आज़ाद को मिले सम्मान पर कांग्रेस में क्यों है घमासान?

08:08 am Jan 28, 2022 | यूसुफ़ अंसारी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने के एलान के बाद कांग्रेस में घमासान मच गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच कड़वाहट पैदा हो गई है। कांग्रेस में जी-23 गुट के नेताओं ने आज़ाद को खुले दिल से बधाई दी वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की तरह सम्मान लौटाने की नसीहत देते हुए उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह इस विवाद में आज़ाद के समर्थन में आगे आए हैं। हर मुद्दे की तरह इस मुद्दे पर भी कांग्रेस दो फाड़ होती नज़र आ रही है।

हैरानी इस बात पर है कि इस पूरे मामले पर कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह ख़ामोश होकर तमाशा देख रहा है। 

कांग्रेस हाईकमान चुप 

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने पद्म भूषण से नवाज़े जाने पर आज़ाद को बधाई तक नहीं दी है। ये इस बात का साफ संकेत है कि पार्टी आलाकमान ख़ासकर गांधी-नेहरू परिवार को मोदी सरकार का आज़ाद को यूं सम्मानित करना जंचा नहीं। इसीलिए इन्होंने कभी दस जनपथ के सबसे ज़्यादा करीबी समझे जाने वाले अपनी ही पार्टी के इस क़द्दावर नेता को मिले सम्मान पर चुप्पी साधे रखी। 

पार्टी के तमाम बड़े नेता समझदार हैं लिहाज़ा इस इशारे को समझ गए और इसीलिए वे चुप हैं।

आज़ाद के ख़िलाफ़ मोर्चा

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने ग़ुलाम नबी आज़ाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ये नेता परोक्ष रूप से आज़ाद पर दबाव बना रहे हैं कि वे मोदी सरकार की तरफ से दिए गए इस सम्मान को स्वीकार करने से इंकार कर दें। इसकी शुरुआत तो जयराम रमेश ने की थी। इस पर कई नेताओं ने जयराम को खरी खोटी सुनाई। लेकिन अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने भी आज़ाद को पार्टी हित में पद्म भूषण सम्मान लौटाने की सलाह दे डाली है। उनका कहना है कि पीएम मोदी ने आज़ाद को यह सम्मान राजनीतिक कारणों से दिया है न कि आज़ाद की काबिलियत के लिए।

मोइली का कहना है कि अगर आज़ाद को कांग्रेस पार्टी के हितों की चिंता है तो उन्हें ये सम्मान स्वीकार नहीं करना चाहिए। मोइली ने ये कहकर गेंद आज़ाद के पाले में डाल दी है कि सम्मान स्वीकर करना है या नहीं, ये फैसला आज़ाद को खुद करना है।

क्या कहा था जयराम रमेश ने?

कांग्रेस में आज़ाद के खिलाफ सबसे पहले जयराम रमेश ने मोर्चा खोला था। जयराम ने बुद्धदेव भट्टाचार्य के पद्म भूषण सम्मान अस्वीकार किए जाने वाले एक ट्वीट को रीट्वीट करते हुए आजाद पर कटाक्ष किया, ‘‘यही सही चीज थी करने के लिए। वह आजाद रहना चाहते हैं गुलाम नहीं।’’ इस पर कांग्रेस और कुछ दूसरी पार्टी के नेताओं ने जयराम पर पलटवार किया तो वो पीछे हटने के बजाय अड़ गए। 

हक्सर का इनकार 

उन्होंने एक किताब का पन्ना ट्वीट करके बताया कि 1973 में पीएमओ से रिटायर होते वक्त देश के सबसे मज़बूत नौकरशाह पीएन हक्सर ने कैसे पद्म विभूषण लेने से इंकार कर दिया था। पन्ने में पीएन हक्सर की ओर से तत्कालीन गृहसचिव को लिखी चिट्ठी भी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि पद्म विभूषण स्वीकार करना उनके लिए उचित नहीं होगा। 

इस तरह जयराम ने आज़ाद पर पद्म भूषण सम्मान अस्वीकार करने के लिए दबाव बनाया। अब मोइली ने दवाब बढ़ाना शुरु कर दिया है।

उल्टा पड़ा जयराम का दांव

हालांकि जिस किताब के पन्ने के ज़रिए जयराम ने आज़ाद को सबक सीखने की नसीहत दी है उसी में बाद में लिखा है कि जब 1972 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इंदिरा गांधी को भारत रत्न देने का फैसला किया था तो पीएन हक्सर ने इंदिरा गांधी को भारत रत्न नहीं लेने की सलाह दी थी।

