पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बुरी हार के बाद देश में एक बार फिर से एक मज़बूत एंटी बीजेपी फ्रंट या थर्ड फ्रंट की चर्चा जोर पकड़ रही है। एनसीपी मुखिया शरद पवार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच शुक्रवार को हुई बैठक से इस तरह की चर्चाओं को और ताक़त मिली है। पवार के मुंबई में मौजूद सिल्वर ओक नाम के घर पर यह बैठक 3 घंटे तक चली।
यहां याद रखना होगा कि प्रशांत बंगाल हालिया चुनाव में ममता और स्टालिन के लिए काम कर चुके हैं और दोनों ने ही जीत हासिल की है।
प्रशांत किशोर के साथ पवार की इस मुलाक़ात के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी क्षेत्रीय दलों का एक मज़बूत गठबंधन बनाने की बहस फिर से जिंदा हो गई है। पवार ने इस साल मार्च में कहा भी था कि देश में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की ज़रूरत है और वह इस मामले में कई पार्टियों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
तब शिव सेना के यह कहने पर कि शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर एक ताक़तवर शख़्सियत हैं और क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल उन्हें अपना नेता मानते हैं, 2024 के लोकसभा चुनाव में पवार क्या विपक्ष का चेहरा होंगे, इसे लेकर भी काफी चर्चा राजनीतिक गलियारों में हुई थी।
ये दल आ सकते हैं साथ
शिव सेना की बात को अगर मानें तो एंटी बीजेपी फ्रंट या शरद पवार जिस थर्ड फ्रंट की बात कर रहे हैं, उसमें आरजेडी, जेएमएम, टीएमसी, बीजेडी, एसपी, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, जेडी (एस), डीएमके, नेशनल कॉन्फ्रेन्स, पीडीपी, टीआरएस सहित कुछ और क्षेत्रीय दल तो शामिल होंगे ही, शिरोमणि अकाली दल भी पवार के साथ जा सकता है।
निश्चित रूप से इससे यूपीए और कांग्रेस कमजोर होंगे लेकिन कांग्रेस के राजनीतिक प्रदर्शन को देखते हुए कई दल उसके साथ आने में हिचकेंगे और उनकी पहली पसंद शरद पवार हो सकते हैं।
तमाम विपक्षी दल भी इस बात को जानते हैं कि 300 से ज़्यादा सांसदों के बहुमत वाली बीजेपी को रोकने और अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए यह ज़रूरी है कि देश में एक मज़बूत तीसरे मोर्चे या थ्रंड फ्रंट की बुनियाद रखी जाए।
माहिर हैं प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए और उसके बाद कई राज्यों में कई दलों के लिए चुनावी रणनीति बना चुके हैं और जीत भी दिला चुके हैं। इस काम में शानदार ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले किशोर हो सकता है कि आने वाले दिनों में 2024 के आम चुनाव में पवार को विपक्ष का चेहरा बनाने के लिए काम करते दिखाई दें।
यहां ये बात भी बेहद अहम है कि ममता बनर्जी और शरद पवार के रिश्ते बहुत पुराने और मधुर हैं और विपक्षी नेता के लिए पवार के नाम पर ममता राजी न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता। ममता के सिवा क्षेत्रीय दलों के नेताओं में कोई और ऐसा नहीं है जिसका सियासी वजन पवार के बराबर या समकक्ष हो।
सबसे अनुभवी हैं पवार
विपक्षी नेताओं में सबसे ज़्यादा सियासी अनुभव रखने वाले नेता शरद पवार ही हैं। 82 साल के इस बूढ़े शेर ने अपने अनुभव का लोहा तब मनवाया था जब उन्होंने एकदम उलट विचारधारा वाली पार्टियों कांग्रेस और शिव सेना को एक प्लेटफ़ॉर्म पर ला खड़ा किया था और देश के बाक़ी राजनीतिक दलों को यह पैगाम दिया था कि अगर सियासी समझ हो तो बीजेपी को सत्ता से बाहर रखा जा सकता है।
बंगाल चुनाव के नतीजों के बाद यह माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दल बीजेपी को पटकनी दे सकते हैं, बशर्ते वे एक मंच पर आने के लिए तैयार हों।
पहले भी हुई कोशिशें
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी ही कोशिश तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी की थी लेकिन तब यह परवान नहीं चढ़ सकी थी, वरना 2019 के नतीजों पर इसका असर ज़रूर होता।