पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत के नीचे आई और अपने सहयोगियों के दम पर सरकार चलानी पड़ रही है। लेकिन राज्यों की सत्ता में वो आगे निकलने की कोशिश कर रही है। महाराष्ट्र में अपनी राजनीति के दम पर उसने शिवसेना को तोड़ा, एकनाथ शिंदे को सीएम बना दिया। अब शिंदे कहां हैं। उनकी पार्टी की हालत क्या है। यह किसी से छिपा नहीं है। एनसीपी (अजित पवार) बीजेपी के साथ है और सत्ता सुख भोगने में मस्त है। बीजेपी वही प्रयोग बिहार में दोहराना चाहती है। उसकी गतिविधियां बता रही है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में वो जेडीयू पर बढ़त बनाना चाहती है। वो बिहार का सीएम अपने किसी नेता को बनाना चाहती है।
2020 में, जेडीयू के 43 और भाजपा के 74 सीटें जीतने के बावजूद, बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंप दी थी। वजह यही थी कि नीतीश महागठबंधन में थे। जेडीयू ने नीतीश को सीएम बनाने की मांग रख दी। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश फिर से भाजपा के गठबंधन में लौट आये। नीतीश अभी भी सीएम हैं। लेकिन बीजेपी असहज है। वो बिहार की सत्ता पर पूरा कब्जा चाहती है।
हालांकि इस चुनाव में भी बेशक बीजेपी नीतीश को एनडीए का चेहरा बनने दे। लेकिन उसके लिए उसकी शर्त यही होगी कि सीटों का आंकड़ा 2020 जैसा हो। लेकिन सीटें कम रहने पर वो अपने आदमी को सीएम बना सकती है। बीजेपी के पास सहयोगी के रूप में चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) है। जो उसकी अतिरिक्त सौदेबाजी करने के लिए एक पावर की तरह है। (कहा जाता है कि 2020 में, बीजेपी और के बीच गुप्त समझौता था)।
बीजेपी महाराष्ट्र की तरह वही फॉर्मूला बिहार में भी दोहरा सकती है। पिछले साल नवंबर में हुए महाराष्ट्र चुनावों में बीजेपी ने कुल 288 सीटों में से 132 सीटों पर अपने सहयोगियों की तुलना में एक मजबूत स्थिति बनाई। शिवसेना, जिसके एकनाथ शिंदे चुनाव में सीएम पद पर थे, ने फिर सीएम पद मांगने की कोशिश की। लेकिन बीजेपी ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया, क्योंकि उसने महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। शिंदे को झुकना पड़ा, क्योंकि अजित पवार की एनसीपी के 41 विधायकों ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन दिया था।
यह अलग बात है कि महायुति के अंदर समीकरण अभी भी सही नहीं चल रहे हैं। शिंदे ने सीएम देवेंद्र फडणवीस द्वारा बुलाई गई बैठकों में हिस्सा नहीं लिया है, जबकि फडणवीस सरकार ने शिंदे के सीएम रहते हुए शुरू किए गए कुछ योजनाओं पर सवाल उठाए और जांच का आदेश दिया। दोनों पार्टियों में नासिक और रायगढ़ में संरक्षक मंत्री पदों को लेकर भी तकरार हुई। फडणवीस ने साफ कर दिया कि सहयोगी दलों के मंत्री बिना फडणवीस से पूछे कोई काम न करे।
एक शिवसेना नेता ने कहा: "सीएम सीधे शिवसेना मंत्रियों को चर्चा के लिए अपने कमरे में बुलाते हैं, जो ठीक नहीं है।" शिवसेना नेता ने कहा कि शिंदे महाराष्ट्र में एकमात्र जन नेता हैं। भाजपा उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकती।
शिवसेना को लगता है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उनके विवाद में हस्तक्षेप करेगा। क्योंकि अमित शाह अभी भी "शिंदे का समर्थन करते हैं।" शिंदे के हाथ बंधे हुए हैं क्योंकि वह सीएम और सरकार के चेहरे रहे हैं। वे खुलेआम विद्रोह नहीं कर सकते।
बिहार पर वापस आते हैं। जेडीयू के 12 सांसद केंद्र में बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, जब राज्य की बात आती है, तो यह एक अलग कहानी बन जाती है। भाजपा ने नीतीश कैबिनेट में अपने सात नए मंत्रियों को बनवाकर अपने बढ़त बनाने या हावी होने की झलक दिखा दी है। सात में एक कुर्मी नेता और एक कुशवाहा चेहरा शामिल है – दोनों समुदायों को नीतीश के समर्थन आधार के रूप में देखा जाता है।
ऐसा नहीं है कि जेडीयू इसे समझ नहीं पा रही है। लेकिन वो बीजेपी तो तेवर नहीं दिखा पा रही है। विपक्ष ने दावा किया है कि बीजेपी ने जेडीयू को हाईजैक कर लिया है, और नीतीश एक मुखौटा बनकर रह गए हैं। सीएम के स्वास्थ्य के बारे में अफवाहें भी फैलती रहती हैं, जिससे जेडीयू की घबराहट भी बढ़ रही है।
बहरहाल, बिहार में नीतीश को एनडीए गठबंधन के दायरे में रखना बीजेपी की मजबूरी है। ऐसा उसके सहयोगी दल तक कह रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि बिहार के लिए बीजेपी की रणनीति यह है कि अगर एनडीए जीतता है तो नीतीश को कुछ समय के लिए सीएम बना दिया जाएगा। बाद में अपने आदमी को सीएम बना दिया जाएगा। हालांकि राजनीति में सारी गोटियां एकसाथ कभी फिट नहीं बैठती, लेकिन जेडीयू और नीतीश की कमजोरी का पूरा फायदा उठाने में बीजेपी जुटी हुई है।
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)