लेकिन इंदिरा गांधी ने ये सलाह नहीं मानी थी और इससे वो काफी दिनों तक हक्सर से नाराज़ भी रहीं थीं। ट्विटर पर इसे लेकर जयराम को लोगों ने खूब खरी खोटी सुना दी है। एक तरह से जयराम का ये दांव उल्टा पड़ गया है। 

ये सवाल उठता है कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते भारत रत्न ले सकती हैं तो आज़ाद को पद्म भूषण क्यों नहीं लेना चाहिए। आज़ाद समर्थक खासकर जी-23 गुट के नेता भी यही सवाल उठा रहे हैं।

आज़ाद के समर्थन में डॉ. कर्ण सिंह

हालांकि जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. कर्ण सिंह खुल कर आज़ाद के साथ आ गए हैं। डॉ. सिंह ने गुरुवार को एक बयान जारी करके कहा कि इस मामले को लेकर जारी विवाद से उन्हें काफी दुख हुआ है। उनके मित्र आजाद इस लायक हैं। उन्होंने कहा, 'ये राष्ट्रीय पुरस्कार दलगत राजनीति का विषय नहीं बनने चाहिए, कम से कम पार्टी के भीतर तो नहीं।' उन्होंने कहा कि वह आजाद को 1971 से जानते हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत और समर्पण के चलते ये मुकाम हासिल किया है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभाई है। 

इन नेताओं ने दी बधाई

गुलाम नबी आज़ाद के समर्थन में सबसे पहले और सबसे असरदार बयान पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने दिया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। बधाई हो भाईजान। यह विडंबना है कि कांग्रेस को उनकी सेवाओं की जरूरत नहीं है, जबकि राष्ट्र सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को स्वीकार करता है।’’

राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा ने आजाद को बधाई देते हुए कहा, ‘‘जन सेवा और संसदीय लोकतंत्र में समृद्ध योगदान के लिए गुलाब नबी आजाद को यह सम्मान मिला है जिसके वह हकदार हैं। उन्हें बहुत बधाई।’’ कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी आजाद को बधाई दी।

ग़ौरतलब है कि आजाद, सिब्बल, शर्मा और थरूर कांग्रेस के उस ‘जी-23’ का हिस्सा हैं, जिसने साल 2020 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस में आमूल-चूल परिवर्तन और ज़मीन पर सक्रिय संगठन की मांग की थी।

जयराम रमेश को दिया जवाब

जयराम को कांग्रेस के भीतर से ही करारा जवाब मिला। कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने जयराम रमेश की टिप्पणी को लेकर उन्हें आइना दिखा दिया। उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘पद्म भूषण को लेकर कांग्रेस के राज्यसभा में मुख्य सचेतक (रमेश) का गुलाम नबी आजाद की आलोचना करना कुछ और नहीं, बल्कि इस सम्मान और इसे पाने वाले को कमतर करने का एक शर्मनाक संकेत है। इस तरह की सोच से कांग्रेस के उच्च मूल्यों वाले स्वभाव के साथ न्याय नहीं होगा।’’

दूसरी पार्टियों से मिला समर्थन

जहां पद्म सम्मान पर आज़ाद को अपनी पार्टी में खुले दिल से बधाई तक नहीं मिल रही वहीं दूसरी पार्टियां उनके साथ खड़ी दिखती हैं। 

टीएमसी की नेता सुष्मिता देव ने जयराम रमेश पर जोरदार हमला करते हुए आज़ाद के हक़ में आवाज़ उठाई। उन्होंने हैरानी जताते हुए सवाल किया कि क्या असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरूण गोगोई को पद्म भूषण या पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न ने भी उन दोनों को गुलाम बना दिया था? ग़ौरतलब है कि मोदी सरकार ने ही इन दोनों नेताओं को भी सम्मानित किया था। 

शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी रमेश पर निशाना साधा और कहा कि राष्ट्रीय सम्मान अस्वीकार करने पर किसी को आजाद बताना और स्वीकार करने पर गुलाम बताना, प्रदर्शित करता है कि राष्ट्रीय सम्मान के प्रति किसी के विचार कितने सतही हैं। ग़ौरतलब है कि ये दोनों ही कांग्रेस की प्रवक्ता रह चुकी हैं।

ग़ुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण से नवाज़े जाने पर कांग्रेस आलाकमान के रवैये पर राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं। ये आम धारणा रही है कि राष्ट्रीय सम्मानों के साथ राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन इन पर राजनीति शुरु से ही होती रही। निश्चित रूप से इसने कांग्रेस में हलचल तो मचा दी है।

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को आशंका है कि पार्टी के भीतर शुरु हुई ये हलचल आगे चलकर किसी तूफान का रूप भी ले सकती है।