विराट कोहली के टेस्ट कप्तानी करियर में यह पहला मौक़ा रहा जब उन्होंने टॉस जीता, लेकिन मैच हार गए। 26 मैचों के कप्तानी करियर में 21 मैच में जीत और 4 में ड्रॉ का बेहद गर्व करने वाला रिकॉर्ड एडिलेड की दूधिया रोशनी में गुलाबी गेंद से चकनाचूर होकर बिखर गया।
लेकिन, एडिलेड से मुंबई की फ्लाइट लेते समय कोहली को इस रिकॉर्ड के टूटने का मलाल नहीं, बल्कि एक अजीब से रिकॉर्ड से वास्ता होना ज़्यादा परेशान करेगा। टीम इंडिया का एडिलेड की दूसरी पारी में महज़ 36 रनों पर ऑल आउट होना भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे शर्मनाक बल्लेबाज़ी प्रदर्शन में शुमार होगा।
और ऐसा हर दिन, हर महीने, हर साल या फिर हर दशक में नहीं होता। ऐसा तो 4-5 दशक में एक बार ही होता है जैसा कि 1974 में सिर्फ 42 रनों पर ऑल ऑउट होने के बाद 2020 में टीम इंडिया ने इतिहास का सबसे न्यूनतम स्कोर छुआ।
कोहली के पहले गावस्कर!
सुनील गावस्कर, फ़ारुख़ इंजिनीयर, अजीत वाडेकर, गुंडप्पा विश्वनाथ वाले टॉप ऑर्डर को अपने शानदार निजी रिकॉर्ड के बावजूद पूरे करियर में यह बात कचोटती रही और ऐसा कोहली के साथ भी होता रहेगा।डे नाइट टेस्ट मैचों में अगर ऐसा पहली बार हुआ कि कोई टीम सिर्फ 36 रनों पर सिमट गई तो टेस्ट इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि कोई भी बल्लेबाज़ एक पारी के दौरान दहाई आंकड़े को छू नहीं पाया।
बुरा रिकार्ड!
यह महज़ इत्तेफाक़ ही है कि 4 साल पहले ठीक इसी दिसंबर 19 को कोहली की ही कप्तानी में टीम इंडिया ने 7 विकेट के नुकसान पर 759 रन बनाकर इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पारी घोषित की थी और अपना सर्वोच्च स्कोर बनाया था। वक़्त का पहिया ऐसा घूमा कि 19 दिसंबर को भारत उसी कप्तान की अगुवाई में अपने सबसे न्यूनतम स्कोर पर आउट हुआ।वैसे, भारत एक और बड़ी शर्मिंदगी से बच गए। जसप्रीत बुमराह के तौर पर भारत ने जब अपना दूसरा विकेट खोया तो स्कोर 15 रन था। और देखते ही देखते भारत ने 15 रन पर 5 विकेट गंवा दिए।
जब कोहली छठे विकेट के तौर पर सिर्फ 19 रन के कुल स्कोर पर वापस लौट गये तो टेस्ट इतिहास के सबसे न्यूनतम स्कोर 26 रन (जो न्यूज़ीलैंड के नाम है) जो 1955 से कई मौके पर टूटते-टूटते बच गया था, वह बिलकुल संभव दिखने लगा था। बहरहाल, हनुमा विहारी, रिद्दीमान साहा और उमेश यादव ने कम से कम ऐसा होने से रोक दिया।
ख़ैर, इस हार का दर्द नतीजे से ज़्यादा और गहरा है। मैच ख़त्म होने के बाद अब टीम के सबसे बड़े बल्लेबाज़ कोहली अपने देश वापस लौट रहें है क्योंकि वे पिता बनने वाले हैं और अपनी पत्नी के साथ अपनी ज़िंदगी के सबसे यादगार पल में शामिल होना चाहतें हैं।
कोहली की कमी शुभमन गिल, के. एल. राहुल या फिर ऋषभ पंत किस हद तक पूरी कर सकते हैं, इस पर भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती है, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई खेमा इस बात से बहुत खुश होगा।
वी. वी. एस. लक्ष्मण की ही तरह कोहली को भी ऑस्ट्रेलियाई ज़मीं पर ऑस्ट्रेलियाई आक्रमण काफी रास आता है। एडिलेड में भी पहली पारी में भारत के लिए उन्होंने सबसे ज़्यादा रन बनाए थे।
