चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने कहा है कि 1984 के बाद से कांग्रेस ने कोई भी लोकसभा चुनाव अपने दम पर नहीं जीता है और बीते दस साल में पार्टी को 90 फ़ीसदी चुनावों में हार मिली है। किशोर ने कहा है कि कांग्रेस का विकल्प संभव है। प्रशांत किशोर ने इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में ये बातें कही हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम कर चुके पीके बीते कुछ दिनों में कई बार कांग्रेस पर हमला बोल चुके हैं।
पीके ने कहा कि कांग्रेस को अपने अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से करना चाहिए।
पीके ने नाम लिए बिना राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए कहा कि एक ट्वीट करने से, एक कैंडल मार्च करने और एक प्रेस मीटिंग करने से बीजेपी को नहीं हराया जा सकता।
पीके ने इस बात का भी खुलासा किया कि उनकी कांग्रेस नेतृत्व के साथ दो साल तक बातचीत चलती रही और वे लगभग कांग्रेस ज्वाइन कर चुके थे। याद दिला दें कि पीके ने कुछ महीने पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाक़ात की थी और तब उनके कांग्रेस में शामिल होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा था।
किशोर ने एक बार फिर कहा कि अगले कुछ दशकों तक भारत की राजनीति बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती रहेगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातों को बेहद गंभीरता से सुनते हैं।
प्रशांत किशोर ने कुछ दिन पहले कहा था कि राहुल गांधी के साथ परेशानी यह है कि वह यह सोचते हैं कि कुछ समय बाद लोग प्रधानमंत्री मोदी को हटा देंगे लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा है।
याद दिला दें कि ममता बनर्जी ने पहले यह कहा कि कांग्रेस राजनीति करने के लिए गंभीर नहीं है और बाद में वह यहां तक बोल गईं कि यूपीए क्या है, यूपीए कुछ नहीं है। हालांकि शिव सेना ने उन्हें झटका देते हुए कहा कि बीजेपी और एनडीए के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन बनाना है तो कांग्रेस को साथ लेना ही होगा और कांग्रेस के बिना विपक्ष संभव नहीं है।
ममता बीते कुछ दिनों में कांग्रेस के कई नेताओं को टीएमसी में शामिल कर चुकी हैं और इस तरह की ख़बरें आई हैं कि इनमें से कुछ नेताओं की प्रशांत किशोर से बातचीत चल रही थी।
ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की ख़्वाहिश 2024 के आम चुनाव में टीएमसी को कांग्रेस की जगह पर मुख्य विपक्षी दल बनाने की है लेकिन यह बेहद मुश्किल काम है क्योंकि तमाम राज्यों में क्षेत्रीय दलों के बड़े नेता ममता बनर्जी का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे।