तीन राज्यों में कांग्रेस की हार ने विपक्षी राजनीतिक के सारे समीकरण बदल दिए हैं। कांग्रेस ने 6 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई थी लेकिन तमाम क्षेत्रीय दलों के नेताओं के रुख की वजह से कांग्रेस ने वो बैठक अब स्थगित कर दी है और अगली बैठक दिसंबर के तीसरे हफ्ते में होगी। लेकिन मंगलवार के घटनाक्रम से साफ हो गया कि क्षेत्रीय दल इंडिया गठबंधन की सफलता को लेकर गंभीर नहीं हैं। सभी दलों ने 6 दिसंबर को न आने के अलग-अलग कारण बताए हैं।
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हालांकि 6 दिसंबर की इंडिया गठबंधन की बैठक स्थगित होने के बावजूद उसके समन्वय समिति की बैठक होगी। कांग्रेस के ऑफिस इंचार्ज गुरदीप सप्पल ने कहा कि इंडिया एलायंस के संसदीय दल के नेताओं की समन्वय बैठक 6 दिसंबर को शाम 6 बजे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के निवास पर होगी। सप्पल ने ट्वीट किया कि इसके बाद पार्टी अध्यक्षों/इंडिया अलायंस के प्रमुखों की बैठक दिसंबर के तीसरे सप्ताह में सभी के लिए सुविधाजनक तारीख पर तय की जाएगी।
रविवार को जैसे ही चार राज्यों के नतीजे आए, क्षेत्रीय दलों ने निशाना साधना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता गवां दी, मध्य प्रदेश में बुरी तरह पिट गई उसके बाद पहला बयान जेडीयू की तरफ से आया, जिसमें कहा गया अब नीतीश कुमार को इंडिया का नेतृत्व सौंप दिया जाना चाहिए। उसके बाद रविवार को ही टीएमसी ने ममता बनर्जी को इंडिया का नेतृत्व सौंपने की वकालत की।
सोमवार और मंगलवार इंडिया के लिए कुछ ज्यादा ही बुरे रहे। सोमवार को टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने बयान दिया कि वो 6 दिसंबर की इंडिया बैठक में शामिल नहीं हो पाएंगी। मंगलवार 5 दिसंबर को जेडीयू नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार, सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पार्टी की ओर से बयान कि दोनों ही नेता 6 दिसंबर की इंडिया बैठक में शामिल नहीं होंगे। सभी नेताओं ने खुद को व्यस्त बताया है।
इंडिया गठबंधन की अगली बैठक जब भी होगी, वो इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसमें सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होना है। लोकसभा चुनाव 2024 में करीब 5 महीने बाकी हैं, एक महीना पूरा चुनाव लड़ने में निकल जाएगा। इस तरह समय कम है और उससे पहले इंडिया में जो उठा पटक चल रही है, उससे भाजपा का रास्ता साफ होता जा रहा है।
कांग्रेस सबसे बड़ा दल है और उसे इंडिया गठबंधन या विपक्षी एकता की ज्यादा जरूरत है। लेकिन क्षेत्रीय दलों को भी कांग्रेस के कम जरूरत इंडिया की नहीं है। वो अपने दम पर बड़ी जीत हासिल नहीं कर सकते। जबकि अगर वो मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं तो मतदाता भी उन्हें तवज्जो देता है। अलग-अलग लड़ने से हर पार्टी का वोट बंटेगा। क्योंकि ज्यादातर क्षेत्रीय दल जाति आधारित दल हैं। वो अपनी ही जाति का वोट पाकर रह जाते हैं। ऐसे में उन्हें कांग्रेस की जरूरत है जो हर जाति का वोट हासिल करती है। इसी तरह कांग्रेस को तभी अन्य जातियों के वोट मिलेंगे, जब उसके साथ क्षेत्रीय दल होंगे।
हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि इंडिया गठबंधन में मनमुटाव कांग्रेस की देन है। अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश में सपा को 6-7 सीटें और जेडीयू को एक सीट दे देती आज यह नौबत नहीं आती। लेकिन एमपी में कमलनाथ के व्यवहार ने सारा काम खराब किया। उन्होंने अखिलेश के खिलाफ बयानबाजी तक की।
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कांग्रेस ने 6 दिसंबक की बैठक स्थगित कर एक तरह से परिपक्वता का परिचय दिया है। उसने अब गेंद क्षेत्रीय दलों के पाले में ही डाल दी है। अगर 18 दिसंबर की बैठक में भी ममता, नीतीश, अखिलेश नहीं आते हैं तो यह माना जाएगा और जनता में संदेश जाएगा कि तीनों क्षेत्रीय नेता कांग्रेस के साथ आगामी चुनाव में खड़े नहीं होना चाहते। कांग्रेस उस स्थिति में अपना अलग रास्ता चुनेगी। अगर भाजपा 2024 में सत्ता में वापस आती है तो उसकी जिम्मेदार अकेले कांग्रेस नहीं होगी और क्षेत्रीय दलों को भी उसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा।