लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक या सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं: हाई कोर्ट

05:36 pm May 18, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप को नैतिक या सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता। जस्टिस एचएस मदान ने यह फ़ैसला पंजाब के तरन तारन जिले से घर छोड़कर भागे एक प्रेमी जोड़े द्वारा सुरक्षा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। 

याचिका में प्रेमी जोड़े ने उनकी जिंदगी और आज़ादी की सुरक्षा मांगी थी। घर छोड़ने के बाद से प्रेमी जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था। दोनों ने याचिका में कहा था कि वे जल्द ही शादी करना चाहते हैं और लड़की के परिजनों की ओर से उन्होंने अपनी जान को ख़तरा बताया था। 

जस्टिस एचएस मदान ने पिछले हफ़्ते दिए अपने इस फ़ैसले में यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा देने का आदेश पास नहीं किया जा सकता, इसलिए याचिका को रद्द किया जाता है। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील जेएस ठाकुर ने फ़ैसले पर टिप्पणी करने से बचते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी लिव-इन रिलेशनशिप की मान्यता को बरकरार रखा है। 

यहां दिलचस्प बात ये है कि इस हाई कोर्ट की एक दूसरी बेंच ने भी हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप के एक मामले में ऐसा ही आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि अगर ऐसे प्रेमी जोड़े को जो घर छोड़कर भागा हो, उसे सुरक्षा दी जाती है तो इससे सामाजिक ताना-बाना ख़राब हो सकता है। 

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने ऐसा आदेश देकर न सिर्फ़ बाक़ी अदालतों से उलट फ़ैसला दिया है बल्कि अंतरजातीय या अंतरधार्मिक शादी करने के बाद सुरक्षा के लिए अदालतों से उम्मीद रखने वाले युवाओं को भी झटका दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में लता सिंह बनाम यूपी सरकार के मामले में दिए गए फ़ैसले में कहा था कि अगर महिला बालिग है तो वह जिससे चाहे उससे शादी करने के लिए और जिसके साथ चाहे उसके साथ रहने के लिए आज़ाद है। 

‘दख़ल देने का हक नहीं’

बीते साल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कामिनी देवी बनाम यूपी सरकार के मामले में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे प्रेमी जोड़े को सुरक्षा दी थी। अदालत ने कहा था कि व्यस्कों का इस तरह रहना या ऐसी व्यवस्था में रहना कोई अपराध नहीं है और किसी को भी उनके जीवन में (यहां तक कि माता-पिता को भी) दख़ल देने का हक नहीं है। 

अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार जैसे बुनियादी अधिकार का हवाला दिया था। इसके अलावा भी कई बार अदालतों ने अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युवाओं को सुरक्षा दी है। 

यहां तक कि 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक युवा लेस्बियन जोड़े को पुलिस की सुरक्षा देने का आदेश दिया था। इस जोड़े को उनके माता-पिता का डर था। 

लोगों ने की आलोचना

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस तरह का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ तो बात कही ही है, यह न्यायपालिका को भी पीछे ले जाने वाला क़दम है। क्योंकि अदालत के इस फ़ैसले की वकालत के पेशे से जुड़े आम लोगों के बीच ही नहीं बल्कि समाज के पढ़े-लिखे लोगों के बीच भी आलोचना हो रही है।