कांग्रेस को अलविदा कहने वालीं सुष्मिता देव ने टीएमसी का हाथ थाम लिया है। सुष्मिता देव अखिल भारतीय महिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर थीं और सोमवार को ही उन्होंने पार्टी छोड़ने का एलान किया था। सुष्मिता को टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और पार्टी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने टीएमसी में शामिल किया।
सुष्मिता देव ने अपना इस्तीफ़ा पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा था। सुष्मिता देव को टीम राहुल का सदस्य माना जाता था। वह असम से आती हैं।
सुष्मिता देव असम में कांग्रेस के बड़े नेता रहे संतोष मोहन देव की बेटी हैं। अपने इस्तीफ़े के पत्र में सुष्मिता देव ने लिखा था कि वह पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे रही हैं और जन सेवा का नया अध्याय शुरू करेंगी।
उन्होंने तीन दशक तक पार्टी के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कांग्रेस के तमाम नेताओं का शुक्रिया अदा किया था।
अखिल गोगोई का दावा
असम की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी राइजोर दल के मुखिया अखिल गोगोई ने कुछ दिन पहले दावा किया था कि टीएमसी ने उनसे उनकी पार्टी में आने के लिए कहा था।
गोगोई ने कहा था कि जेल से बाहर आने के बाद वे दो बार कोलकाता गए और ममता बनर्जी से मिले थे। इस दौरान ममता बनर्जी ने उन्हें टीएमसी में शामिल होने का निमंत्रण दिया था। गोगोई ने कहा था कि वे असम में छह विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
सियासी विस्तार चाहती हैं ममता
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद ममता अब टीएमसी का विस्तार करना चाहती हैं। ममता की कोशिश बंगाल के बाहर भी पार्टी का मजबूत कैडर खड़ा करने की है और इसके संकेत वह बीते दिनों में कई बार दे चुकी हैं। ममता 2023 के मार्च में होने वाले त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करना चाहती हैं। इसके साथ ही वह असम सहित कई और राज्यों में भी दूसरे दलों से मजबूत लोगों को लाकर पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा करना चाहती हैं।
झटके पर झटका
उधर, कांग्रेस को एक के बाद एक जोरदार झटके लग रहे हैं। पिछले कुछ सालों में एसएम कृष्णा, सोनिया गांधी के क़रीबी रहे टॉम वडक्कन, रीता बहुगुणा जोशी, जगदंबिका पाल, ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर अशोक तंवर, जितिन प्रसाद सहित कई नेता पार्टी को छोड़ चुके हैं। इसके अलावा कई राज्यों में कांग्रेस के विधायकों ने बग़ावत की है, जिससे पार्टी की सरकार की वहां से विदाई हुई है।
मिलिंद देवड़ा, संदीप दीक्षित, सचिन पायलट जैसे कई नेता हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि पार्टी हाईकमान उनकी बात नहीं सुनता और वे भी लगातार नाराज़गी जताते रहते हैं।
नेतृत्व का संकट बरकरार
कांग्रेस में नेतृत्व का संकट कब हल होगा, ये सवाल ऐसा है जिसे पार्टी आलाकमान लंबे समय से टालता जा रहा है। काफी समय से पार्टी के वरिष्ठ नेता मुखर होकर यह सवाल उठा चुके हैं लेकिन इस मामले के साथ ही पार्टी में आंतरिक चुनाव की मांग के मुद्दे पर भी कोई फ़ैसला नहीं हो सका है। पार्टी के वरिष्ठ नेता कांग्रेस में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था सीडब्ल्यूसी में भी पारदर्शी ढंग से चुनाव चाहते हैं।
अभिषेक मनु सिंघवी से लेकर शशि थरूर और संदीप दीक्षित तक कई बार स्थायी अध्यक्ष का मसला उठा चुके हैं। पार्टी नेताओं के लिए यह मसला इस कदर अहम हो चुका है कि वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी को ‘सत्य हिन्दी’ के साथ बातचीत में कहना पड़ा था कि नेतृत्व का संकट हल नहीं होने से कांग्रेस को नुक़सान हो रहा है और यदि राहुल गांधी अध्यक्ष न बनने को लेकर ज़िद पर अड़े हैं तो फिर चुनाव के जरिये नया अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
हालांकि राहुल गांधी ने संसद के मानसून सत्र में विपक्षी दलों के साथ मिलकर मोदी सरकार को घेरा था। किसान आंदोलन और पेगासस जासूसी के मामले में भी कांग्रेस बेहद सक्रिय दिखी लेकिन एक के बाद एक करके पार्टी छोड़ रहे नेताओं के कारण कांग्रेस निश्चित रूप से कमजोर हो रही है और 2022 के चुनावी साल से पहले इस तरह के राजनीतिक घटनाक्रम पार्टी के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।