समाजवादी पार्टी यूपी में बहुत बड़े संकट से घिर गई है। सोमवार 19 फरवरी को सोशल मीडिया में खबरें आईं कि स्वामी प्रसाद मौर्य 22 फरवरी को अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी का ऐलान दिल्ली में करेंगे। मौर्य ने हाल ही में सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दिया था। अखिलेश यादव ने अपने करीबी और नेता विपक्ष रहे राम गोविन्द चौधरी को मौर्य के घर उन्हें मनाने के लिए भेजा। लेकिन अखिलेश के चारों तरफ एक नेता हो तो वो उसे मनाएं, सपा में असंतुष्टों की बाढ़ आई हुई है। इसी दौरान कुछ विधायकों के भाजपा और कांग्रेस में जाने की खबरें भी अटकल के तौर पर सामने आ रही हैं। लेकिन रविवार को सपा के एक और महासचिव और बदायूं से पांच बार सांसद रहे सलीम शेरवानी ने पार्टी में मुस्लिमों की स्थिति का जो मुद्दा उठाया है, उससे अखिलेश का संकट गहरा हो गया है।
अखिलेश यादव ने हाल ही में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का गठन किया था और यात्रा निकाली थी। स्वामी प्रसाद मौर्य पीडीए नीति के तहत सवर्ण वर्ग पर हमले शुरू कर दिए। उनके देवी-देवताओं पर बयान दे डाले। दलितों और पिछड़ों की बात करने वाली सपा और अखिलेश इस पर असहज हो गए। सपा के तमाम नेताओं ने बयान देकर स्वामी प्रसाद मौर्य को हिन्दू और सनातन विरोधी बयान देने से रोका। अखिलेश के करीबी सपा विधायक मनोज पांडे ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य दिमागी संतुलन खो चुके हैं। इस पर तकरार बढ़ी। दोनों तरफ से सार्वजनिक बयानबाजी हुई। मौर्य तब आहत हो गए। अखिलेश यादव ने एक बार भी मनोज पांडे को बयान देने से नहीं रोका। इसके बाद मौर्य का राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा सामने आया।
मौर्य की बेटी संघमित्र गौतम मौर्य भाजपा से लोकसभा सांसद हैं। इस बार उनका टिकट कटने की सूचना मौर्य परिवार को पहले से ही मिल चुकी है। सूत्रों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य चाहते थे कि उनकी बेटी को सपा उसी बदायूं से टिकट की घोषणा कर दे, जहां से वो अभी भाजपा सांसद हैं। अखिलेश ने बदायूं से अपने रिश्तेदार को टिकट देने का संकेत दिया था। इन सारे हालात ने मौर्य को सपा में विचलित कर दिया है। मौर्य के पास कुछ जिलों में ओमप्रकाश राजभर जैसा जनाधार है। उसी के मद्देनजर वो पार्टी बनाने की पहल कर रहे हैं। हालांकि पार्टी की आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है।
सलीम शेरवानी का इस्तीफा और मुस्लिमों की सपा में स्थितिः पांच बार के पूर्व सांसद सलीम शेरवानी ने रविवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से अपना इस्तीफा दे दिया, उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्याक) समुदायों को कोई महत्व नहीं देते हैं। शेरवानी ने अपने त्याग पत्र में पूछा कि सपा भाजपा से कैसे अलग है और 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों में कोई मुस्लिम नाम नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप समुदाय "उपेक्षित" महसूस कर रहा है।
पिछले एक सप्ताह में शेरवानी तीसरे नेता हैं जिन्होंने राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा "कमजोर महसूस करने के कारण" अपने पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी के खिलाफ खुले तौर पर विद्रोह किया है। सलीम शेरवानी का इस्तीफा अखिलेश के मुस्लिम आधार पर सीधा हमला है। दरअसल, सपा ने राज्यसभा के लिए तीन प्रत्याशियों की घोषणा की है। जिसमें पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन, अभिनेता से नेता बनी जया बच्चन रामजी लाल सुमन हैं। इसमें आलोक रंजन और जया बच्चन कायस्थ हैं। रामजी लाल सुमन दलित हैं। सलीम शेरवानी इसी बात पर आहत हैं कि पार्टी एक तरफ तो दो कायस्थों को टिकट दे रही है और एक भी मुस्लिम चेहरा उसके पास राज्यसभा में भेजने के लिए नहीं है। पुराने समाजवादियों को एक बात यह अखर रही है कि जया बच्चन के पति अमिताभ बच्चन पीएम मोदी के मुरीद बने हुए हैं। वे खुलेआम मोदी के साथ अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हैं। गुजरात के ब्रैंड एम्बेसडर हैं। जबकि जया बच्चन को सपा में बहुत ज्यादा महत्व पार्टी दे रही है।
