मध्य प्रदेश के विधायक समंदर पटेल, जो 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए और कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिरा दिया था, बाजपा में "घुटन" का आरोप लगाते हुए कांग्रेस में लौट आए।
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि पटेल ने भाजपा कार्यालय में अपना इस्तीफा सौंपने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र जावद से भोपाल की यात्रा "1,200 कारों के काफिले" के साथ की। कई महीनों में पटेल तीसरे सिंधिया वफादार हैं जो कांग्रेस में वापस चले गए हैं और वह भी उसी शैली में। अभी तक जितने भी सिंधिया वफादार कांग्रेस में लौटे हैं वो वाहनों के विशाल काफिले के साथ सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए लौटे हैं। इससे पहले सिंधिया का एक वफादार नेता और विधायक चार हजार वाहनों के काफिले के साथ लौटा था और किलोमीटर तक यातायात जाम हो गया था।
14 जून को शिवपुरी के बीजेपी नेता बैजनाथ सिंह यादव ने सिंधिया से नाता तोड़ लिया और 700 कारों की रैली निकाली। भाजपा के पूर्व शिवपुरी जिला उपाध्यक्ष राकेश कुमार गुप्ता ने भी 26 जून को एक कार रैली निकाली और कांग्रेस में आ गए। ये भी सिंधियां के खासमखास थे।
समंदर पटेल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “मैंने महाराज (सिंधिया) के साथ पार्टी छोड़ थी। लेकिन जल्द ही, मुझे भाजपा के भीतर घुटन महसूस होने लगी। मुझे किसी भी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया जाता था। मुझे सम्मान और पावरफुल पद नहीं दिया गया।''
भाजपा की बढ़ती मुसीबतें
मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से भाजपा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कभी यही मुश्किलें कांग्रेस में थीं और तब भी वजह सिंधिया ही थे। समंदर पटेल की कांग्रेस में वापसी बहुत कुछ बताती है है। विधानसभा चुनावों में टिकट से इनकार किए जाने के बाद उन्होंने पहली बार 2018 में कांग्रेस छोड़ थी। उन्होंने उस वर्ष निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और अपने दम पर 35,000 वोट हासिल करके कांग्रेस की संभावनाओं पर पानी फेरा और भाजपा की जीत का रास्ता साफ किया। वह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में फिर से शामिल हो गए थे और इसके तुरंत बाद, मार्च 2020 में, सिंधिया के 22 विधायकों के समूह के साथ कांग्रेस फिर से छोड़ दी थी।
सत्तारूढ़ दल में शामिल होते ही समंदर के लिए परेशानी शुरू हो गई और वह राज्य के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा के साथ सार्वजनिक विवाग में फंस गए। समंदर ने आरोप लगाया कि “मेरे समर्थकों को सखलेचा के खेमे ने लगातार अपमानित किया। छोटे-मोटे झगड़ों को लेकर उनके खिलाफ कई झूठे मामले दर्ज किए गए। तभी मैंने भाजपा छोड़ने का फैसला किया।''
विधायक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उन्हें सिंधिया से कोई दिक्कत नहीं है। समंदर ने कहा- महाराज जी के प्रति मेरे मन में अब भी सम्मान है। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मेरे मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की और मेरे साथ झगड़ा करने के लिए भाजपा नेताओं को भी डांटा। लेकिन वह एक बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री हैं, वह हमेशा मेरी मदद के लिए नहीं आ सकते।
बहरहाल, सिंधिया को मध्य प्रदेश भाजपा इकाई में अंदरूनी कलह से जूझना पड़ रहा है, उनके समर्थकों और पार्टी के पुराने समय के लोगों के बीच तनाव बढ़ गया है। सिंधिया खेमे के एक नेता ने कहा कि समंदर पटेल के इस कदम से बीजेपी को नुकसान हो सकता है। उस नेता ने कहा- “पटेल नीमच में एक बड़े नेता हैं। वह आर्थिक रूप से मजबूत हैं और पार्टी का समर्थन करते थे। सिंधिया उनके गॉडफादर थे। वह सिंधिया के लेफ्टिनेंट की तरह थे।
कांग्रेस में अभी और आएंगे
केंद्रीय मंत्री सिंधिया के खेमे के एक अन्य नेता ने कहा- “कई और समर्थक जल्द ही कांग्रेस में लौट आएंगे। इन नेताओं से बात करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि भाजपा सिंधिया के वफादारों के साथ अपने मतभेद नहीं सुलझा रही है। हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं?" भाजपा से निकलने के बाद पटेल ने सकलेचा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए।
सिंधिया के वफादारों में तमाम जमीन से जुड़े नेता हैं। इन्हीं में समंदर पटेल भी थे। पटेल ने लिंबोदी ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में राजनीति की शुरुआत की, इस पद पर वह 1994 से 2015 तक लगातार चार बार रहे। वह धाकड़ समुदाय से हैं, जिसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसमें 24% वोट शेयर है। जावद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने जो हलफनामा दिया था, उसमें 89 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की गई थी। वो राज्य के सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं।