कांग्रेस में कोढ़ में ख़ाज ये हो गया है कि एक तो पार्टी लगातार चुनाव हार रही है, दूसरा कोई नेता अगर आलाकमान की आलोचना करे तो बाक़ी नेता मीडिया में आकर उस पर हमलावर हो जाते हैं। इससे होता ये है कि जो लड़ाई आपकी कमरों के भीतर बंद है, वो चौराहों पर आ जाती है।
इससे पार्टी की जबरदस्त फ़जीहत हो रही है क्योंकि चिट्ठी विवाद के दौरान ऐसा हो चुका है। भिड़ भी बहुत सीनियर नेता रहे हैं, युवा होते तो मान लिया जाता कि इनमें सियासी तजुर्बे की कमी है, इस वजह से उनसे ग़लती हो गई है।
बिहार और कुछ राज्यों के उपचुनाव में बेहद ख़राब प्रदर्शन के कारण आलोचकों के निशाने पर आई कांग्रेस में अब घर के भीतर ही सिर-फुटव्वल शुरू हो गई है।
मैदान में उतरे गहलोत
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने जब ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए ताज़ा इंटरव्यू में ये कहा कि लोग अब कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प के रूप में नहीं देखते और पार्टी नेतृत्व उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रहा है, जिनसे पार्टी जूझ रही है तो सियासी दिग्गज अशोक गहलोत ने उनके ख़िलाफ़ बयान जारी कर दिया।
गहलोत ने ताबड़तोड़ ट्वीट करते हुए कहा, ‘कपिल सिब्बल को पार्टी के आंतरिक मामलों पर मीडिया में बात करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। इससे देश भर में पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाएं आहत हुई हैं।’
गहलोत ने कहा कि कांग्रेस ने अपने इतिहास में कई बार संकटों का सामना किया है लेकिन हर बार हमने और मजबूत होकर वापसी की। उन्होंने कहा कि ऐसा सिर्फ़ अपनी विचारधारा, कार्यक्रमों, नीतियों और पार्टी नेतृत्व में भरोसे के कारण ही संभव हो सका।
कुछ महीने पहले अपने सियासी विरोधी सचिन पायलट से खुलकर दो-दो हाथ कर चुके गहलोत ने कहा कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने हर संकट का सामना किया है और 2004 में सरकार भी बनाई थी, इस बार भी हम इससे उबर जाएंगे।
चार दशक का सियासी तजुर्बा रखने वाले गहलोत ने कहा कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो देश को एकता के सूत्र में बांध सकती है और सामूहिक विकास के रास्ते पर ले जा सकती है। उन्होंने कहा कि चुनाव में हार के कई कारण होते हैं।
बिहार में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़कर सिर्फ़ 19 सीटें जीती है जबकि उपचुनावों में गुजरात, उत्तर प्रदेश में उसका खाता तक नहीं खुला है। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में वह सिर्फ़ 9 सीटें जीती है जबकि विधानसभा चुनाव, 2018 में वह इनमें से 27 सीटें जीती थी।
कांग्रेस के ताज़ा हालात पर देखिए, चर्चा-
‘आत्मचिंतन का वक़्त ख़त्म’
सिब्बल ने इंटरव्यू में कहा था कि आत्मचिंतन का वक़्त अब ख़त्म हो चुका है। उन्होंने कहा था, ‘मेरे एक सहयोगी जो कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य (सीडब्ल्यूसी) हैं, ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस आत्मचिंतन करेगी।’ लेकिन जब छह साल तक कांग्रेस ने आत्मचिंतन नहीं किया, तो अब हम क्या इसकी उम्मीद कर सकते हैं।’
‘हमसे मुंह फेर लिया’
सिब्बल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘हम में से कुछ लोगों ने बताया कि कांग्रेस में आगे क्या किया जाना चाहिए। लेकिन हमारी बात सुनने के बजाय उन्होंने हमसे मुंह फेर लिया। अब हम रिजल्ट्स देख सकते हैं। केवल बिहार ही नहीं, बल्कि जहां-जहां उपचुनाव हुए हैं, स्वाभाविक रूप से वहां के लोग कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प नहीं मानते।’
कांग्रेस में हुए हालिया चिट्ठी विवाद के बाद सिब्बल, आज़ाद, जितिन प्रसाद सहित कुछ और नेताओं के ख़िलाफ़ पार्टी के ही अन्य नेताओं ने बयानबाज़ियां की थीं और इससे कार्यकर्ताओं के बीच बेहद ख़राब संदेश गया था।
यहां पर इस साल फ़रवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को ट्विटर पर दिए तीख़े जवाब को भी याद करना ज़रूरी होगा।
‘दुकानें बंद कर दें’
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत पर चिदंबरम के द्वारा किए गए एक ट्वीट पर शर्मिष्ठा मुखर्जी ने उन्हें जोरदार जवाब दिया था। चिदंबरम ने कहा था, ‘आम आदमी पार्टी की जीत हुई जबकि झांसा देने वालों की हार। दिल्ली में रह रहे देश भर के लोगों ने बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति और ख़तरनाक एजेंडे को हरा दिया है।’
इस पर शर्मिष्ठा ने लिखा था, ‘सर, मैं पूरे सम्मान के साथ आपसे बस इतना जानना चाहती हूं कि क्या कांग्रेस ने बीजेपी को हराने का जिम्मा राज्य स्तरीय दलों को आउटसोर्स कर दिया है। और अगर नहीं तो हम आम आदमी पार्टी की जीत पर बात क्यों कर रहे हैं, बजाय इसके कि हम अपनी हार को लेकर चिंतित हों।’
मुखर्जी ने इसके आगे बेहद कड़ा प्रहार करते हुए कहा था कि अगर यह बात (आउटसोर्स करने की) सही है तो हमें अपनी प्रदेश कांग्रेस कमेटियों की दुकानों को बंद कर देना चाहिए।
यहां बताना ज़रूरी होगा कि 15 साल तक अपने दम पर दिल्ली में सरकार चलाने वाली कांग्रेस को 2020 के विधानसभा चुनाव में शून्य सीटें मिली थीं। वह 66 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 62 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गयी थी।
ख़त्म होती उम्मीदें
स्थायी अध्यक्ष के चयन और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्यों के चुनाव को लेकर पार्टी आलाकमान सवालों के घेरे में है। सहयोगी दलों के बीच कांग्रेस अपनी प्रतिष्ठा खोती जा रही है क्योंकि उससे कहा जा रहा है कि उसके कारण महागठबंधन बिहार में सत्ता से दूर रह गया। गिने-चुने राज्यों में वह सत्ता में है और कई राज्यों में गठबंधन के लिए दूसरे दलों की ओर मुंह ताक रही है। इस सबके बीच, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का आपस में लड़ना पार्टी के जिंदा होने की उसके कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को चकनाचूर कर देता है।