विराट कोहली के लिए संन्यास लेने का वक्त आ चुका है! इससे ज़्यादा सनसनीखेज हेडलाइन आज के दौर में मीडिया के लिए भला और क्या हो सकती है। लेकिन, अगर वाक्य को थोड़ा संशोधित कर दिया जाए और ये कहा जाय कि क्या कोहली के लिए अब भारत की टी20 टीम में जगह नहीं बनती है तो फिर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी? बौखलाने वाले तो अब भी बौखलायेंगे और वो आपके सामने शायद ऐसे आंकड़े पेश करें कि आपके सारे तर्क धरे के धरे रह जायें।
अब जिस बल्लेबाज़ का औसत टी20 में भारत के लिए 51 से ऊपर और स्ट्राइक रेट 137 से ज़्यादा का हो तो उसके बारे में ऐसी बातें सोचना भी कितना सही है?
इंग्लैंड के डेविड मलान जिनको टी 20 फॉर्मेट में इंग्लैंड का बेहद शानदार बल्लेबाज़ माना जाता है उनका भी स्ट्राइक रेट कोहली जैसा ही है लेकिन औसत 41 से ऊपर। लेकिन, इस फॉर्मेट में सिर्फ शानदार औसत महानता की निशानी नहीं है और ना ही ये बात साबित करती है कि ये मैच-जिताने वाले खिलाड़ियों के औसत हैं।
ये मांग अब दबी ज़ुबां में उठनी शुरु हो गयी है कि कोहली को कम से कम एक फॉर्मेट छोड़ देना चाहिए। एक अंत्तराष्ट्रीय शतक के लिए कोहली का संघर्ष अब उसी दौर की याद दिलाने लगा है जब सचिन तेंदुलकर अपने 100वें शतक के लिए एकदम से बेबस और लाचार से दिखने लगे थे। क्रिकेट में शतक की अहमियत इसलिए ज़्यादा होती है क्योंकि ये इस बात को बताने के लए काफी होता है कि किसी बल्लेबाज़ का क्रीज़ पर दबदबा ठीक ठाक समय तक रहा है और ना कि इत्तेफाक से कुछ रन इधर-उधर बन गये। अगर कोहली कप्तान नहीं होते तो पिछले साल टी20 वर्ल्ड कप के दौरान भी उनके नाम पर गंभीर चर्चा होती।
दरअसल, कोहली की समस्या सिर्फ कोहली की ही समस्या नहीं है बल्कि ये टीम इंडिया के टॉप ऑर्डर की एक बड़ी परेशानी की वजह बन गई है क्योंकि रोहित शर्मा औऱ के एल राहुल के खेलने का अंदाज़ भी एक तरह से कोहली जैसा ही है।
जो क्रिकेट की पारंपारिक मान्यताओं के अनुसार शुरु में संभल कर और बाद में बल्ला हांक कर धीमी शुरुआत को संतुलित कर लेने की दुहाई देता है। लेकिन, टी20 क्रिकेट टेस्ट और वन-डे की तुलना में एक निराला खेल है। और यही वजह है कि जहां टेस्ट और वन-डे में खिलाड़ियों की साख को काफी अहमियत दी जाती है वहीं टी20 में कोई भी इसकी परवाह नहीं करता है।
यकीन नहीं होता है तो आईपीएल को ही देख लें। इस टूर्नामेंट में एक या नहीं कई मौके पर क्रिस गेल की शख्सियत तक को नहीं बख्शा गया। कभी उन्हें नीलामी में खरीदने से इंकार कर दिया गया तो कभी टीम में रहते हुए प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं दी गई और कई बार तो जन्मजात ओपनर की भूमिका निभाने वाले गेल को तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करनी पड़ी।
जानकार ऐसे में तर्क दे रहे हैं कि अगर आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में कोच और मैनेजमेंट बहुत ज़्यादा साख से प्रभावित ना होकर इस बात पर ज़ोर देता है कि खिलाड़ी टीम संतुलन में फिट बैठते हैं या नहीं तो टीम इंडिया के चयनकर्ता और बीसीसीआई यही सोच क्यों नहीं रखती है?
टीम इंडिया के पूर्व कोच रवि शास्त्री बार बार कमेंट्री बॉक्स से कोहली को सलाह दे रहें हैं कि उन्हें हर हाल में आईपीएल के दौरान ही ब्रेक ले लेना चाहिए ताकि वो तरोताजा होकर टीम इंडिया के लिए खेलें। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज़ी कोच और मौजूदा समय में रॉयल चैलेंजर्स बैगंलोर के हेड कोच संजय बांगर कह रहें है कि कोहली बस एक बड़ी पारी से कुछ ही दूर हैं।
इरफान पठान से लेकर केविन पीटरसन तक जैसे हालिया रिटायर्ड खिलाड़ी भी क्लास इज पर्मानेंट, फॉर्म इज टैम्पररी की दलीलें दे रहें हैं। दरअसल, अगर क्रूरतावश ही अगर ये कहा जाए तो क्लास और फॉर्म वाली इस थ्योरी के चलते ना जाने कितने दिगग्जों को अपने आखिरी दौर में ज़रुरत से ज़्यादा मैच खेलने को मिल गए। अगर यकीन नहीं आता है तो कभी जाकर विवियन रिचर्ड्स, तेंदुलकर, रिकी पोटिंग और कपिल देव जैसे खिलाड़ियों के आखिरी 2-3 सालों के आंकड़ों पर ग़ौर फरमा लें।
कहने का मतलब ये है कि बड़े से बड़े महारथियों को भी इस खेल के दौरान इस बात का एहसास नहीं होता है कि उनका अंत करीब आ चुका है। खिलाड़ी जितना बड़ा हो, वो इस सत्य को उतनी ही शक्ति से झुठलाने की कोशिश करता है।
बहरहाल, कहने या मतलब ये नहीं है कि 34 साल के कोहली अब अचानक से अपने करियर के आखिरी पड़ाव में आ चुके हैं। कहने का मतलब सिर्फ ये है कि शायद कोहली को अपने खेल और आगे की राह को अलग नज़रिये से देखने की ज़रुरत आ पड़ी है।
फिलहाल टीम इंडिया के पास सूर्यकुमार यादव से लेकर श्रैय्यस अय्यर जैसे युवा और आक्रामक खिलाड़ियों का ऐसा विकल्प है जो टी20 फॉर्मेट में कोहली से बेहतर नंबर 3 की भूमिका निभा सकते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि ये ऐसी बात है जो हर किसी के गले से आसानी से उतरेगी नहीं और सिर्फ ऐसा कहने भर ही कोहली के करोड़ों समर्थक उत्तेजित हो जायेंगे।