चार साल तक जेल में रहने के बाद शशिकला जब चेन्नई पहुंचीं और उनके स्वागत में समर्थकों का हुजूम उमड़ा तो इससे सबसे ज़्यादा परेशानी तमिलनाडु में सरकार चला रही ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक (एआईएडीएमके) को हुई। एआईएडीएमके के लाख ना चाहने के बाद भी शशिकला ने एलान कर दिया है कि वे सक्रिय राजनीति में लौटेंगी। राज्य में अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले शशिकला का यह एलान बेहद अहम है।
शशिकला के इस एलान से एआईएडीएमके घबरा गई है। इसीलिए उनके बाहर आते ही एआईएडीएमके ने एलान कर दिया कि उनकी पार्टी का इस दिग्गज नेता से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन क्या शशिकला एआईएडीएमके को वास्तव में नुक़सान पहुंचा सकती हैं, इस पर तो बात करेंगे ही, उससे पहले थोड़ा शशिकला के बारे में जानते हैं।
शशिकला जिनका पूरा नाम वीके शशिकला है, पूर्व मुख्यमंत्री जे.जयललिता का दाहिना हाथ थीं। 2016 में जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके में टूट हुई थी और ओ. पन्नीरसेल्वम और ई. पलानिस्वामी के गुट बन गए थे। लेकिन यह शशिकला का ही डर था कि दोनों ने हाथ मिला लिए थे और शशिकला जब जेल में थीं, तभी अगस्त 2017 में उन्हें और उनके भतीजे दिनाकरन को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। जानकारों के मुताबिक़, ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वह मुख्यमंत्री ई. पलानिस्वामी और उप मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम के लिए राजनीतिक चुनौती बन सकती थीं।
शशिकला तीन दशक तक जयललिता के साथ रहीं। भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए जाने के कारण वह अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकतीं लेकिन इसके बाद भी वह राज्य के राजनीतिक समीकरणों को बदलने की ताक़त रखती हैं।
अम्मा और चिनम्मा
जयललिता को जहां अम्मा कहा जाता था, वहीं शशिकला को उनके समर्थक चिनम्मा कहते हैं। चिनम्मा का मतलब होता है मौसी। तमिलनाडु में जब तक जयललिता के हाथ में सत्ता रही, शशिकला की ताक़त बढ़ती गई। पार्टी और सरकार में उनकी जबरदस्त पकड़ थी।
शशिकला के जेल में ही रहने के दौरान उनके भतीजे दिनाकरन ने अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम (एएमएमके) नाम से अपनी पार्टी बनाई। पार्टी ने आरके नगर सीट का उपचुनाव जीता और लोकसभा चुनाव 2019 में 6 फ़ीसदी वोट हासिल किए।
2019 में एआईएडीएमके-बीजेपी की हार
लोकसभा चुनाव 2019 में एआईएडीएमके-बीजेपी का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा था और उसे 39 में से सिर्फ 1 सीट मिली थी। इसके बाद ना चाहते हुए भी एआईएडीएमके को बीजेपी के साथ गठबंधन का एलान करना पड़ा क्योंकि शशिकला की पार्टी के चुनाव लड़ने की स्थिति में एआईएडीएमके को किसी दल का राजनीतिक सहारा ज़रूर चाहिए जैसे उसकी राजनीतिक विरोधी डीएमके के पास कांग्रेस का सहारा है।
डीएमके-कांग्रेस गठबंधन फायदे में!
शशिकला की पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर एआईएडीएमके के भीतर भी हलचल है। एआईएडीएमके के कुछ बड़े नेता और सरकार में शामिल मंत्री चाहते हैं कि शशिकला फिर से पार्टी में लौटें। निश्चित रूप से एआईएडीएमके-बीजेपी के गठबंधन में इसे लेकर चिंता है कि शशिकला की पार्टी ने अगर विधानसभा का चुनाव लड़ा तो एआईएडीएमके के वोटों का बंटवारा होगा और इसका सीधा फायदा डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को होगा।
यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी शशिकला की पार्टी से गठबंधन करने की कोशिश कर रही है। शशिकला जिस थेवर समुदाय से आती हैं, वह एआईएडीएमके का कोर वोट बैंक रहा है। शशिकला की पार्टी के चुनाव लड़ने पर यह वोट बैंक निश्चित रूप से उनके साथ खड़ा हो सकता है।
एआईएडीएमके बेचैन
शशिकला के स्वागत में पहुंचने वाले एआईएडीएमके के सात कार्यकर्ताओं को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके अलावा शशिकला की कार पर एआईएडीएमके का झंडा लगाए जाने पर भी राज्य सरकार के एक मंत्री ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी और शशिकला के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग की। इससे समझा जा सकता है कि शशिकला के जेल से बाहर आने से एआईएडीएमके और राज्य सरकार के भीतर कितनी बेचैनी है।
ई. पलानिस्वामी और ओ. पन्नीरसेल्वम इस बात को जानते हैं कि एआईएडीएमके के भीतर और राज्य के मतदाताओं के बीच भी शशिकला की पकड़ है। इस बात की पूरी संभावना है कि एआईएडीएमके से नाराज़ नेता शशिकला की पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं और इससे उसे राजनीतिक नुक़सान होगा। एआईएडीएमके के कमजोर होने का सीधा फ़ायदा शशिकला और डीएमके को होगा और ऐसे में एआईएडीएमके के लिए सत्ता में वापसी कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
जयललिता की मौत के बाद पार्टी की बागडोर को अपने हाथ में लेने वालीं शशिकला को जेल नहीं जाना पड़ा होता तो निश्चित तौर पर एआईएडीएमके में उनका क़द जयललिता जैसा ही होता।
ई. पलानिस्वामी और ओ. पन्नीरसेल्वम भले ही राज्य में सरकार चला रहे हों लेकिन उनका राजनीतिक क़द शशिकला जैसा नहीं है। इन दोनों नेताओं की घबराहट बताती है कि उन्हें शशिकला के कारण सियासी नुक़सान होने की आशंका है।