प्रयागराज में बुलडोज़र एक्शन अमानवीयः सुप्रीम कोर्ट, मुआवजे का आदेश

05:45 pm Apr 01, 2025 | सत्य ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने प्रयागराज में मकानों के विध्वंस को "अमानवीय और गैरकानूनी" करार दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को कानून के शासन का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि नागरिकों के आवासीय ढांचों को इस तरह से ध्वस्त नहीं किया जा सकता। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीडीए को निर्देश दिया कि वह प्रभावित मकान मालिकों को छह सप्ताह के भीतर 10 लाख रुपये प्रति मकान मालिक के हिसाब से मुआवजा दे। यह फैसला देश में "बुलडोजर अन्याय" के बढ़ते चलन के खिलाफ एक मजबूत संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

प्रयागराज में मार्च 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ मकानों को यह कहकर ध्वस्त कर दिया था कि यह जमीन कुख्यात गैंगस्टर-पॉलिटिशियन अतीक अहमद से संबंधित थी, जिसकी 2023 में पुलिस मुठभेड़ में हत्या हो गई थी। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में दावा किया कि यह कार्रवाई गलत आधार पर की गई थी। मकानों को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के तोड़ दिया गया। नोटिस जारी होने के 24 घंटे के भीतर ही बुलडोजर से मकानों को ढहा दिया गया, जिससे मकान मालिकों को अपील करने या अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं मिला।

सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्रवाई को "हैरान करने वाला" बताया और कहा कि यह "कानून के शासन के खिलाफ एक गलत संकेत" देता है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर बिना उचित सुनवाई और प्रक्रिया के इतनी जल्दबाजी में यह कार्रवाई क्यों की गई।

यह बेहद गंभीर है। हमें खेद है कि हमें एक संवैधानिक कोर्ट (इलाहाबाद हाईकोर्ट) के खिलाफ कठोर शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है, लेकिन यह ऐसा मामला है जहां संवेदनशीलता की पूरी कमी दिखती है।


-जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह, सुप्रीम कोर्ट 1 अप्रैल 2025 सोर्सः लाइव लॉ

अदालत ने कहा कि "आश्रय का अधिकार" और "निष्पक्ष प्रक्रिया" मौलिक अधिकार हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।" इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2025 को इस मामले में यूपी सरकार की "उच्चस्तरीय" कार्रवाई की आलोचना की थी और कहा था कि यह "हमारे विवेक को झकझोरता है।" कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि इस तरह की कार्रवाइयों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

मुआवजे का आदेश और दिशानिर्देशः सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पीडीए को सख्त निर्देश दिए कि वह छह सप्ताह के भीतर हर प्रभावित मकान मालिक को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दे। इसके साथ ही, कोर्ट ने नवंबर 2024 में जारी अपने व्यापक दिशानिर्देशों का हवाला दिया, जिसमें उसने मनमाने और भेदभावपूर्ण विध्वंस को रोकने के लिए नियम निर्धारित किए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कुछ दिशा निर्देशों को फिर से दोहराते हुए कहा-

  • विध्वंस से पहले उचित नोटिस देना अनिवार्य है।

  • प्रभावित पक्ष को सुनवाई का पूरा मौका मिलना चाहिए।

  • विध्वंस का आदेश अंतिम होने के बाद भी 15 दिन का समय दिया जाए ताकि लोग अपनी आपत्ति दर्ज कर सकें या व्यवस्था कर सकें।

याचिकाकर्ताओं की राहत, सरकार की चुप्पी

याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी, लेकिन वहां से राहत न मिलने पर वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उन्हें बड़ी राहत मिली है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि सरकार इस फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर सकती है। यूपी के मुख्यमंत्री खुलेआम बुलडोजर जस्टिस की वकालत कर रहे हैं और यूपी के तमाम शहरों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर समुदाय विशेष के लोगों के घर तोड़े जा रहे हैं।

"बुलडोजर जस्टिस" पर बढ़ता विवादः उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में "बुलडोजर जस्टिस" का चलन बढ़ा है, जहां अपराधियों या संदिग्धों की संपत्तियों को बिना लंबी कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त कर दिया जाता है। बीजेपी शासित राज्य में इसे अपराध पर सख्ती का प्रतीक बताया जाता है, लेकिन आलोचक इसे "कानून का उल्लंघन" और "प्रतिशोध की राजनीति" करार देते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस विवादित प्रक्रिया पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाता है।

इस फैसले का स्वागत करते हुए कई कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे "न्याय की जीत" बताया। एक वरिष्ठ वकील ने कहा, "यह फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो प्रशासन की मनमानी का शिकार होते हैं।" वहीं, प्रयागराज के कुछ स्थानीय निवासियों ने कहा कि सरकार को अपराध से लड़ने के लिए कानूनी रास्ते अपनाने चाहिए, न कि "बुलडोजर की ताकत" दिखानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए और सख्त कदम उठा सकता है। इस बीच, सभी की नजरें उत्तर प्रदेश सरकार पर टिकी हैं कि वह इस फैसले का पालन कैसे करती है और भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों से कैसे निपटती है। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी बहस का विषय बना हुआ है। फिलहाल, यह फैसला देश में कानून के शासन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

फिलहाल, यह फैसला देश में कानून के शासन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी