क्या है दक्षिण भारत में पैर पसारने का बीजेपी का ब्लूप्रिंट?

07:47 am Jul 12, 2022 | यूसुफ़ अंसारी

2024 के लोकसभा चुनाव में अभी पौने दो साल बाकी हैं। लेकिन बीजेपी ने अभी से सियासी किलेबंदी शुरू कर दी है। उत्तर, मध्य और पूर्वोत्तर के बाद अब बीजेपी दक्षिण भारत पर पूरी तरह राजनीतिक रूप से क़ब्ज़े का तैयारी में है। पार्टी ने इसका ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया है। 

हाल ही में हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद दक्षिण भारतीय राज्यों की चार बड़ी हस्तियों को राज्यसभा में नामित करके बीजेपी ने इसके संकेत दे दिए है।

चार राज्यों से चार बड़ी हस्तियां राज्यसभा में 

मोदी सरकार ने मनोनीत कोटे से दक्षिण भारत से चार बड़ी हस्तियों को राज्यसभा के लिए नामित किया है। ये क़दम उठाकर मोदी सरकार ने दूरगामी राजनीतिक संदेश दिया है। पूर्व दिग्गज एथलीट पी टी उषा केरल से आती हैं तो मशहूर संगीतकार इलैयाराजा तमिलनाडु से हैं। दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने पटकथा लेखक एवं निर्देशक वी विजयेंद्र प्रसाद आंध्र प्रदेश से और आध्यात्मिक गुरु वीरेंद्र हेगड़े का ताल्लुक कर्नाटक हैं। इस तरह मोदी सरकार ने दक्षिण भारत के चार प्रमुख राज्यों से एक-एक सदस्य को उच्च सदन में भेज रही है। 

निश्चित रूप से बीजेपी की कोशिश इन नामी हस्तियों के जरिए दक्षिण के चारों राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने की है। पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीटर पर सभी के साथ अलग-अलग अपनी तस्वीर साझा करके बधाई दी। साथ ही उनके जीवन के बारे में विस्तार से बताया।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बनी योजना

इससे पहले 2-3 जुलाई को हैदराबाद में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दक्षिणी राज्यों में जनाधार बढ़ाने की रणनीति का खाका तैयार किया गया था। अब बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने में जुट गई है। दक्षिण भारत के राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ होंगे। बीजेपी हर राज्य में वहां के जातीय समीकरणों और अन्य राजनीतिक मुद्दों क साथ अलग रणनीति पर काम कर रही है। 

दक्षिण: 129 लोकसभा सीटों पर नज़र

दरअसल बीजेपी की नज़र दक्षिण के पांच राज्यों  की कुल 129 लोकसभा सीटों पर है। उसके पास इनमें से अभी सिर्फ 28 सीटें हैं। इनमें भी 25 सीटें अकेले कर्नाटक की हैं। कर्नाटक बीजेपी के लिए दक्षिण का प्रवेश द्वार है। बीजेपी ने 2008 में सबसे पहले यहां पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई थी। लेकिन 2013 में उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। 2018 में भी बीजेपी बहुमत से कुछ ही दूर रहकर सत्ता हासिल करने में नाकाम रही थी। तब कांग्रेस ने जनता दल सेकुलर को समर्थन देकर गठबंधन सरकार बनाई थी।

लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन चली थी। बीजेपी ने ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत इस सरकार को गिरा कर अपनी सरकार बना ली थी। अब बीजेपी का लक्ष्य अगले लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत की 130 में से 65-75 सीटें जीतने का है। इसके लिए वो 100 सीटों पर फोकस करेगी।

कर्नाटक में आक्रामक हिंदुत्व का मुद्दा

सबसे पहले अगले साल अप्रैल-मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों में बीजेपी के सामने अपनी सरकार को बचाने की चुनौती है। इसके लिए बीजेपी ने आक्रामक हिंदुत्व का मुद्दा गरमा कर पहले से ही माहौल तैयार कर रखा है। सीएम बदलकर बीजेपी पहले ही सत्ता विरोधी लहर को रोकने का काम कर चुकी है। कर्नाटक में साल भर से गरमा रहे हिजाब और हलाल जैसे मुद्दे पार्टी के लिए काफी फायदेमंद माने जा रहे रहें हैं।

धर्मांतरण विरोधी बिल, मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने जैसे मुद्दों पर पार्टी आक्रामक है। कर्नाटक में अगर बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापसी कर लेती है तो उसके लिए 2024 में लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव में जीती हुई 25 सीटें बचाने का रास्ता आसान हो जाएगा। इसका फायदा उसे दक्षिण के अन्य राज्यों में मिल सकता है।

तेलंगाना में गांव-गांव तक कमल निशान

तेलंगाना में अगले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं। ये टीआरएस का मज़बूत किला है। बीजेपी के लिए इसे भेद पाना बड़ी चुनौती है। पिछले चुनाव में टीआरएस ने 46.9% वोट हासिल करके राज्य की 119 में 88 सीटें जीत कर सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी। कांग्रेस 28.5% वोटों के साथ 19 सीटों पर सिमट गई थी। बीजेपी सिर्फ एक ही सीट जीत पाई थी। जबकि 2014 में उसने 5 सीटें जीती थी। उसके लिए संतोष की बात ये रही कि 7.1% वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा के मुकाबले उसका वोट 12% बढ़ा था। पार्टी राज्य में लगातार अपना राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा रही है। संगठन को मज़बूत कर रही हैं। वॉल राइटिंग के जरिए हर गांव-गांव तक कमल पहुंच रहा है। बड़े नेता लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं।

