बिहार चुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं और जिन हालातों में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं उसमें नीतीश कुमार के कमज़ोर मुख्यमंत्री होने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने तो यहाँ तक कह दिया है कि वह सिर्फ़ नाम के मुख्यमंत्री होंगे। मोदी-शाह के कार्यकाल शुरू होने के बाद से बीजेपी पर हमलावर रहे यशवंत सिन्हा ने कहा है कि बीजेपी दुश्मन को तो छोड़िए दोस्त तक को बेजान करके छोड़ती है।
यशवंत सिन्हा ने ट्वीट किया, 'बीजेपी दुश्मनों को तब तक निचोड़ती है जब तक वे बेजान नहीं हो जाते। अपने दोस्तों के लिए भी यह यही करती है। नीतीश कुमार इसकी ताज़ा मिसाल हैं। वह सीएम होंगे लेकिन सिर्फ़ नाम के।'
समझा जाता है कि सिन्हा का यह ट्वीट उस संदर्भ में है जिसमें कहा जा रहा है कि चुनाव में बीजेपी की योजना रही कि नीतीश कुमार की जदयू कमज़ोर पड़ जाए। चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी द्वारा जेडीयू के सभी प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारे जाने को भी इसी रूप में लिया गया। हालाँकि, बीजेपी इससे इनकार करती रही। लेकिन जिस अंदाज़ में चिराग पासवान ख़ुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'भक्त' बताते रहे और सीना चिर कर दिखाने की बात करते रहे उससे भी ऐसा लगा कि चिराग किसी के इशारे पर नीतीश के ख़िलाफ़ मैदान में उतरे हैं। चुनाव में इसका असर साफ़ दिखा।
जेडीयू 43 सीटें जीत सकी जबकि बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं। इसी कारण कहा गया कि क्योंकि ज़्यादा सीटें बीजेपी के पास हैं तो नीतीश कुमार कमज़ोर मुख्यमंत्री होंगे। ये सवाल तब उठ रहे थे जब इस पर लंबे समय तक असमंजस की स्थिति बनी रही थी कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद स्वीकार करेंगे भी या नहीं।
हालाँकि इस बीच बीजेपी लगातार कह रही है कि वह नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के अपने पहले के दावे पर अडिग है। आख़िरकार अब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने जब कहा कि बीजेपी अपने दुश्मनों के साथ ही दोस्तों को भी ख़त्म करती है तो शायद उनका इशारा हाल के विधानसभा चुनाव और एनडीए से अलग हुए दलों की ओर भी होगा। महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी आजसू बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं। इससे पहले आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू की पार्टी टीडीपी भी साथ छोड़ चुकी है। आंध्र प्रदेश में 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वह राज्य में क्षेत्रीय आंदोलन तथा अशांति को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा था कि एनडीए में बीजेपी सिर्फ़ कमज़ोर साथियों को रखना चाहती है।
झारखंड में बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू के बीच 19 साल की सियासी दोस्ती थी। लेकिन 2019 में चुनाव से पहले सीट बँटवारे को लेकर वह दोस्ती टूट गई। तब आजसू ने आरोप लगाया था कि उसे कम सीट दी जा रही थी और इस मामले में बीजेपी मनमानी थोपना चाहती थी।
पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान जब शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटा था तब भी शिवसेना ने बीजेपी पर मनमानी करने का आरोप लगाया था। तब एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार बनाने में जुटी शिवसेना के प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने कहा था कि बीजेपी मनमानी कर रही है।
ऐसी ही स्थिति 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू और बीजेपी के बीच बनी थी। हालाँकि बीजेपी के साथ जेडीयू का गठबंधन काफ़ी पहले से है। नीतीश कुमार के अटल-आडवाणी से बहुत अच्छे रिश्ते थे। नीतीश अटल सरकार की कैबिनेट में भी थे। बिहार में 2005 में नीतीश का चेहरा आगे रख कर बीजेपी ने चुनाव भी लड़ा। लेकिन मोदी से नीतीश की कभी नहीं पटी। मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने की संभावना मात्र से वह एनडीए से अलग हो गये और आगे चल कर लालू यादव से गले मिल गये। हालाँकि, बाद में राजनीतिक मजबूरी में वह फिर बीजेपी के साथ हो लिये।
लेकिन लगता है कि नीतीश की वह मजबूरी भारी पड़ी। अब नीतीश की चिंता भी वही होगी जो उद्धव ठाकरे की चिंता महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व में सरकार बनने से पहले होगी। वही चिंता कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी दोनों को उनके-उनके प्रदेशों की राजनीति में पूरी तरह से ख़त्म न कर दे!