क्या फिर से नीतीश कुमार के साथ आएंगे प्रशांत किशोर?

05:44 pm Sep 14, 2022 | सत्य ब्यूरो

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए छोड़कर महागठबंधन के साथ आने के बाद उनके पुराने सहयोगी भी अब वापस आ सकते हैं। इन सहयोगियों में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और पूर्व सांसद पवन वर्मा का नाम शामिल है। याद दिला दें कि पवन वर्मा और प्रशांत किशोर को जनवरी, 2020 में जेडीयू ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। पवन वर्मा ने नवंबर, 2021 में तृणमूल कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया था जबकि प्रशांत किशोर तमाम राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम करते रहे। 

लेकिन नीतीश कुमार के बीजेपी और एनडीए का साथ छोड़ते ही पवन वर्मा ने तृणमूल कांग्रेस को अलविदा कह दिया और अब कहा जा रहा है कि वह और प्रशांत किशोर एक बार फिर नीतीश कुमार के साथ मिलकर काम करेंगे। 

उधर, नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल दलों के साथ सरकार बनाने के बाद से ही विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने के काम में जुटे हुए हैं। 

पवन वर्मा विदेश सेवा में काम करते हुए कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर कई किताबें लिखी हैं। उन्हें भूटान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी मिल चुका है। जबकि प्रशांत कई राजनीतिक दलों के लिए काम कर चुके हैं और अपने चुनावी प्रबंधन का लोहा भी मनवा चुके हैं।

बताना जरूरी होगा कि पवन वर्मा को नीतीश कुमार ने ही जेडीयू की ओर से राज्यसभा का सांसद बनाया था जबकि प्रशांत किशोर भी नीतीश के बेहद करीबी लोगों में रहे हैं। नीतीश ने ही उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था।

2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे तो चुनावी रणनीति बनाने का काम प्रशांत किशोर ने ही किया था और महागबठंधन को बड़ी सफलता मिली थी। 

प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बीच बीते दिनों मीडिया में बयानबाजी का दौर भी चला था लेकिन उसके बाद पवन वर्मा की मौजूदगी में प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की मुलाकात होने से पता चलता है कि इन दोनों का फिर से नीतीश के साथ आना लगभग तय है। 

लेकिन यहां सवाल इस बात का है कि प्रशांत किशोर आखिर क्यों फिर से नीतीश कुमार के साथ आना चाहते हैं।

कई दलों के लिए किया काम 

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति बनाने के बाद और बीजेपी के सत्ता में आने के बाद चर्चा में आए प्रशांत किशोर को मीडिया में काफी तवज्जो दी जाती रही है। बीजेपी का साथ छोड़ने के बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीआरएस, टीएमसी डीएमके, वाईएसआर कांग्रेस के साथ काम किया। इस साल अप्रैल-मई में प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर अटकलें चल रही थी। उनकी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के साथ कई दौर की बैठक भी हो चुकी थी। लेकिन बाद में यह बातचीत टूट गई थी। 

रद्द होगी पदयात्रा?

कांग्रेस से बातचीत टूटने के बाद प्रशांत किशोर ने इस साल मई में बिहार में 3000 किलोमीटर की पदयात्रा करने का एलान किया था। प्रशांत किशोर ने कहा था कि वह 2 अक्टूबर से पश्चिमी चंपारण में स्थित गांधी आश्रम से यात्रा शुरू करेंगे और बिहार के गांवों, शहरों और लोगों के घरों तक पहुंचेंगे। उन्होंने कहा था कि इस दौरान वह हजारों लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलने की कोशिश करेंगे और इस पदयात्रा में 8 महीने से 1 साल तक का वक्त लग सकता है। 

इससे पहले भी प्रशांत किशोर ने बात बिहार की नाम के कार्यक्रम की घोषणा की थी। इस पर भी वह आगे नहीं बढ़ पाए थे। इसके लिए कोरोना की दूसरी लहर के कारण बने हालात का हवाला दिया गया था। लेकिन इस बार तो कोरोना को लेकर हालात सामान्य हो चुके हैं तो फिर प्रशांत किशोर अपनी 3000 किलोमीटर की पदयात्रा पर क्यों नहीं निकल रहे हैं। 

प्रशांत किशोर ने कहा था कि वह अभी कोई राजनीतिक दल का गठन नहीं करेंगे लेकिन आमतौर पर यही चर्चा थी कि प्रशांत किशोर अपना एक अलग राजनीतिक दल बनाकर बिहार में चुनाव लड़ना चाहते हैं। 

प्रशांत किशोर के बारे में कहा जाता है कि वह सरकार बनाने का काम करते हैं। तो आखिर क्यों वह अपना राजनीतिक दल बनाकर चुनाव नहीं लड़ते। प्रशांत किशोर को अपनी चुनावी रणनीति और प्रबंधन पर जबरदस्त भरोसा है तो उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में उतरना चाहिए।

अब यह लग रहा है कि प्रशांत किशोर अपनी 3000 किमी. की पदयात्रा को रद्द कर देंगे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के काम में जुटेंगे। 

निश्चित रूप से प्रशांत किशोर में चुनाव रणनीति बनाने और चुनावी प्रबंधन की काबिलियत है और उससे नीतीश कुमार और विपक्षी नेताओं को फायदा मिल सकता है।  लेकिन अगर वह खुद को साबित करना चाहते हैं तो उन्हें बिहार में अपना राजनीतिक दल बनाकर अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए। इससे पता चलेगा कि बिहार की सियासत में आखिर वास्तव में प्रशांत किशोर की पकड़ है या नहीं।