एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से उसके सहयोगी दल अलग क्यों होते जा रहे हैं इनमें भी शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना जैसे सबसे पुराने सहयोगी दल भी शामिल हैं जिन्हें हर सुख-दुख में बीजेपी का साथी समझा जाता रहा था। दो दिन पहले ही कृषि विधेयकों (अब क़ानून) पर एनडीए का साथ छोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की मानें तो एनडीए में सहयोगी दलों की बात ही नहीं सुनी जाती है। बादल ने साफ़ तौर पर कहा है कि एनडीए सिर्फ़ नाम का है। कुछ ऐसे ही आरोप शिवसेना और टीडीपी ने भी तब लगाए थे जब उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ा था। तो सवाल है कि क्या सहयोगी दलों के साथ बीजेपी 'मनमानी' करती है या फिर इन क्षेत्रियों दलों की अपनी कोई और सियासी मजबूरी है
कृषि विधेयकों के मुद्दे पर ही बीजेपी का सबसे पुराना साथी रहे शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने एनडीए छोड़ने के कारण बताए हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा, 'पिछले 7, 8, 10 साल या इससे ज़्यादा समय से एनडीए सिर्फ़ नाम का है। एनडीए में कुछ भी नहीं है। कोई चर्चा नहीं, कोई योजना नहीं, कोई बैठक नहीं। मुझे पिछले 10 वर्षों में एक दिन भी याद नहीं है जब प्रधानमंत्री ने एनडीए की बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने चर्चा की कि उनके मन में क्या है। गठबंधन कागज पर नहीं होना चाहिए... इससे पहले, वाजपेयी के समय में बढ़िया संबंध हुआ करता था। मेरे पिता एनडीए के संस्थापक सदस्य हैं... यह दुखद है कि हमने एनडीए बनाया लेकिन एनडीए आज नहीं है।'
बादल ने अकाली दल द्वारा राज्य में गठबंधन धर्म का पालन किए जाने की बात करते हुए कहा कि राज्य में अकाली दल बड़ी पार्टी है फिर भी वह बीजेपी को साथ लेकर चला। इस बात पर कि गठबंधन में उन्हें दूरदर्शिता दिखानी चाहिए थी, बादल ने कहा कि यह पार्टी की एकमत राय थी क्योंकि जब हरसिमरत कौर ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा दिया था तो हमने पार्टी की बैठक बुलाई और उसमें एनडीए से अलग होने का फ़ैसला लिया गया।
12 दिन पहले ही अकाली दल ने मोदी मंत्रिमंडल से अलग होने का फ़ैसला लिया था और तब हरसिमरत कौर ने इस्तीफ़ा दे दिया था। विवादास्पद तीन कृषि विधेयकों पर असहमति व्यक्त करते हुए अकाली दल ने शनिवार देर शाम को एनडीए से अलग होने की घोषणा की।
हालाँकि, पार्टी पर तो आरोप ये लग रहे हैं कि अकाली दल इसलिए एनडीए से अलग हुआ है क्योंकि राज्य में उसके वोट बैंक के छिटकने का डर है। इन आरोपों में भी कुछ सच्चाई लगती है क्योंकि शुरुआत में जब कृषि विधेयक से महीनों पहले इस पर अध्यादेश लाया गया था तब अकाली दल ने इसका विरोध नहीं किया था। लेकिन जब किसानों ने ज़बरदस्त विरोध करना शुरू किया तो अकाली दल भी किसानों के साथ खड़ी हो गई। संसद में जब कृषि विधेयक लाये गये तो पार्टी एनडीए से अलग हो गई।
अब ऐसे में यह तर्क भी दिया जा सकता है कि यदि सहयोगी दल को उसके वोट बैंक के छिटकने का डर है तो गठबंधन की बड़ी पार्टी ने क्या इसका ध्यान रखा कि उसे विश्वास में लिया जाए। हरसिमरत कौर के इस्तीफ़े के बाद से ही अकाली दल आरोप लगाता रहा है कि कृषि विधेयक पर उसे विश्वास में नहीं लिया गया। और अब सुखबीर बादल ने यह आरोप लगाया है कि एनडीए में किसी मुद्दे पर चर्चा ही नहीं होती है।
अकाली से पहले जब शिवसेना, टीडीपी और आजसू जैसे दल अलग हुए थे तो उन्होंने भी कुछ ऐसे ही कारण बताए थे।
शिवसेना-बीजेपी
पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान जब शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटा था तब भी शिवसेना ने बीजेपी पर मनमानी करने का आरोप लगाया था। तब एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार बनाने में जुटी शिवसेना के प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने कहा था कि बीजेपी मनमानी कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया था कि शिवसेना को एनडीए से बाहर करने से पहले एनडीए के घटक दलों के बीच कोई चर्चा क्यों नहीं की गई 'एबीपी न्यूज़' से बातचीत में राउत ने कहा था कि 'ऐसी मनमानी अटल जी के जमाने में नहीं थी। एक साथ बैठ कर चर्चा होती थी। लेकिन आज ये नहीं रहा।'
टीडीपी-बीजेपी
आंध्र प्रदेश में 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वह राज्य में क्षेत्रीय आंदोलन तथा अशांति को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा था कि एनडीए में बीजेपी सिर्फ़ कमज़ोर साथियों को रखना चाहती है। 'इकोनॉमिक टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू ने कहा, 'बीजेपी ने एक साल के भीतर एकतरफ़ा तरीक़े से तेलगांना में गठबंधन तोड़ लिया, इसके बावजूद हमने आंध्र में रिश्ता जारी रखा। हमने चार साल इस उम्मीद में काटे कि बीजेपी राज्य के बारे में अपने वादे को पूरा करेगी, इसके बाद हमने एनडीए छोड़ा।' बता दें कि टीडीपी आँध्र प्रदेश के विशेष दर्जे की माँग कर रही थी और उसने दावा किया था कि बीजेपी ने इसका आश्वासन दिया था।
बीजेपी-आजसू
झारखंड में बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू के बीच 19 साल की सियासी दोस्ती थी। लेकिन 2019 में चुनाव से पहले सीट बँटवारे को लेकर वह दोस्ती टूट गई। तब आजसू ने आरोप लगाया था कि उसे कम सीट दी जा रही थी और इस मामले में बीजेपी मनमानी थोपना चाहती थी। तब यह कहा जा रहा था कि बीजेपी अपने बूते चुनाव जीतने की उम्मीद लगाए बैठी थी तो आजसू को अपना जनाधार बढ़ाना था। इस बीच दोनों दलों के बीच संबंध इतने बिगड़ गए कि गठबंधन टूट गया।
बहरहाल, एनडीए से अलग होने वाले दलों की भी अपनी कुछ मजबूरियाँ होंगी और एनडीए का नेतृत्व करने वाली बीजेपी की भी। लेकिन एनडीए के इतने पुराने दलों के क्या ये आरोप बिलकुल ही बेबुनियाद होंगे