बीते दिनों में बहुत तेज़ी से कई राज्यों में कांग्रेस इकाइयों के मसले सुलझाने के बाद बारी शायद अब राष्ट्रीय स्तर पर बड़े बदलावों की है। ख़बरों के मुताबिक़, सोनिया गांधी ही 2024 तक पार्टी की अध्यक्ष बनी रहेंगी क्योंकि राहुल गांधी इस पद को संभालने के इच्छुक नहीं दिख रहे हैं।
लेकिन जो अहम बात है, वह यह कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर चार कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया कि राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हों।
कार्यकारी अध्यक्ष का फ़ॉर्मूला
कार्यकारी अध्यक्ष के फ़ॉर्मूले की इन दिनों कांग्रेस में बहुत चर्चा है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम नवजोत सिंह सिद्धू के झगड़े के बाद पार्टी ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाते हुए वहां चार कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए। इसके अगले ही दिन उत्तराखंड में भी यही फ़ॉर्मूला लागू किया गया और यहां भी चार कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए।
यहां ये बात बेहद अहम है कि पंजाब और उत्तराखंड छोटे राज्य हैं। ये इतने बड़े प्रदेश नहीं हैं कि इनमें कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की ज़रूरत पड़े। इन दोनों राज्यों के अलावा असम में भी तीन कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए हैं।
कुल मिलाकर हाईकमान एक्शन में दिखा है और संकेत मिले हैं कि राजस्थान कांग्रेस में चल रहा झगड़ा भी जल्द ही ख़त्म होगा।
प्रशांत किशोर से मुलाक़ात
यहां याद दिलाना होगा कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मुलाक़ात के बाद ही हाईकमान एक्शन में आया है और उसने राज्यों को लेकर तेज़ी से फ़ैसले लिए हैं। इतना ही नहीं, मणिपुर और गोवा को लेकर भी पार्टी जल्दी फ़ैसला करने वाली है और उत्तर प्रदेश में क्या प्रियंका गांधी चेहरा होंगी या किसी दल से गठबंधन किया जाएगा, इन मामलों की भी जल्द से जल्द निपटाने पर विचार किया जा रहा है।
अब जो बात यहां राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की हो रही है, उसमें किन लोगों के नाम चर्चा में हैं, इसके बारे में बात करते हैं।
इन नेताओं में ग़ुलाम नबी आज़ाद, सचिन पायलट, कुमारी शैलजा, कमलनाथ, मुकुल वासनिक और रमेश चेन्निथला के नाम चर्चा में हैं। कार्यकारी अध्यक्षों की जिम्मेदारी होगी कि वे सोनिया और राहुल गांधी को संगठन मज़बूत करने से लेकर सरकार को घेरने और बाक़ी राजनीतिक कामों में सहयोग करें।
स्थायी अध्यक्ष का संकट
कांग्रेस के बारे में उसके विरोधी कहते हैं कि यह पार्टी 2 साल बाद भी स्थायी अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने जो अध्यक्ष पद छोड़ा तो लाख मनाने के बाद भी वह टस से मस नहीं हुए। ऐसे में जब केंद्र में एंटी बीजेपी फ्रंट की बात तेज़ी से चल रही है तो कांग्रेस को इस स्थायी अध्यक्ष के संकट को ख़त्म करना ही होगा।
इसका यही रास्ता पार्टी को दिख रहा है कि सोनिया गांधी 2024 तक कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालें और चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएं जो उन्हें सहयोग करें। इन कार्यकारी अध्यक्षों में जाति, धर्म व क्षेत्र के समीकरणों का ध्यान भी पार्टी रखेगी।
कांग्रेस जानती है कि 2022 का साल उसका सियासी मुस्तकबिल तय करने जा रहा है। 2022 में फऱवरी-मार्च में जहां 5 राज्यों के चुनाव हैं, वहीं साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं।
विवाद निपटाने की कोशिश
अगर एंटी बीजेपी फ्रंट शक्ल अख़्तियार करता है तो इसमें कांग्रेस की सियासी हैसियत क्या होगी, यह 2022 ही तय करेगा। इसलिए शायद पार्टी हाईकमान राज्यों व राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के मामलों में किसी भी विवाद को लंबा नहीं खींचना चाहता और इन्हें निपटाकर 2022 की तैयारियों में जुटना चाहता है।
पेगासस जासूसी मामला, किसान आंदोलन, कोरोना की दूसरी लहर में मोदी सरकार की नाकामियों के मुद्दे पर कांग्रेस केंद्र सरकार पर जबरदस्त हमलावर है और उसे अपना यही रूख़ बरकरार रखते हुए राज्यों के चुनावों में फ़तेह हासिल करनी ही होगी, वरना उसकी नाव का डूबना तय है।