रविचंद्रन अश्विन भले ही ऑफ़ स्पिनर हैं लेकिन कई मायनों में उनकी सही तुलना एक गेंदबाज़ और स्पिनर के तौर पर लेग स्पिनर अनिल कुंबले से ही हो सकती है। दक्षिण भारत से आने वाले इन दोनों खिलाड़ियों का मिज़ाज और स्वभाव काफ़ी हद तक मिलता जुलता है और अपनी अपनी टीमों के लिए ये बड़े मैच विनर साबित हुए हैं। यह सही है कि दोनों को भारत में खेलना हर विरोधी के लिए सबसे मुश्किल चुनौती रही है और करियर के क़रीब पहले एक दशक में दोनों को विदेशी ज़मीं पर तुलनात्मक लिहाज़ से कामयाब नहीं होने पर आलोचना से गुज़रना पड़ा।
ऑस्ट्रेलिया से ही फिर बनेगी बात
कुंबले तो 2004 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर सिर्फ़ 3 मैचों में 24 विकेट (पूरी सीरीज़ में सबसे अधिक जबकि दूसरे सबसे कामयाब अजीत अगरकर को 16 विकेट के लिए 4 मैच खेलने पड़े थे) लेकर अपने करियर को पूरी तरह से एक नया मोड़ देने में कामयाब रहे। इसे अजीब इत्तिफ़ाक़ ही कहा जाएगा कि उस दौरे पर कुंबले से पहले मुरली कार्तिक और हरभजन सिंह प्लेइन इलेवन में खेले और इन दोनों के चोटिल होने पर ही कुंबले को एडिलेड में मौक़ा मिला था। 16 साल बाद फिर से उसी एडिलेड में अश्विन को पहला टेस्ट खेलने का मौक़ा सिर्फ़ इसलिए मिला कि इस बार बार रवींद्र जडेजा फिट नहीं थे! कुंबले की ही तरह यह ऑस्ट्रेलिया दौरा उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित होता दिख रहा है।
तीन पारियों में स्मिथ के बल्ले से सिर्फ़ 2 रन!
बात सिर्फ़ अब तक की 3 पारियों में 8 विकेट झटकने की नहीं है बल्कि बात यह है कि स्टीवन स्मिथ जैसे दिग्गज बल्लेबाज़ को अब तक हर पारी में शानदार तरीक़े से छकाना। मेलबर्न टेस्ट की पहली पारी में स्मिथ शून्य पर ऑउट होकर लौटे तो 2016 के बाद यह पहला मौक़ा रहा जब वो खाता खोलने में नाकाम रहे। मेलबर्न में इस पारी से पहले स्मिथ का टेस्ट औसत 113.50 का था जो इसके बाद 67.88 (सिडनी) से काफ़ी बेहतर रहा है। और तो और इस सीरीज़ से पहले स्मिथ ने भारत के ख़िलाफ़ अपने मुल्क में 8 पारियों में दो ही बार(28, 14) अधर्शतक बनाने में नाकाम हुए थे। बची हुई 6 पारियों में 4 शतक और 2 अर्धशतक दिखाता है कि स्मिथ को ना तो मोहम्मद शमी रोक पाते थे और ना ही ईशांत शर्मा और ना ही जसप्रीत बुमराह।
कोहली को पसंद नहीं हैं अश्विन?
