गुरूवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतगणना होगी। राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए गठबंधन की ओर से झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू और कुछ विपक्षी दलों के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के बीच मुक़ाबला है। 64 साल की द्रौपदी मुर्मू अगर राष्ट्रपति पद के लिए चुनी जाती हैं तो वह भारत की राष्ट्रपति बनने वालीं पहली आदिवासी महिला होंगी। जानना जरूरी होगा कि द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा कौन हैं।
द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू ने भुवनेश्वर के रमा देवी महिला कॉलेज से बी.ए. किया है। द्रौपदी मुर्मू ने 1979 से 1983 तक ओडिशा सरकार के सिंचाई और ऊर्जा महकमे में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया। 1994 से 1997 तक रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में बतौर शिक्षक भी उन्होंने काम किया है।
द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1997 में रायरंगपुर में काउंसलर का चुनाव जीतकर की और वह वाइस चेयरपर्सन भी बनीं। वह 1997 में बीजेपी की एसटी मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष बनीं।
साल 2000 से 2004 तक वह रायरंगपुर सीट से विधायक रहीं और उस दौरान बीजेडी-बीजेपी की सरकार में परिवहन और वाणिज्य मामलों सहित कई मंत्रालयों की स्वतंत्र प्रभार की मंत्री भी रहीं।
साल 2002 से 2009 तक द्रौपदी मुर्मू बीजेपी के एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रहीं। 2004 से 2009 तक भी वह रायरंगपुर सीट से विधायक रहीं। 2006 से 2009 तक वह ओडिशा बीजेपी एसटी मोर्चा की अध्यक्ष रहीं।
2010 में वह ओडिशा के मयूरभंज पश्चिम जिले में बीजेपी की अध्यक्ष बनीं और 2013 में इस पद पर फिर से चुनी गईं और अप्रैल 2015 तक रहीं। साल 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
यशवंत सिन्हा
द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर की सरकारों में मंत्री रहे हैं। यशवंत सिन्हा मूल रूप से पटना के रहने वाले हैं और उनका लगभग 4 दशक का राजनीतिक करियर रहा है। यशवंत सिन्हा आईएएस अफसर रहे हैं और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ दी थी और 1984 में जनता पार्टी में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी।
यशवंत सिन्हा को 1984 में जनता पार्टी ने झारखंड की हजारीबाग सीट से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह तीसरे नंबर पर आए थे। 1986 में जनता पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया और 1988 में वह पहली बार राज्यसभा पहुंचे। 1989 में जनता दल का गठन होने के बाद यशवंत सिन्हा को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।
जनता पार्टी को 1989 के आम चुनाव में 143 सीटों पर जीत मिली थी और उसने वीपी सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई थी। इस सरकार को बीजेपी और वाम दलों ने भी समर्थन दिया था। अपनी ऑटोबायोग्राफी में यशवंत सिन्हा ने इस बात को कहा है कि वीपी सिंह ने उन्हें उस सरकार में मंत्री बनने का ऑफर दिया था लेकिन उन्होंने मंत्री बनने से इनकार कर दिया था।
साल 1990 में बनी जनता दल की चंद्रशेखर सरकार के वक़्त देश के आर्थिक हालात खराब हो चुके थे। यशवंत सिन्हा को इस सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया था। 1996 में यशवंत सिन्हा बीजेपी में आ गए और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने।
आडवाणी के करीबियों में शुमार
यशवंत सिन्हा को बीजेपी में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के करीबियों में शुमार किया जाता रहा। 1999 में बनी बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनाया गया। एनडीए को 2004 के लोकसभा चुनाव में हार मिली थी और यशवंत सिन्हा भी हजारीबाग सीट से चुनाव हार गए थे।
लेकिन बीजेपी ने यशवंत सिन्हा को प्रमोट करते हुए उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वह हजारीबाग सीट से चुनाव जीते।
2021 में यशवंत सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। यशवंत सिन्हा बीते कई सालों में मोदी सरकार के कई फैसलों की खुलकर आलोचना करते रहे हैं।