अखिलेश को भेजे गए पत्र में शेरवानी ने लिखा- ''हाल के दिनों में मैंने मुसलमानों की स्थिति के बारे में आपसे चर्चा की है और मैंने आपको यह बताने की कोशिश की है कि समुदाय उपेक्षित महसूस कर रहा है, और पार्टी में विश्वास खो रहा है। . पार्टी और समुदाय के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं और उन्हें एक सच्चे 'मार्गदर्शक' की तलाश है। मैंने आपको यह भी बताने का प्रयास किया है कि उनके समर्थन को कम नहीं आंका जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय के बीच यह भावना है कि कोई भी धर्मनिरपेक्ष मोर्चा उनके वास्तविक मुद्दों को उठाने को तैयार नहीं है। पार्टी की परंपरा के अनुसार, मैंने आपसे राज्यसभा में समुदाय के लिए एक सीट के लिए अनुरोध किया था। लेकिन घोषित उम्मीदवारों में मुस्लिम नाम नहीं था. इससे यह सवाल उठता है कि आप भाजपा से कैसे अलग हैं?”
सलीम शेरवानी ने अखिलेश को यह भी लिखा है- ''मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाने की कोशिशें धोखा साबित हो रही हैं और कोई भी इसके प्रति गंभीर नहीं है। ऐसा लगता है कि विपक्ष सत्ता में मौजूद पार्टी और उसकी गलत नीतियों के खिलाफ लड़ने के बजाय अंदरूनी कलह की ओर अधिक इच्छुक है। धर्मनिरपेक्षता एक दिखावा बनकर रह गई है। भारत के मुसलमानों, खासकर यूपी के मुसलमानों ने कभी भी समानता, सम्मान और अपने अधिकारों के जीवन के अलावा और कुछ नहीं मांगा। लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी को ये मांग बहुत ज्यादा लग रही है। इसका जवाब पार्टी के पास नहीं है। इसलिए मुझे लगता है कि मैं पार्टी में मुसलमानों की स्थिति में बदलाव नहीं ला सकता… इसलिए, मैं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे रहा हूं। अगले कुछ हफ्तों में मैं राजनीति में अपने भविष्य के बारे में फैसला लूंगा।''
इससे पहले पल्लवी पटेल भी अपना गुस्सा जाहिर कर चुकी हैं। सपा विधायक और अपना दल (कमेरवादी) पार्टी की नेता पल्लवी पटेल ने हाल ही में कहा था कि वह आगामी राज्यसभा चुनाव में वोट नहीं करेंगी। पटेल और उनकी पार्टी के नेता अपना दल का झंडा लेकर शनिवार को वाराणसी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हुए थे। पल्लवी पटेल का गुस्सा यह है कि सपा अपने सिद्धांतों के लिए ही नहीं लड़ पा रही है। पार्टी को जब सड़कों पर होना चाहिए था, उसके नेता ट्वीट से काम चला रहे थे। अब लोकसभा चुनाव आ गया है तो भी पार्टी का दूर-दूर तक फील्ड में कोई कार्यक्रम नजर नहीं आता।
सपा का आधार मुख्य रूप से पिछड़े और मुस्लिम मतदाता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में 34 मुस्लिम विधायक सपा में जीतकर आए थे। लेकिन अखिलेश ने प्रदेश में बुलडोजर राजनीति और मुस्लिमों पर हुई सरकारी कार्रवाइयों के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं छेड़ा। सपा के मुस्लिम विधायक भी चुप्पी साधे रहे। इससे मुस्लिम मतदाता निराश हो गए। अखिलेश भी राहुल गांधी की तरह सॉफ्ट हिन्दुत्व की बात करने लगे। लेकिन अखिलेश को इसका फायदा पिछड़े वर्ग में नहीं मिल रहा। यादव समुदाय भी बंट चुका है और उसके कई बड़े नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं। हाल ही में भाजपा ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश का सीएम घोषित कर दिया। मोहन यादव यूपी के सुल्तानपुर के रहने वाले हैं।