कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 7 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से 'भारत जोड़ो यात्रा' शुरू की। यह यात्रा देश के 12 राज्यों से होते हुए गुजरेगी और 3570 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस यात्रा के ज़रिए वह 2024 के चुनाव से पहले संगठन में जान फूँकने के साथ ही तमाम मुद्दों पर मोदी सरकार को भी घेरने में सफल होगी। लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या पहले किसी पार्टी द्वारा की गई ऐसी यात्राओं में बेहतर नतीजे निकले हैं?
इन सवालों के जवाब पाने से पहले यह जान लें कि कांग्रेस की इस यात्रा में क्या खास है और यह यात्रा कैसी होगी।
भारत जोड़ो यात्रा को निकालने की योजना इस साल जून में उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में बनी थी। भारत जोड़ो यात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू होगी और फिर तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, नीलांबुर, मैसूर, बेल्लारी, रायचूर, विकाराबाद, नांदेड़, जलगांव, इंदौर, कोटा, दौसा, अलवर, बुलंदशहर, दिल्ली, अंबाला, पठानकोट, जम्मू से होते हुए उत्तर भारत की ओर बढ़ेगी। इस यात्रा को जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में समाप्त होना है।
कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक 5 महीने में पूरी होने वाली इस यात्रा में पार्टी के एक सौ से ज़्यादा नेता शामिल हैं। यात्रा में शामिल होने वाले लोगों में से अधिकतर 30 से 40 साल तक की उम्र के हैं।
यात्रा की अगुवाई करने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 148 दिन तक चलने वाली यात्रा के दौरान एक शिपिंग कंटेनर के केबिन में रात गुजार रहे हैं।
चंद्रशेखर ने की थी भारत यात्रा
वैसे, कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जितने बड़े पैमाने पर प्रस्तावित है उतने बड़े पैमाने पर हाल में कोई यात्रा नहीं निकाली गई है। इससे पहले क़रीब 39 साल पहले ऐसी यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने निकाली थी।
चंद्रशेखर ने 1983 में वह पदयात्रा की थी। हालाँकि उनकी वह यात्रा कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली तक थी। उस यात्रा को चंद्रशेखर ने भारत यात्रा नाम दिया था। उनकी वह भारत यात्रा 4,000 किमी से अधिक की थी। 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी से शुरू हुई वह यात्रा 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर ख़त्म हुई थी। बता दें कि चंद्रशेखर 1990 में देश के 8वें प्रधानमंत्री चुने गए थे। हालांकि मार्च 1991 में बहुमत नहीं होने के कारण उनकी सरकार गिर गई थी।
हालाँकि, ऐसी पदयात्राएँ कई राज्यों में भी नेताओं ने की और उनको इसका काफी फायदा मिला। आंध्र प्रदेश में वाईएसआर की तरह जगन मोहन ने 3,648 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली थी। यह पदयात्रा 341 दिन में पूरी हुई। 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 175 में से 151 सीटें जीतीं और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
वाईएसआर की पदयात्रा की वजह से चंद्रबाबू नायडू ने 2004 में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाई थी। वाईएसआर ने 2 महीने में 1500 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। इसके बाद चंद्रबाबू ने 2013 में 1,700 किमी लंबी पदयात्रा की। 2014 में वह विधानसभा चुनाव जीते और मुख्यमंत्री बने थे।
तो सवाल है कि क्या कांग्रेस भी इसी तरह की पदयात्रा करना चाहती है और क्या उसको इसका लाभ मिलेगा? यह इस पर निर्भर करता है कि वह यात्रा कितनी तन्मयता से की जाती है और कितना वह सफल हो पाती है।