कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया था। राहुल ने साफ शब्दों में मां को मना कर दिया था। यह दुर्लभ और अनकहा विवरण आने वाली किताब हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड में दर्ज है। इसकी लेखिका हैं देश की जानी-मानी पत्रकार नीरजा चौधरी जो इंडियन एक्सप्रेस की स्तंभकार भी हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार 30 जुलाई को उनकी किताब से कुछ महत्वपूर्ण अंश एक रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किए हैं। यह किताब अगले हफ्ते अलेफ प्रकाशन से आ रही है। नीरजा चौधरी इंडियन एक्सप्रेस की राजनीतिक संपादक थीं और कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल को उन्होंने बहुत नजदीक से कवर किया है।
किताब में 10, जनपथ (सोनिया गांधी का निवास स्थान) में 17 मई 2004 की दोपहर में हुई बैठक के तथ्य शामिल हैं। इससे बहुत बड़ी जानकारी सामने आती है। नीरजा चौधरी ने पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के हवाले से लिखा है कि सोनिया गांधी , प्रियंका गांधी, मनमोहन सिंह और खुद नटवर सिंह वहां मौजूद थे। सोनिया गांधी कुछ उलझन में लग रही थीं। तभी वहां राहुल गांधी आते हैं और आते ही अपनी मां से मुखातिब होते हुए कहते हैं- मैं आपको प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा। मेरे पिता की हत्या कर दी गई। मेरी दादी की हत्या कर दी गई। छह महीने में आप भी मार दी जाएंगी। नटवर सिंह उस घटना को याद करते हुए कहते हैं कि राहुल गांधी ने धमकी दी कि अगर आपने (सोनिया गांधी) मेरी बात नहीं सुनी तो मैं बहुत कड़ा फैसला ले लूंगा।
नटवर सिंह ने नीरजा चौधरी को बताया कि यह धमकी मामूली नहीं थी। राहुल बहुत मजबूत इरादों वाले शख्स हैं। उन्होंने सोनिया गांधी को इस मामले को हल करने के लिए 24 घंटे का समय दिया। राहुल गांधी के जाने के बाद मां सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए कि कैसे उनका बेटा प्रधानमंत्री पद ठुकराने के लिए कह रहा है।
यह किताब बताती है कि जब सोनिया गांधी को पार्टी की संसदीय दल का नेता चुन लिया गया तो सोनिया और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की बात हुई। वाजपेयी ने सोनिया से कहा कि आपको मेरा आशीर्वाद है। लेकिन आप इसे स्वीकार मत कीजिए। आपके बनने से देश बंटेगा और सिविल सर्विसेज के अधिकारों की वफादारी पर दबाव बढ़ जाएगा।
जब वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण का विरोध किया
इस किताब में एक और रोचक घटना का जिक्र है। जिससे पता चलता है कि नेता किस तरह अपना स्टैंड राजनीति के लिए बदल लेते हैं। मई 1998 में, भारत ने पोखरण में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की यह एक गौरवपूर्ण घटना थी। लेकिन 1979 में, जब वह मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री थे, तो वाजपेयी ने उस समय ऐसे परीक्षण का विरोध किया था।
पूर्व सीएम अटल बिहारी वाजपेयी
किताब के मुताबिक अप्रैल 1979 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री मोराज जी देसाई ने अपने शीर्ष चार मंत्रियों रक्षा मंत्री जगजीवन राम, वित्त मंत्री चौधरी चरण सिंह, गृह मंत्री एच एम पटेल और वाजपेयी के साथ बैठक की। देसाई ने उन्हें बताया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार हासिल करने की कगार पर है और वह उनसे चर्चा करना चाहते हैं कि सरकार को उसके परमाणु कार्यक्रम के बारे में क्या करना चाहिए। दरअसल, तत्कालीन पीएम देसाई को एक गुप्त रिपोर्ट मिली। यह रिपोर्ट संयुक्त खुफिया समिति के अध्यक्ष सुब्रमण्यम ने देसाई को दी थी, जिससे देसाई चिंतित हो गए थे।
नीरजा चौधरी की किताब के मुताबिक सुब्रमण्यम ने देसाई से कहा था कि पाकिस्तान बम बनाने से बस उतना दूर है, जितनी एक स्क्रूड्राइवर के बीच की दूरी होती है।' सीपीए की उस बैठक में मंत्रियों के अलावा केवल दो अधिकारी मौजूद थे, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी सेठना और कैबिनेट सचिव निर्मल मुखर्जी। जबकि शीर्ष मंत्रियों ने संकल्प लिया कि भारत को अपने परमाणु प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए, लेकिन निर्णय सर्वसम्मत नहीं था। क्योंकि "मोरारजी और वाजपेयी आगे बढ़ने के विरोध में थे। एच. एम. पटेल, जगजीवन राम और चरण सिंह इसके पक्ष में थे।" किताब कहती है "सीपीए बैठक के एक दिन बाद, सुब्रमण्यम ने वाजपेयी से कहा- 'आप इसका विरोध कैसे कर सकते हैं?' 'आप हमेशा से इसके पक्ष में रहे हैं! वाजपेयी ने बचाव की मुद्रा में जवाब दिया- 'नहीं, नहीं, अब सबसे महत्वपूर्ण बात पाकिस्तान को बम बनाने से रोकना है लेकिन हमें उन्हें उकसाना नहीं चाहिए।'' सुब्रमण्यम ने लेखिका नीरजा चौधरी से इन तथ्यों की पुष्टि की है।