नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को पीएम मोदी करने वाले हैं। 19 दलों ने बुधवार को एक संयुक्त बयान जारी कर उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की घोषणा की है। लेकिन विपक्षी खेमे से अभी भी कुछ पार्टियां गायब हैं। ऐसे में इस विपक्षी एकता के पहले कदम को कितना मजबूत माना जाए। आज जब 19 दलों का संयुक्त बयान आया तो इसे बड़ी कामयाबी माना गया लेकिन इस महत्वपूर्ण कदम के बावजूद कुछ पार्टियों की स्थिति साफ नहीं है। ऐसा लगता है कि विपक्ष के दो खेमे निकट भविष्य में सामने आ सकते हैं। लेकिन उस स्थिति में विपक्ष को एकजुट कैसे कहा जाएगा।
19 दलों के नाम में गैर-बीजेपी दलों में के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) गायब है। बीआरएस लंबे समय से तमाम विपक्षी दलों के साथ अपना तालमेल बनाए हुए थी। लेकिन मौके से अब गायब है। हालांकि विपक्षी सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि बीआरएस नए संसद भवन आयोजन से दूर रहने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए एक अलग बयान जारी करेगी।
पिछले कुछ महीनों में विभिन्न मुद्दों पर मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के बावजूद, बीआरएस का संयुक्त बयान का हिस्सा नहीं बनने का फैसला विपक्षी खेमे की खामियों को दर्शाता है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस साल दिसंबर में होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनावों के साथ, सत्तारूढ़ बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा त्रिकोणीय मुकाबले में एक दूसरे के सामने होंगे। शायद यही वजह है कि बीआरएस अभी से दूरी बनाना चाहती हो। वैसेभी कांग्रेस ने पिछले शनिवार को कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में केसीआर को आमंत्रित भी नहीं किया था।
हालांकि बीआरएस सांसद लोकसभा से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की अयोग्यता को लेकर हुए प्रदर्शन में शामिल हुए थे। इसी तरह अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग को लेकर संसद में विपक्ष के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे।
केसीआर से नीतीश अब नहीं मिल रहे
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दिलचस्प बात यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार, भाजपा के खिलाफ विपक्ष का साझा मंच बनाने के अपने प्रयासों के तहत हाल के सप्ताहों में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मुलाकात की है। लेकिन अब तक केसीआर से मिलने से भी परहेज किया है।हालांकि केसीआर ने पिछले साल अगस्त में पटना में नीतीश से मुलाकात की थी और गैर-बीजेपी मोर्चे के प्रस्ताव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। लेकिन इधर दूरियां बढ़ रही हैं।
विपक्ष के दो खेमेः गैर-बीजेपी दलों के दो खेमे हैं। वे जो विपक्षी समूह का हिस्सा नहीं हैं, जैसे कि बसपा, अकाली दल और टीडीपी, और वे जो भाजपा और विपक्ष से समान दूरी बनाए रखने का दावा करते हैं। मसलन, नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी और वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी। इन दोनों दलों की मोदी सरकार के साथ निकटता जगजाहिर है। लेकिन कभीकभार दोनों विपक्ष के साथ मामूली दिखाई दे जाते हैं।
बसपा ने लंबे समय तक खुद को विपक्ष से दूर कर रखा है। मायावती ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था। विपक्ष ने अब राष्ट्रपति मुर्मू को दरकिनार करने के मुद्दे पर एकता बनाई है लेकिन मायावती ने उसका समर्थन नहीं किया। मायावती ने पहले ही घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी।
टीडीपी ने भी मुर्मू का समर्थन किया था। लेकिन इसके प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू भी जमीनी हकीकत को लेकर चिंतित हैं। आंध्र प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसी चर्चा है कि टीडीपी और पवन कल्याण की जन सेना वाईएसआरसीपी के खिलाफ बीजेपी के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है। इसलिए टीडीपी भी चुप है।
सुखबीर बादल की अगुवाई वाला अकाली दल 2021 में मोदी सरकार के तीन अब निरस्त कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के दौरान एनडीए से बाहर हो गया था। सोमवार को अकाली दल ने भाजपा के साथ फिर से गठबंधन की संभावना की अटकलों को खारिज कर दिया, लेकिन अन्य विपक्षी दल उसके कदमों पर कड़ी नजर रख रहे हैं।