राजनीति में तीन बातों का बड़ा महत्व होता है - पद , मद और कद। जिसको पद का मद हो जाता है उसका कद अपने आप ही कम हो जाता है । यह बात राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे ने कही है। नाम किसी का भी नहीं लिया गया है लेकिन इशारा किस तरफ है यह बात किसी को बताने की जरूरत नहीं है। जाहिर है कि वसुंधरा राजे की आला कमान के प्रति नाराजगी एक बार फिर सामने आई है। तो क्या यह माना जाए कि वसुंधरा राजे ने एक बार फिर अपने बगावती तेवर दिखाए हैं। क्या एक बार फिर वसुंधरा राजे ने उनकी हो रही उपेक्षा को पद , मद और कद के त्रिकोण से जोड़कर सामने रखने की कोशिश की है।
वसुंधरा राजे ने यह बात जयपुर में नये प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की ताजपोशी के दौरान कही। अपने भाषण में वसुंधरा राजे राठौड़ को शुभकामनाएं देने आई थीं या बचके रहना रे बाबा की नसीहत देने आई थी। यह तय करना मुश्किल है, लेकिन वसुंधरा ने इस बहाने बिना नाम लिए इशारों ही इशारों में बड़ी बात कह डाली। उनका कहना था कि राजनीति का दूसरा नाम उतार चढ़ाव है। हर आदमी इस दौर से गुजरता है।
साफ है कि वसुंधरा मान कर चल रही हैं कि इस समय उनकी सियासत में उतार है लेकिन आगे जा कर उन्होंने इसे धैर्य से जोड़कर एक तरह से आलाकमान को चुनौती दे डाली कि यह दौर तो सिर्फ एक दौर है जो गुजर ही जाएगा। वसुंधरा का कहना था कि राजनीति तीन बातों के आसपास घूमती है- पद , मद और कद। पद और मद स्थाई नहीं है। पद का मद यानी गुरुर, घमंड, खुद को ईश्वर के रुप में देखना जब कोई शुरू करता है तो उसका सियासी कद कम होना शुरू हो जाता है। वसुंधरा ने आगे कहा कि आज के दौर में यह होता रहता है। साफ है कि पिछले दस सालों में किसे पद का मद हुआ है और लोकसभा चुनावों में किस के सियासी कद का बढ़ना बंद हो गया है, यह हर कोई जानता है।
वसुंधरा ने पद, मद और कद की परिभाषा का व्याख्या को पार्टी के कार्यकर्ताओं से जोड़ कर आला कमान पर एक तरह से बड़ा आरोप भी जड़ दिया। उनका कहना था कि सबसे बड़ा पद जनता की चाहत और कार्यकर्ताओं का प्यार है। यहां वसुंधरा ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं की समर्पण और त्याग की चर्चा की। उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी का तो नाम लिया कि कैसे इन नेताओं ने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर बीजेपी को आगे बढ़ाने का काम किया। लेकिन वसुंधरा इस सिलसिले को मोदी या अमित शाह से जोड़ने से परहेज कर गयी।
साफ है कि इन दिनों संघ को भी बीजेपी में आयातित नेताओं के कारण विचारधारा से जुड़े समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की चिंता है और वसुंधरा ने भी इशारों ही इशारों में इस चिंता में अपनी चिंता को भी जोड़ दिया। वसुंधरा यहीं नहीं रुकी, राजे ने खुद को साधारण कार्यकर्ता बताया और कहा कि मन में खटका आता है तो भी उसे पार्टी के हित के लिए पी लेते हैं। इस बयान के बहाने उन्होंने आलाकमान तक भी दिल की बात पहुंचा दी और आम कार्यकर्ता का भी दिल जीत लिया।
वसुंधरा भाषण घर से तैयार कर के लाई थी। यानी वह सोच समझ कर बोल रही थीं। उन्होंने नये अध्यक्ष को आगाह भी किया कि इस कुर्सी पर बैठना आसान काम नहीं है और पहले बहुत से नेता असफल भी रहे हैं। गुटबाजी से बचने की सलाह देकर वसुंधरा ने गुटबाजी की तरफ इशारा कर दिया और चुटकी ली कि कहने को तो बड़े प्यारे हैं सब लेकिन सबको साथ लेकर चलना आसान भी नहीं है।
कुल मिलाकर विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान और उसके बाद उनकी उपेक्षा की गयी, उससे वसुंधरा खफा रही हैं। मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का भी मलाल रहा है। लोकसभा चुनावों में तो वसुंधरा अपने बेटे के चुनाव क्षेत्र तक ही सीमित रहीं। कहा जाता है कि कम से कम तीन चार सीटों में वसुंधरा की नाराजगी के चलते बीजेपी जीत नहीं सकी। लोकसभा चुनावों के बाद राजे को उम्मीद थी कि बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही मिली।
वसुंधरा पिछले दिनों अपने विधानसभा क्षेत्र में स्कूटर पर निकली थी और हड़कंप मच गया था। उससे पहले मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राजे से एक घंटे मुलाकात की थी। लेकिन पता चला है कि वह विधानसभा उपचुनाव में उनके सहयोग का ठोस आश्वासन लेने में कामयाब नहीं हुए। ताजा बयान से वसुंधरा ने फिर तहलका मचा दिया है। नये अध्यक्ष मदन राठौड़ का कहना है कि वह राजे की चेतावनी को पूरी गंभीरता से लेते हैं। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि आला कमान इस भाषण में कितनी चेतावनी देखता है और कितनी राजनीति।