झारखंड में दो जिलों से भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं से वापस लेने और उर्दू को वापस लेने पर झारखंड ही नहीं, बिहार में भी राजनीति शुरू हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर तमाम नेताओं ने इस पर बयान देकर मुद्दा बना दिया है। झारखंड सरकार ने बोकारो और धनबाद जिलों से भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में वापस लेने की नई अधिसूचना जारी कर दी है।महत्वपूर्ण यह है कि इसमें उर्दू को भी जगह मिली है। बीजेपी और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों को भोजपुरी और मगही को मात्र दो जिलों से हटाने पर उतना ऐतराज नहीं है, जितना उन्हें उर्दू को शामिल करने पर आपत्ति है।
भोजपुरी और मगही को धनबाद और बोकारो की सूची से हटाने की मांग को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच शुक्रवार शाम राज्य सरकार ने जिला स्तरीय भर्ती परीक्षाओं के लिए क्षेत्रीय भाषाओं की संशोधित सूची जारी की थी राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा कि ये भाषाएं गांवों में आबादी के एक बड़े हिस्से द्वारा नहीं बोली जाती हैं। उन्होंने कहा, 'सीएम ने इस मुद्दे पर सीधा रुख दिखाया है। मुझे खुशी है कि अब भाषाएं वापस ले ली गई हैं। महतो और अन्य विधायक भी इस संबंध में पहले सीएम से मिल चुके थे।
आदिवासी मूलवासी संगठन ने राज्य सरकार के फैसले के समर्थन में रांची के जयपाल सिंह स्टेडियम से अल्बर्ट एक्का चौक तक जुलूस निकाला। इस अवसर का जश्न मनाने के लिए लोगों ने नारेबाजी की और पटाखे छोड़े। इस बीच, भोजपुरी, मगही और अंगिका मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव ने दावा किया कि झारखंड सरकार का फैसला असंवैधानिक है।
बिहार के सीएम नीतीश कुमार
नीतीश का रुखबिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सवाल किया है कि क्या भोजपुरी और मगही सिर्फ एक ही राज्य की भाषाएं हैं? यूपी में भी भोजपुरी बोली जाती है। बिहार-झारखंड एक था। यह (भाषा) सभी के लिए है। मुझे यह आश्चर्यजनक लगता है। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो मुझे नहीं लगता कि यह राज्य के हित में किया जा रहा है। मुझे नहीं पता ऐसा क्यों किया जा रहा है।
बहरहाल, झारखंड में चल रहे भाषा विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए, राज्य बीजेपी ने हेमंत सोरेन सरकार के राज्य में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में उर्दू को शामिल करने के फैसले के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया।
झारखंड बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने जिला स्तरीय सरकारी परीक्षाओं में भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में शामिल करने को लेकर धनबाद और बोकारो में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर सतर्क रुख अपनाया। लेकिन उन्होंने कहा, बीजेपी एक पार्टी के रूप में सभी भाषाओं का सम्मान करती है। हालांकि, मैं हेमंत सरकार से पूछता हूं कि उर्दू को सूची में क्यों शामिल किया गया? उर्दू कैसे राज्य की क्षेत्रीय भाषा बन गई? प्रकाश राज्यसभा सांसद भी हैं। उन्होंने इस कदम को राज्य सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया।
बीजेपी की राज्य सहयोगी आजसू पार्टी ने भाषाओं को सूची से हटाने की मांग की है। आदिवासी संगठन और छात्र लगभग एक पखवाड़े से भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में शामिल करने का पुरजोर विरोध कर रहे थे। राज्य के शिक्षा और आबकारी मंत्री जगरनाथ महतो ने भी भाषाओं को क्षेत्रीय सूची से हटाने की मांग की थी। रांची में भोजपुरी, मगही, अंगिका और मैथिली समुदाय के कई संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। रविवार को कांके में कई संगठनों ने हंगामा किया और एकता का आह्वान किया।
भोजपुरी, मगही अंगिका और मैथिली मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव ने कहा, "राजनीतिक दलों और संगठनों को ऐसा माहौल तैयार करना होगा जहां निवेश आ सके और झारखंड एक बेहतर राज्य बन सके।" कई संगठनों ने सोमवार को शहर में आजसू पार्टी के प्रमुख सुदेश महतो के नेतृत्व में मार्च निकालने और पुतला जलाने की घोषणा की।