पंजाबः अमृतपाल सिंह खालसा कौन है

07:41 am Apr 23, 2023 | सत्य ब्यूरो

पंजाब में इस वक्त दो ही नाम गूंज रहे हैं- एक है अमृतपाल सिंह खालसा और दूसरा है वारिस पंजाब दे (यानी पंजाब का वारिस)। अभी जब पंजाब का किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए लड़ रहा था और पंजाब से आकर दिल्ली के बॉर्डर पर बैठ गया था तो पंजाब के संघर्ष को याद किया जा रहा था। लेकिन उसी किसान को अब अमृतपाल सिंह खालसा और वारिस पंजाब दे की तरफ धकेल दिया गया है। 

आखिर अमृतपास सिंह खालसा और यह संगठन वारिस पंजाब दे कौन हैं। इनकी रणनीति क्या है। इसे जानना जरूरी है। सत्य हिन्दी ने फरवरी में इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से रिपोर्ट प्रकाशित की थी। 

29 साल का अमृतपाल सिंह खालसा दुबई में परिवार का ट्रांसपोर्ट कारोबार देख रहा था। किसान आंदोलन के दौरान वो पंजाब किसानों को समर्थन देने के लिए आया। फिर अचानक उसे पंजाब के नशे में होने का एहसास हुआ और फिर उसका धार्मिक अवतार हुआ। उसने खुद को जनरैल सिंह भिंडरावाले का अवतार घोषित कर दिया। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने उसकी 10 से ज्यादा नफरत फैलाने वाले भाषणों को संकलित किया है। जिसमें वो खालिस्तान की मांग करते हुए दिख रहा है। 

उसकी सक्रियता पिछले 4-5 महीनों की ज्यादा है। उसके समर्थक हथियार लहराते हुए दिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर अमृतपाल बहुत जबरदस्त ढंग से छाया हुआ है। वो नशा मुक्ति पुनर्वास केंद्रों पर जा रहा है। वो एक धार्मिक लीडर के रूप में स्थापित हो गया है। गांवों में उसकी पकड़ बढ़ती जा रही है।   

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उसने खालिस्तान की मांग को जिन्दा किया है। उसने राष्ट्रवाद की थ्योरी को चुनौती दी है। पंजाब में अब खालिस्तान बनाम हिन्दू राष्ट्र का नारा बुलंद हो रहा है। सुरक्षा से जुड़े केंद्रीय अधिकारियों का कहना है कि अभी कोई घबराने की बात तो नहीं है लेकिन ये संकेत अच्छे नहीं हैं। क्योंकि भिंडरावाले का उभार भी इसी तरह हुआ था।

जब केंद्र सरकार ने किसान आंदोलन (2020-21) के दबाव में कृषि कानूनों को वापस ले लिया तो अमृतपाल सिंह खालसा वापस दुबई चला गया। वो अगस्त 2022 में फिर से पंजाब लौटा। इस पर वो धार्मिक चोले में था। एक्टर, गायक दीप सिद्धू ने वारिस पंजाब दे संस्था का गठन किया था। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले 30 सितंबर 2021 को दीप सिद्धू की एक सड़क हादसे में मौत हो गई। वारिस पंजाब दे का वारिस कोई नहीं रहा। अमृतपाल सिंह खालसा ने वारिस पंजाब दे संगठन को संभाल लिया। 

हालांकि दीप सिद्धू के भाई मनदीप का कहना है कि अमृतपाल सिंह खालसा का वारिस पंजाब दे उनके भाई के वारिस पंजाब दे से अलग है। यानी पंजाब में फिलहाल वारिस पंजाब दे भी दो समानान्तर संगठन है।  दीप सिद्धू वही था, जिसने किसानों के दिल्ली मार्च के दौरान लाल किले पर खालसा झंडा लहराया था। उस समय आरोप लगे थे कि किसान आंदोलन को डिस्टर्ब करने के लिए दीप सिद्धू को प्लांट किया गया है। किसान संगठनों ने भी दीप सिद्धू से दूरी बना ली थी। 

वारिस पंजाब दे संगठन की मंजिल भी खालिस्तान थी। दीप सिद्धू का लाल किले पर खालसा झंडा फहराने का एकमात्र संकेत यही था। बहरहाल, अमृतपाल अब वारिस पंजाब दे का वारिस है।


अमृतसर के बाबा बकाला में जल्लूपुर खेड़ा गांव का युवक जो 2012 में दुबई में संधु ट्रांसपोर्ट को संभालने गया था, अब धार्मिक गुरु बन गया है। हालांकि संधु ट्रांसपोर्ट में अभी भी उसका पद ऑपरेशन मैनेजर का बरकरार है। उसका सोशल मीडिया एकाउंट यही बताता है। उसने कपूरथला से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। 

खुफिया एजेंसियों ने उसके भाषणों में जो खास बात नोट की है, वो है युवकों से हथियार रखने का आह्वान और कौम को गुलामी से मुक्ति दिलाना। पंजाब से लेकर केंद्र की एजेंसियों के पास उसकी कट्टरता का पिछला कोई रेकॉर्ड नहीं है। उसके किसी आतंकी संगठन से जुड़े होने के भी सबूत अभी तक एजेंसियों को नहीं मिले हैं। वो पहले मोना सिख यानी बिना पगड़ी वाला था। लेकिन अब उसने बाकायदा पगड़ी धारण कर ली है। खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि जरूर उसे किसी ने तैयार किया है। कोई पावर जरूर उसके पीछे है। लेकिन वो कौन है, एजेंसियां इससे अनजान हैं। अमृतपाल सिंह खालसा धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है। वो राष्ट्रीयता और आत्मनिर्णय की बात करता है। वो सिख विचारकों की पुस्तकों को कोट करता है। वो भिंडरावाले के भाषणों से प्रभावित है।

इंडियन एक्सप्रेस को खुफिया सूत्रों ने बताया कि अमृतपाल ने धार्मिक शुद्धता को पंजाब की समस्याओं के हल का मूलमंत्र बताया है। वह कहता है कि पंजाब के युवक इसलिए नशे में हैं, क्योंकि उन्होंने अमृतपान नहीं किया है। उसका कहना है कि केंद्र सिखों को इसलिए अपमानित कर रहा है क्योंकि सिख कमजोर हैं। वे कमजोर हैं क्योंकि उन्होंने अमृतपान नहीं चखा है। 

यही बातें भिंडरावाले के भाषणों में भी होती थीं। सूत्रों ने कहा कि अमृतपाल के उभार को किसान विरोध के दौरान बनाए गए अविश्वास के माहौल और पंजाब की राजनीति में उतार-चढ़ाव की स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा - खालिस्तान का विचार व्यावहारिक रूप से मर चुका था, लेकिन भारत और विदेशों में कुछ तत्वों ने फायदा उठाने की कोशिश की है। कट्टरवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए अमृतपाल उनका मोहरा बन गया है। पाकिस्तान से पंजाब सीमा पर बड़ी संख्या में ड्रोन के जरिए हथियार भेजे जाने की कोशिश हो रही है। अमृतपाल मीडिया में ज्यादा है। असलियत यह है कि उसके पास अभी भी गांवों में वो पकड़ नहीं है जो भिंडरावाले की थी। अमृतपाल की सभाओं में भीड़ भी ज्यादा नहीं है। लेकिन समय रहते उससे निपटा जाना जरूरी है।