दरअसल, बात सिर्फ़ इस ऑस्ट्रेलियाई दौरे की नहीं है। 2014 में विराट कोहली ने अपनी कप्तानी के पहले टेस्ट, एडिलेड में अश्विन को नज़रअंदाज़ कर युवा करन शर्मा को मौक़ा दे गये जिससे उन्हें काफ़ी मायूसी हुई थी। अश्विन ने तो सार्वजनिक तौर पर कभी कुछ नहीं कहा लेकिन जो बात सुनील गावस्कर ने स्पोर्ट्सस्टार मैगज़ीन के लेख में कही कि अश्विन को सिर्फ़ मैनेजमेंट इसलिए बैक नहीं करता है क्योंकि वो बेबाक तरीक़े से अपनी राय रखते हैं, ग़लत नहीं है।
आख़िर 400 विकेट के क़रीब पहुँचने वाले इस खिलाड़ी से ज़्यादा मैन ऑफ़ द मैच और मैन ऑफ़ द सीरीज़ का ख़िताब तो मौजूदा टीम में किसी ने नहीं जीता है। मैन ऑफ़ द सीरीज़ के मामले में अश्विन तो काफ़ी कम सीरीज़ खेलने के बावजूद सचिन तेंदुलकर और कुंबले जैसे दिग्गज को काफ़ी पहले ही परास्त कर चुके हैं।
एडिलेड ही नहीं, अब मेलबर्न के मास्टर बने
ख़ैर, बात एडिलेड पर ही फिर से मोड़ी जाए क्योंकि पिछले दौरे पर एडिलेड में ही अश्विन ने दोनों पारियों में 3-3 विकेट लेकर एक शानदार दौरे की उम्मीद जतायी थी लेकिन वो अनफ़िट हो गए और आगे एक भी मैच नहीं खेल पाये। उम्मीद की जानी चाहिए ईशांत और शमी को चोट के चलते खोने वाली टीम इंडिया को इस बार फिर अश्विन की फिटनेस से ना परेशान होना पड़े।
वैसे, मेलबर्न टेस्ट की पहली पारी में शानदार खेल दिखाकर अश्विन अब ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज़्यादा बार तीन विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज़ बन गए हैं। उन्होंने आठवीं बार यह उपलब्धि हासिल की जबकि कुंबले ने कमाल सात बार दिखाया था। मेलबर्न में बॉक्सिंग डे टेस्ट के पहले दिन 1 से ज़्यादा विकेट लेना कितना मुश्किल है ये आप उसी आँकड़े से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पिछले 13 सालों में ऐसा सिर्फ़ 5 बार हुआ है और 3 मौक़े पर अकेले यह कमाल अश्विन ने और 1-1 बार कुंबले और नेथन लॉयन ने दिखाया है।
रहाणे ने दिखाया चैंपियन पर भरोसा
बहरहाल, मेलबर्न टेस्ट में जो सबसे दिलचस्प बात अश्विन की गेंदबाज़ी में देखने को मिली वो रहा कप्तान अंजिक्य रहाणे का उन पर भरोसा। पहले दिन टॉस हारने के बाद युवा मोहमम्द सिराज से गेंदबाज़ी पूरे सत्र ना कराकर अश्विन को मोर्चे पर लगाना दिखाता है कि कैसे कोहली उन पर वो विश्वास नहीं जताते हैं और इसका असर अश्विन की निरंतरता पर दिखता है।
फ़ोटो साभार: ट्विटर/रहाणे
पहले दिन लंच तक अश्विन ने टॉप ऑर्डर के ना सिर्फ़ 2 विकेट निकाले बल्कि ऐसा लग रहा था कि वो अपने घरेलू मैदान चेन्नई के चेपॉक में गेंदबाज़ी कर रहे थे।
शिवा को अश्विन में वेंकटराघवन की झलक दिखी
चेन्नई के ही एक पूर्व स्पिनर एल शिवरामाकृष्णन ने अश्विन की गेंदबाज़ी को देखते हुए कहा कि मौजूदा आत्म-विश्वास देखकर ऐसा लगता है जैसे वेंकटराघवन अपने पूरे परवान पर हों! अश्विन के लिए इससे बड़ी तारीफ और क्या हो सकती है भला?
फ़ोटो साभार: ट्विटर/अश्विन
'टू इन वन' वाली भूमिका
इस दौरे से पहले अश्विन अक्सर यह कहा करते थे कि उनके लिए विदेशों में मुश्किल यह होती है कि उन्हें विकेट लेने के साथ-साथ रन रोकने वाले गेंदबाज़ की भूमिका की दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है क्योंकि अमूमन ऐसी पिचों पर तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण ज़्यादा हावी रहता है। लेकिन मेलबर्न में पहली पारी में अश्विन ने ना सिर्फ़ 3 विकेट लिए बल्कि 24 ओवर के मैराथन मेहनत वाले स्पैलों में सिर्फ़ 38 रन ही ख़र्च किए।
बिंदास अश्विन हैं तो अनोखे
34 साल के अश्विन भारतीय क्रिकेट में अनोखे हैं। जहाँ पर हर क्रिकेटर चाहे वो मौजूदा खिलाड़ी हो या पूर्व, सत्ता का समर्थन करते हुए बातें करता, अश्विन संवेदनशील मुद्दों पर सरकार तो क्या सुप्रीम कोर्ट तक पर टिप्पणी करने से नहीं चूकते हैं। दरअसल, उनका आत्म-विश्वास अपने हुनर पर सिर्फ़ मैदान तक ही सीमित ना होकर उनकी शख्सियत का हिस्सा बन चुका है। कुंबले की ही तरह। उम्मीद सिर्फ़ अब यही है कि कुंबले की ही तरह वो ना सिर्फ़ अपना एक ऑस्ट्रेलियाई दौरा यादगार बनायें बल्कि 619 का टेस्ट रिकॉर्ड भी तोड़ने में कामयाब हों।