पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के एक और नेता को तोड़ लिया है। बिहार में कांग्रेस के बड़े चेहरे और पूर्व सांसद कीर्ति आज़ाद मंगलवार को टीएमसी में शामिल हो गए। ममता बनर्जी भी दिल्ली दौरे पर आई हुई हैं। यहां उनकी सोनिया गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात होनी है।
बता दें कि ममता बनर्जी ने बीते दिनों असम की पूर्व सांसद सुष्मिता देव को, उत्तर प्रदेश में राजेशपति और ललितेशपति त्रिपाठी को, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता लुईजिन्हो फलेरो को टीएमसी में शामिल किया है।
कीर्ति आज़ाद बीजेपी के टिकट पर बिहार के दरभंगा से 2014 का लोकसभा चुनाव जीते थे। लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली पर वह हमलावर रहे थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया था। वह तीन बार दरभंगा से सांसद रहे हैं।
आज़ाद 1983 की विश्व कप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे हैं। आज़ाद के आने से टीएमसी को बिहार के साथ ही दिल्ली में भी कुछ सियासी फ़ायदा हो सकता है।
कीर्ति आज़ाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में भी थे लेकिन कांग्रेस ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था। आज़ाद का दिल्ली के पूर्वांचली समाज में अच्छा आधार माना जाता है।
ममता बनर्जी कांग्रेस के ख़िलाफ़ हमलावर दिख रही हैं। ममता ने कुछ दिन पहले कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ़ इसलिए ताक़तवर होते जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस राजनीति को लेकर गंभीर नहीं है।
ममता बनर्जी का पूरा फ़ोकस इन दिनों बंगाल से बाहर जाकर चुनाव लड़ने पर है। उनकी पार्टी टीएमसी गोवा के चुनाव मैदान में उतर रही है, त्रिपुरा में भी वह स्थानीय निकाय चुनाव लड़ रही है और साथ ही उत्तर प्रदेश और बिहार के नेताओं को भी तोड़ने के काम में जुटी है।
लेकिन सवाल यहां यह है कि ममता आख़िर कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर कैसी विपक्षी सियासी एकता बनाना चाहती हैं। जिन राज्यों में कांग्रेस बीजेपी के सीधे मुक़ाबले में है, उन राज्यों के चुनाव में उतरकर वह कांग्रेस के साथ ही विपक्षी एकता को भी कमज़ोर कर रही हैं।
ममता बनर्जी की ख़्वाहिश 2024 के आम चुनाव तक टीएमसी को कांग्रेस की जगह पर मुख्य विपक्षी दल बनाने की है और इसके लिए वह जी-जान से जुटी हुई हैं। लेकिन ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि बंगाल के बाहर टीएमसी का कोई मजबूत संगठन नहीं है।