पांच चुनावी राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद G-23 गुट के नेता शुक्रवार को दिल्ली में मिले। इन नेताओं की मुलाकात पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के आवास पर हुई।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक G-23 गुट के नेताओं की बैठक में कांग्रेस नेताओं का नजरिया बेहद आक्रामक था। बैठक में राज्यसभा में उपनेता आनंद शर्मा, सांसद कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, अखिलेश प्रसाद सिंह और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शामिल थे। कुछ नेता इस बैठक में वर्चुअली भी जुड़े।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक कुछ नेताओं ने इस बात को साफ किया कि उन्हें राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है। बैठक में यह भी चर्चा हुई कि क्या पार्टी नेताओं को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में शामिल होना चाहिए।
पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद ऐसी खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाने जा रही हैं।
बैठक में मौजूद नेता इस बात पर सहमत हुए कि पार्टी के सामने अस्तित्व का संकट आ गया है और अगर बड़े कदम नहीं उठाए जाते हैं तो यह और ज्यादा सिकुड़ जाएगी।
G-23 गुट के नेताओं ने साल 2020 में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए थे और उसके बाद से इसके तमाम नेता अपने बयानों से पार्टी को चेताते रहे हैं।
एक नेता ने कहा कि G-23 गुट के नेता आगे भी मिलते रहेंगे।
इस नेता ने कहा कि वे भारतीय राजनीति के अशांत महासागर की एक नाव में बैठे हैं जहां पर चारों ओर से पानी बह रहा है इसलिए या तो हम डूब सकते हैं या फिर हम में से कुछ लोग इस नाव को फिर से किनारे पर ले जाने की कोशिश करेंगे।
बैठक में पंजाब में आम आदमी पार्टी के उभार पर भी चिंता जताई गई और पार्टी नेताओं ने कहा कि वे आंखें बंद करके चुप नहीं बैठ सकते।
आत्मचिंतन का वक्त: कमलनाथ
इधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि पंजाब में पार्टी की गुटबाजी ने उसे नुकसान पहुंचाया और अन्य राज्यों में सांगठनिक ढांचे की गैरमौजूदगी के कारण पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
कमलनाथ ने कहा कि पार्टी के लिए यह आत्मचिंतन का वक्त है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ने मेहनत की लेकिन हम जीत हासिल नहीं कर सके और यह बात सच है कि हमारा प्रचार देर में शुरू हुआ।
बेहद ख़राब प्रदर्शन
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पांच चुनावी राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। उम्मीद थी कि वह पंजाब में सत्ता बरकरार रखेगी और उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बेहतर प्रदर्शन करेगी।
किसी नए राज्य में जीत हासिल करने के बजाय उसने पंजाब को भी गंवा दिया है। पंजाब में हार इस कदर करारी है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी चुनाव हार गए हैं।
कांग्रेस अब सिर्फ 2 राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही रह गई है जबकि झारखंड और महाराष्ट्र में वह सहयोगी दलों के साथ सरकार में है। लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी की आंतरिक गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है।
2014 के बाद से अब तक हुए 45 चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 5 चुनाव में जीत हासिल कर सकी है और इससे समझा जा सकता है कि वह पिछले आठ सालों में कितनी कमजोर हुई है।
बेहद खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों की अगुवाई करने का दावा करने की हालत में भी नहीं रह गई है। ऐसे में क्या वह अपनी गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ेगी। वैसे, कांग्रेस ने काफी देर कर दी है लेकिन अभी भी वह वापस लौट सकती है।