजे भाई को फ़ोन किया तो वह रो कर बोला- भैया, दीदी तो चली गई। मैंने कहा मैं सफ़दरजंग पहुँचता हूँ। एक बजे जब हम लोग वहां पहुंचे तो एसडीएम गाज़ियाबाद मौजूद थे। काफी लोग जमा थे। कई बार लाठी चार्ज की नौबत आई। भाई और पिता ने बताया कि लड़की की बॉडी कहीं छिपा दी गई है। बता नहीं रहे। पोस्टमार्टम में नहीं है। मैंने भी जाकर पोस्टमार्टम विभाग में पूछताछ की तो कहा गया कि बॉडी को पुलिस ले गई। शाम को जब तनाव बहुत था, पुलिस ने बहाना बनाकर बाप-बेटे को वहां से गायब कर दिया। रात में मालूम हुआ कि उन्हें हाथरस ले गए हैं। हम लोग भी हाथरस लौट आए। अगली सुबह गए तो गाँव के बाहर बेरिकेडिंग लगी थी। मुझे जाने नहीं दिया। आगे की कहानी तो आप जानते ही हैं।”
इंजीनियरिंग के बजाए समाज सेवा
कुलदीप के चेहरे पर गहरा तनाव है। उनकी आवाज़ बार-बार टूटती है। वह कुछ-कुछ देर बाद अपनी घड़ी देखते हैं। या तो उन्हें कहीं जाने की जल्दी है या वह इस जगह से झटपट छुटकारा चाहते हैं। काफ़ी कोशिशों के बाद वे मुझसे बात करने को तैयार हुए। मुझे उनसे जुड़ने और उन्हें यह विश्वास दिलाने में 2 दिन लगे कि मैं पत्रकार हूँ, कोई पुलिस वाला नहीं।
बीटेक पास करने के बाद वह इंजीनियर की नौकरी करना चाहते थे, साथ-साथ सामाजिक सेवा भी। दोनों काम नहीं हो पा रहे थे। अंत में वह सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। फिर राजनीतिक दल में शामिल हो गए। इंजीनियर बनने के बजाय क्या वह इस भूमिका से संतुष्ट हैं इस सवाल पर वह हाथ जोड़ते हैं और "थैंक्यू सर" कह कर चले जाते हैं।