केरल की मुख्य सचिव से रंगभेद: कहां हैं संस्कारियों के समरसता वाले दावे?

01:55 pm Apr 01, 2025 | अनन्त मित्तल

दुनिया भर में रंगभेद मुक्ति संघर्ष की प्रेरणा बने महात्मा गांधी के देश भारत में, आजादी के 77 साल बाद भी रंगभेद अपनाए जाने का मुद्दा उठाया जाना यह दर्शाता है कि हमारे समाज में त्वचा के रंग और जातिगत भेदभाव जैसी गंभीर समस्याएँ गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं। यह और भी आश्चर्यजनक है कि यह सवाल देश के सबसे प्रगतिशील राज्य केरल की मुख्य सचिव, शारदा मुरलीधरन, द्वारा स्वयं उठाया गया है। इससे स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा सामाजिक समरसता को लेकर किए जा रहे दावे महज़ खोखले हैं।

रंग, नस्ल और लिंग आधारित भेदभाव के खिलाफ महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला, बाबासाहेब अंबेडकर, संत कबीर, सावित्रीबाई फुले, अहिल्याबाई होल्कर और मीरा बाई जैसे महापुरुषों ने संघर्ष किया। फिर भी, यह सामाजिक बीमारी आज भी समाप्त नहीं हो पाई है। महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे, तब उन्हें 7 जून 1893 को पीटर मारबर्ग स्टेशन पर फर्स्ट क्लास डिब्बे से केवल अश्वेत होने के कारण धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया था। इसी घटना ने उन्हें रंगभेद के खिलाफ संघर्ष की ओर प्रेरित किया और अहिंसा एवं सत्याग्रह की अवधारणा को जन्म दिया।

भारत में रंगभेद की भयावह सच्चाई

दुखद यह है कि जिस महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर दुनियाभर में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन हुए, उनके अपने देश में ही 21वीं सदी में भी त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव हो रहा है। शारदा मुरलीधरन ने यह मुद्दा उठाकर दिखाया कि भारतीय समाज में यह पूर्वाग्रह कितनी गहराई तक समाया हुआ है।

यह भी चिंताजनक है कि भारत में जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति इस भेदभाव को और अधिक गहरा कर रही है। ताजा उदाहरण समाजवादी पार्टी के दलित सांसद रामजीलाल सुमन के आगरा स्थित घर पर करणी सेना द्वारा किया गया हमला है। यह हमला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आगरा में मौजूदगी के दौरान हुआ, जो कानून व्यवस्था पर ‘जीरो टॉलरेंस’ का दावा करते हैं।

राजनीतिक नेतृत्व और रंगभेद

बीते वर्षों में जातिगत भेदभाव के कई मामले सामने आए हैं। बिहार में कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के मंदिर दर्शन के बाद उसे गंगाजल से धोने की घटना हो या समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा मुख्यमंत्री निवास खाली करने के बाद उसे गंगाजल से शुद्ध करवाने की शर्मनाक हरकत—ये सभी घटनाएँ दर्शाती हैं कि भारतीय समाज में नस्ल और जाति आधारित भेदभाव कितनी गहराई तक फैला हुआ है।

मध्य प्रदेश में भी एक दलित व्यक्ति पर पेशाब करने की घटना ने जातिगत भेदभाव की भयावहता को उजागर किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पीड़ित के पैर धोने की कोशिश मात्र लीपापोती साबित हुई। यह विडंबना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान स्वयं पिछड़ी जाति से होने का दावा करते हैं, लेकिन जातिगत भेदभाव के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

शारदा मुरलीधरन का साहसिक खुलासा

शारदा मुरलीधरन, जो 1990 बैच की आईएएस अधिकारी हैं, ने हाल ही में अपने फेसबुक पोस्ट में बताया कि उन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान अपने काले रंग के कारण भेदभाव का सामना किया। उन्होंने लिखा कि चाहे घर हो या ऑफिस, हर जगह सांवली महिलाओं को भेदभाव झेलना पड़ता है। उन्होंने इस धारणा को चुनौती दी कि केवल गोरा रंग ही सुंदरता का प्रतीक है।उन्होंने यह भी बताया कि बचपन में उन्होंने अपनी माँ से पूछा था कि क्या वे अगले जन्म में गोरी त्वचा के साथ जन्म ले सकती हैं। हालाँकि, उनके बेटे ने उन्हें आत्मविश्वास के साथ अपने काले रंग को अपनाने की सीख दी। उन्होंने कहा, “काला रंग सुंदर है, काला रंग खूबसूरती है, मुझे काला रंग पसंद है।”

केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन

समाज में रंगभेद की जड़ें और इसका समाधान

शारदा मुरलीधरन के बयान ने भारतीय समाज में रंगभेद की गहरी जड़ों को उजागर कर दिया। केरल, जिसे देश का सबसे शिक्षित और प्रगतिशील राज्य माना जाता है, वहाँ तक अगर रंगभेद मौजूद है, तो यह पूरे भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

केरल के नेता प्रतिपक्ष वीडी सतीशन और सीपीआई (एम) के सांसद के राधाकृष्णन ने उनकी ईमानदारी की सराहना की। यह चर्चा फेयर एंड लवली जैसी गोरेपन की क्रीम के विज्ञापनों और विवाह विज्ञापनों में 'अत्यधिक गोरी वधू' की माँग के रूप में भी प्रतिबिंबित होती है। इससे यह साफ़ है कि भले ही 15 अगस्त 1947 को भारत ने गोरों की गुलामी से मुक्ति पा ली हो, लेकिन रंग और जातिगत भेदभाव की बेड़ियाँ अब भी समाज को जकड़े हुए हैं।

भारतीय लोकतंत्र में स्त्रियों को मताधिकार से लेकर शिक्षा और नौकरी के समान अवसर प्राप्त हैं। फिर भी, जब केरल की मुख्य सचिव जैसी प्रभावशाली महिला रंगभेद का शिकार होती हैं, तो यह बेहद चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।

शारदा मुरलीधरन ने न केवल अपने साथ हुए रंगभेद को उजागर किया, बल्कि समाज में व्याप्त इस भेदभाव के खिलाफ लड़ाई की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। यह बीमारी अमूमन समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानता से पैदा होती है, और ताजा आँकड़े बताते हैं कि पिछले 10 वर्षों में अमीर-गरीब की खाई भारत में लगातार गहरी हो रही है।

समाज को इस मानसिक बीमारी से मुक्त करने के लिए हमें शिक्षा, जागरूकता और कठोर कानूनी उपायों को बढ़ावा देना होगा, ताकि रंगभेद और जातिगत भेदभाव की इस कुप्रथा का समूल नाश किया जा सके।