अक्टूबर, 1960 में रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित कांग्रेस के सारे वरिष्ठ नेता मौजूद थे। सम्मेलन के दौरान ही एक आमसभा का भी आयोजन किया गया था। रायपुर प्रवास के दौरान पंडित नेहरू राजकुमार कॉलेज में ठहरे हुए थे और उन दिनों रघुराज सिंह राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल थे। रघुराज सिंह ने पंडित नेहरू को आमसभा के बाद रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया था। इस रात्रिभोज में मध्य प्रदेश के तत्कालीन पुलिस प्रमुख के. एफ. रुस्तमजी को भी शामिल होना था।
चूंकि उसी दिन प्रधानमंत्री नेहरू भिलाई इस्पात संयंत्र देखने भी गए थे, लिहाजा रुस्तमजी को भी वहाँ जाना पड़ा था। वह देर से रात्रिभोज में शामिल हो सके। भोजन की टेबिल पर रघुराज सिंह ने रुस्तमजी की ओर इशारा करते हुए पंडित नेहरू से पूछा, 'सर आपको शायद इनकी याद होगी, यह काफी समय आपके साथ रहे हैं।'
नेहरू ने कहा, 'मैं रुस्तमजी को अच्छी तरह से जानता हूं।' नेहरू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी, उससे रुस्तमजी को कुछ समझ नहीं आया। दरअसल यह कहते हुए पंडित नेहरू के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान साया थी। वह कुछ क्षण रुके और फिर कहा, 'और रुस्तमजी भी मुझे अच्छी तरह से जानते हैं।'
फिर उन्होंने कहा, "रुस्तमजी तुम मेरे साथ कितने साल तक रहे?" रुस्तमजी उस वक्त सूप पी रहे थे, और कुछ हिचकते हुए उन्होंने कहा, "छह साल सर।"
'आई वाज नेहरूज शैडो'
के. एफ. रुस्तमजी 1952 से 1958 के दौरान छह सालों तक प्रधानमंत्री नेहरू के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के तौर पर तैनात रहे। वह हमेशा उनके साये की तरह उनके साथ होते थे। रुस्तमजी लंबे समय तक पुलिस और बीएसएफ से जुड़े रहे। वह नियमित डायरी लिखते थे, जिनमें ऐसी तमाम घटनाओं का जिक्र है। उनकी यह डायरी किताब की शक्ल में छप चुकी है, जिसका नाम है, 'आई वाज नेहरूज शैडो'।
नेहरू और रुस्तमजी एक दूसरे के कितने करीब थे, रायपुर की उस घटना से समझा जा सकता है। नेहरू व्यक्तिगत जीवन में भी लोकतांत्रिक मूल्यों और स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता को महत्व देते थे। यह इससे पता चलता है कि उनके सुरक्षा अधिकारी रहे रुस्तमजी वह सब लिख सके, जो अन्यथा लोग छिपाना चाहते हैं।
नेहरू के बारे में इन दिनों सोशल मीडिया में तरह तरह के दुष्प्रचार चलाए जा रहे हैं। उनकी छवि को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। लेकिन नेहरू का जीवन पारदर्शी था।
यह सबको पता है कि सिगरेट नेहरू की कमजोरी थी। एक वाकये का जिक्र रुस्तमजी ने कुछ यूं किया है- 'उन्होंने मुझसे कहा, क्या तुम्हे पता है कि मैंने स्मोकिंग के संबंध में एक क्रांतिकारी फैसला कर लिया है। मैं इसे एक-दो दिन में छोड़ दूंगा और मैं ऐसा कर सकता हूं। लेकिन फिर मैंने मनोवैज्ञानिक और दूसरे कारणों से ऐसा नहीं किया। लेकिन मैंने तय किया है कि मैं इसे कम करूंगा।'
ऐसे दौर में जब सेंस ऑफ ह्यूमर ख़त्म होता जा रहा है, रुस्तमजी बताते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री के स्वस्थ रहने की एक बड़ी वजह उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी था। लेडी माउंटबेटन से लेकर पद्मजा नायडू तक उनकी महिला मित्र थीं, जिनसे अपनी मित्रता उन्होंने कभी छिपाई भी नहीं।
जिन्ना की मज़ार पर नेहरू
रुस्तमजी ने नेहरू के साथ देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों में की गई यात्राओं का जिक्र किया है।
रुस्तमजी ने पंडित नेहरू के एक कराची प्रवास का जिक्र किया है, "जेएन की प्रेस कॉन्फ्रेंस काफी सफल रही। उन्होंने कहा, हमें दोस्त बने रहना चाहिए। और दोस्त बने रहने के लिए हमारा व्यवहार दोस्ताना होना चाहिए। उनकी यह बात काफी सराही गई। इसके बाद हमने कायदे आजम जिन्ना (मोहम्मद अली जिन्ना) और कायदे मिल्लत (लियाकत अली खान) की मजार के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाई। इसकी काफी आलोचना हुई। हिंदू महासभा के पत्र ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उसने लिखा, 'भारत और भारतीयों से घृणा करने वाले व्यक्ति के प्रति सम्मान। पाकिस्तान बनाने वाले मुसलिम के प्रति प्रेम।'
वास्तविकता यह है कि नेहरू के मन में कोई सम्मान नहीं था। उन्होंने कहा, 'यहां उस शख्स की मजार है, जोकि मेरे गुरु गांधी के बिल्कुल विपरीत विचार का था। यहां उस शख्स की मजार है, जिसका पेशा ही घृणा करना था- उसने मेरे देश और मेरे लोगों के खिलाफ युद्ध थोपा। मैं उन्हें और घृणा फैलाने का रास्ता नहीं दे सकता। इससे उन्हें अपने मकसद को पूरा करने में मदद मिलेगी। वे हमसे घृणा करते हैं और घृणा के कारण ही वह पतन की ओर हैं। क्या हमें भी वैसी गलती करनी चाहिए'?"
(सुदीप ठाकुर के फेसबुक वाल से। चार साल पहले लिखी गई थी पोस्ट।)