आंध्र: ‘शून्य’ से ‘शिखर’ तक का है संघर्ष

आंध्र प्रदेश में बीजेपी के सामने शून्य से शिखर तक जाने की बड़ी चुनौती है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज़ 0.84% वोट मिले थे। उसका खाता तक नहीं खुला था। जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में उसने 4 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उसने 2014 में जीती 4 सीटों में से दो गंवा दी थी। लोकसभा चुनाव में उसे 0.96% वोट मिले थे। उसे 7.56% वोटों का नुकसान हुआ था। पिछले साल नवंबर में गृहमंत्री अमित शाह ने अपने तीन दिवसीय दौरे पर कहा था बीजेपी राज्य में अपने दम पर शून्य से शिखर तक पहुंचेगी। तेलगुदेशम पार्टी या वाईएसआर कांग्रेस से गठबंधन नहीं होगा।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसी रणनीति पर आगे बढ़ने की फैसला हुआ है। पिछले 3 साल में पार्टी हर जिले और मंडल तक पहुंची। हर तीन-चार बूथ पर एक शक्ति केंद्र है। यहां युवा मोर्चा, महिला मोर्चा सहित सभी संगठनों की टीम है। पार्टी ने 8 लाख से ज्यादा वेरीफाईड सदस्य बनाए हैं।

तमिलनाडु: अपने पैरों पर खड़े होने की चुनौती

दक्षिण भारतीय राज्यों में तमिलनाडु सबसे बड़ा राज्य है। यहां लोकसभा की 39 और विधानसभा में 234 सीटें हैं। बीजेपी यहां कभी डीएमके साथ गठबंधन में रही तो कभी एआईएडीएमके के साथ। केंद्र की सत्ता में आने के बाद से वो एआईएडीएमके के साथ है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 4 सीटें जीती थी। 20 साल बाद बीजेपी को तमिलनाडु विधानसभा में प्रवेश का मौका मिला है।

बीजेपी ने पहली बार 1996 में एक सीट जीती थी। 2001 में बीजेपी ने डीएमके गठबंधन में 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने तब भी चार सीटे जीती थीं। उसके बाद लगातार तीन चुनावों में उसका खाता नहीं खुला। अब बीजेपी राज्य में अपने पैरो पर खड़ा होने की कोशिश कर रही है। उसने अपने दम पर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ा। ज्यादातर युवाओं को टिकट दिया। 5000 से ज्यादा ऐसे युवाओं की पहचान की, जो पार्टी को मजबूत कर सकते हैं। इस चुनाव में उसे 5.4% वोट मिले, पिछले विधानसभा चुनाव में 2.62% वोट मिले थे। अब पार्टी का लक्ष्य लोकसभा चुनाव में खाता खोलने का है। इसके लिए जीतने वाली सीटों की पहचान की जा रही है।

केरल में संभावनाओं की तलाश

केरल में बीजेपी अपने विस्तार की अपार संभावना देख रही है। हालांकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को केरल में तगड़ा झटका लगा था। वो विधानसभा में खाता तक नहीं खोल पाई थी। उससे पिछले चुनाव में जीती हुई एकमात्र सीट भी उसने गंवा दी थी। मेट्रो मैन के नाम से मशहूर उसके सीएम कैंडिडेट ई श्रीधरन तक चुनाव हार गए थे। लेकिन उसके लिए सबसे अच्छी बात ये रही कि वो एक भी सीट न जीतकर 11.3% वोट पाकर राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी बन गई थी। 62 सीट जीतकर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी सीपीआईएम को 25.1% वोट मिले थे। वहीं 21 सीट जीतने वाली कांग्रेस को 24.7% वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में केरल की 20 में से 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि बीजेपी का खाता नहीं खुला था। लेकिन उसे 15.54% वोट मिले थे। पथनमथिट्टा सीट पर तीसरे स्थान पर रहने के बावजूद बीजेपी लगभग 30% वोट हासिल करने में सफल रही।

वहीं त्रिशूर सीट पर केरल के प्रसिद्ध अभिनेता सुरेश गोपी ने बीजेपी ने 28% वोट हासिल किये थे। 2020 के स्थानीय निकाय के चुनावों में उसे 15.02% वोट मिले थे। इसका मतलब है कि राज्य में बीजेपी सीटें भले ही न जीत रही हों लेकिन उसका जनाधार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। 

दरअसल दक्षिणी राज्यों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि पाने के लिए पूरा मैदान है। इसी लिए वो खुले आसमान में पंख पसार कर उड़ान भरने की तैयारी कर रही है। बीजेपी रणनीतिकारों को उम्मीद है कि पार्टी की रणनीति और उसके कार्यकर्ताओं का हौसला एक न एक दिन उसे उत्तर भारतीय राज्यों की तरह दक्षिण भारतीय राज्यों की सत्ता तक भी पहुंचाएगा। इसी मक़सद से बीजेपी अपने  कार्यकर्ताओं की विशाल फौज के साथ राजनीतिक ज़मीन की जुताई में जुट गई हैं।