कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने शनिवार को दावा किया कि उनकी पार्टी को राज्य में एक और मौका मिलने जा रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों का मूड इस बार सरकार बदलने के रुझान को बदलने का है। चुनावों के बारे में एएनआई से बात करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, "मुझे विश्वास है कि कांग्रेस को राज्य में (सत्ता में लौटने का) एक और मौका मिलेगा। हमें सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्या मिलेंगी। यहां के लोग उन लोगों को वोट देना चाहते हैं जो काम करते हैं और प्रतिबद्ध रहते हैं।"
सचिन ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ मतभेदों से जुड़े सवालों को अधिक महत्व नहीं दिया। कांग्रेस नेता पायलट ने कहा, "हमने पार्टी के लिए साथ मिलकर काम किया है। यह दो या तीन लोगों के बारे में नहीं है। राजस्थान की कांग्रेस इकाई एकजुट है।"
सचिन पायलट खुद टोंक से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने अपना वोट सुबह ही डाल दिया। शनिवार को राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 199 पर मतदान शुरू हुआ। राज्य में भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों के बीच लंबे समय से अनबन चल रही थी लेकिन चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान इस पर लगाम लगाने में सफल रहा लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था।
अंदरुनी संकट से सिर्फ कांग्रेस ही नहीं जूझ रही थी। भाजपा में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री चेहरा नहीं बनाए जाने से पार्टी के अंदर भी असंतुष्ट गतिविधियां हुईं। भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा के कई समर्थकों को टिकट नहीं दिया तो उन्होंने विद्रोह करके चुनाव लड़ने का फैसला किया। नाराज वसुंधरा सिर्फ उन्हीं चुनाव क्षेत्रों में प्रचार के लिए गईं, जहां उनके समर्थकों को टिकट मिला था।
दोनों ही दलों में उठापटक के बावजूद सर्वे एजेंसियों ने अपने सर्वे में भाजपा को आगे बताया। भाजपा ने राजस्थान का चुनाव पीएम मोदी बनाम सीएम अशोक गहलोत कर दिया। पीएम ने यहां अनगिनत रैलियां कीं। राजस्थान का कोई ऐसा डिवीजन नहीं बचा, जहां के सेंट्रल प्वाइंट पर पीएम की रैलियां न हुई हों। पीएम की रैलियों का कितना असर रहा, इसका नतीजा 3 दिसंबर को आ जाएगा।
राजस्थान चुनाव का खासा महत्व है। 2018 में जब भाजपा बुरी तरह हार गई और राज्य में कांग्रेस सरकार बन गई तो 2019 में लोकसभा चुनाव हुए। लोकसभा चुनाव में भाजपा आश्चर्यजनक ढंग से सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की। इसका राजनीतिक विश्लेषण यह निकाला गया कि 2019 का चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर जीता, जबकि 2018 का चुनाव वसुंधरा राजे की वजह से हारा। इसलिए भाजपा ने 2023 में अपनी रणनीति विधानसभा के लिए बदल दी, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा 2019 जैसा करिश्मा 2024 में कर पाएगी।