सवाल दर सवाल
मेलबर्न टेस्ट से पहले भारत को कई सवालों के गुज़रना पड़ेगा। अंजिक्या रहाणे विदेश में पहली बार अब कप्तानी करेंगे और वह भी तब, जब टीम को इतनी क़रारी हार मिली है। उस पर से मुहम्मद शमी भी अगर फिट नहीं होते है तो यह समस्या और गहरा जायेगी।लेकिन, ऐसा नहीं है कि ये सब कुछ अचानक हुआ है। इस साल की शुरुआत में जब टीम इंडिया न्यूज़ीलैंड के दौरे पर थी, मैं भी उस सीरीज़ को कवर कर रहा था। भारत ने वहाँ पर पर भी 3-3 दिनों के भीतर कीवी आक्रमण के ख़िलाफ़ नतमस्तक होकर बुरी तरह से 2 टेस्ट गंवाये थे।
टीम की तैयारी का अंदाज़ देखकर मुझे अक्सर हैरानी होती थी कि आखिर रवि शास्त्री को कोच के तौर पर कर क्या रहे हैं
रवि शास्त्री क्या करते हैं
शास्त्री ने बल्लेबाज़ी की ज़िम्मेदारी विक्रम राठौड़ जो कि बल्लेबाज़ी कोच हैं, उन पर छोड़ रखी है और गेंदबाज़ी अपने यार भरत अरुण के कंधों पर। फील्डिंग के लिए एक और कोच एम वी श्रीधर हैं। शास्त्री का काम है- ]वाह विराट वाह क्या खूब!' कहते रहना!आखिर उनसे सवाल सौरव गांगुली और जे. शाह कब पूछेंगे मतलब यह कि रिकी पोटिंग को सिर्फ 6 हफ्ते के आईपीएल में पृथ्वी शॉ की वो तकनीकी कमी नज़र आ जाती है, जिसको वे लाइव कामेंट्री के दौरान बयान इस तरीके से करते हैं कि पल भर बाद ही मिचेल स्टार्क उन्हें वैसे ही आउट करते हैं! पोटिंग को इस बात के लिए नास्त्रेदमस कहा जाता है।
शास्त्री से क्या मजाल कि कोई यह सवाल पूछ ले कि भाई साहब आप तो मुंबई के हो, शॉ को काफी करीब से देख रहे हो, मुंबई के पूर्व दिग्गजों ने उनके बारे में राय दी है, आप उनकी तकनीक पर काम क्यों नहीं करते
स्टार लाइफ़ स्टाइल!
अफ़सोस की बात है कि शॉ ने कोच की स्टार वाली लाइफ़ स्टाइल मैदान के बाहर अपना ली है, लेकिन कोच अपने खेल दर्शन का वह पाठ इस युवा बल्लेबाज़ तक नहीं पहुँचा पायें है, जिसके चलते शास्त्री नंबर 11 से बल्लेबाज़ी करते हुए ओपनिंग करने पहुंच गए और बाद में इसी भूमिका में ख़ासे कामयाब भी रहे।पिछली बार जब भारत ने ऑस्ट्रेलियाई ज़मीं पर पहली बार टेस्ट सीरीज़ जीती तो शास्त्री तुरंत प्रेस कांफ्रेस में कूद कर पहुँच गए और उसे 1983 वर्ल्ड कप और 2007 टी20 वर्ल्ड कप और 2011 वर्ल्ड कप से भी बड़ी जीत बता दी।
बड़े दावे
लेकिन आलोचक उन्हें याद दिलाते रहे कि वह जीत बिना डेविड वार्नर और स्टीव स्मिथ के बग़ैर खेली कंगारू टीम के ख़िलाफ आयी थी।
विडंबना यह है कि इस बार एडिलेड में वार्न फिर से नदारद थे और स्मिथ ने इस टेस्ट में कुछ नहीं किया, फिर भी भारत को क़रारी हार मिली।
शास्त्री पर संकट
इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, न्यूज़ीलैंड में सीरीज़ हारने वाली कोहली एंड शास्त्री की जोड़ी के पास पिछले कुछ सालों में सिर्फ ऑस्ट्रेलियाई मैदान पर टेस्ट सीरीज़ में जीत इकलौती ऐसी बात थी जिससे वे कुछ हद तक सम्मान पाते।लेकिन अगर यह सीरीज़ भी हाथ से निकली तो यकीन मानिए, इसके नतीजे कोहली की टेस्ट कप्तानी और शास्त्री के कोचिंग करियर के लिए काफी महँगे साबित हो सकते हैं। आखिर यूं ही रोहित शर्मा खुद को भारत की कप्तानी के लिए ज़ोरदार दावेदार नहीं मान रहें है!