2014 में बीजेपी की कमान संभालने के बाद कई राज्यों में पार्टी की सरकार बनवाने वाले अमित शाह नए मिशन में जुट गए हैं। बतौर केंद्रीय गृह मंत्री इस बार उनके मिशन में- पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सबसे पहले हैं। हालांकि 2021 में जिन बाक़ी राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां भी वे पार्टी के लिए ताक़त झोंकंगे लेकिन बंगाल और तमिलनाडु के शुरुआती दौरों में उन्होंने साफ कर दिया है कि वे हर हाल में इन राज्यों में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाना चाहते हैं।
सियासत में कहा जाता है कि नेता की हैसियत उसके समर्थन और विरोध से पता चलती है। जितना ज़्यादा समर्थन और विरोध होगा, नेता का क़द उतना ही बड़ा होगा। अमित शाह जब 21 नवंबर को अपने एक दिन के दौरे पर तमिलनाडु पहुंचे तो ट्विटर पर उनका जोरदार विरोध हुआ लेकिन बीजेपी समर्थकों ने भी अपने नेता के लिए जान लड़ा दी।
इससे हुआ ये कि शाह का ये दौरा चर्चा में आ गया। शाह ने इस दौरे में करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास किया और चेन्नई में गाड़ी से उतकर जब वे सड़क पर अभिवादन स्वीकार करने आए तो उन्होंने संदेश दिया कि पार्टी का नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा है।
आने वाले 6-7 महीनों तक देश का राजनीतिक माहौल बेहद गर्म रहेगा क्योंकि जिन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, वहां बीजेपी बेहद आक्रामक ढंग से इस सियासी जंग को लड़ने जा रही है।
पश्चिम बंगाल में उसकी टक्कर तृणमूल कांग्रेस से है तो असम में उसे कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ के संभावित गठबंधन से भिड़ना है। केरल में वह वाम दलों और कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ़ से दो-दो हाथ करेगी तो तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ मिलकर डीएमके-कांग्रेस के गठजोड़ से चुनावी मुक़ाबला करेगी।
शाह के दौरे के दौरान ही एआईएडीएमके ने इस बात की घोषणा की कि बीजेपी के साथ उसका गठबंधन बना रहेगा। दोनों दलों ने 2019 का लोकसभा चुनाव भी मिलकर लड़ा था। मुख्यमंत्री पलानिस्वामी ने इसका एलान करते हुए कहा कि तमिलनाडु हमेशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करता रहेगा।
डीएमके पर बोला हमला
शाह ने इस दौरान कोरोना महामारी के दौरान किए गए कामों को लेकर पलानिसामी सरकार की तारीफ़ भी की। शाह ने डीएमके पर हमला बोला और कहा कि क्या वह बता सकती है कि उसने अपने 10 साल के शासन में तमिलनाडु के लिए क्या किया। बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष शाह ने कहा कि परिवारवाद की राजनीति करने वालों को जनता सबक सिखा रही है और 2जी घोटाले के अभियुक्तों को राजनीति पर बोलने का कोई हक़ नहीं है।
शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि अगर हर कार्यकर्ता जबरदस्त मेहनत और समर्पण से अगले पांच साल तक काम करेगा तो बीजेपी राज्य में अपने दम पर सरकार बना सकती है। इस बैठक में 200 से ज़्यादा बड़े नेता शामिल थे।
सीटी रवि को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर बीजेपी ने संकेत दिया है कि वह द्रविड़ राजनीति के प्रभुत्व वाले इस राज्य के नेताओं को पूरा सम्मान देती है। इसके अलावा बीजेपी ने सिने अदाकारा रहीं खुशबू सुंदर को पार्टी में शामिल किया है। बीजेपी नेतृत्व को उम्मीद है कि खुशबू के आने से उसे फायदा मिलेगा।
शाह डेढ़ घंटे तक कार्यकर्ताओं के साथ रहे और उन्होंने उदाहरण दिया कि बीजेपी ने किस तरह त्रिपुरा और बिहार में अपने लिए रास्ता तैयार किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि यही फ़ॉर्मूला तमिलनाडु में भी काम कर सकता है।
पिछले लोकसभा चुनाव में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को राज्य की 39 में से 38 सीटों पर जीत मिली थी जबकि एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन को सिर्फ़ 1 सीट पर। राज्य के दो सियासी दिग्गजों- करूणानिधि और जे.जयललिता की ग़ैर मौजूदगी में तमिलनाडु में यह पहला विधानसभा चुनाव होगा।
एआईएडीएमके को बीजेपी की ज़रूरत
लोकसभा चुनाव 2019 के ख़राब प्रदर्शन के बाद एआईएडीएमके को भी बीजेपी के साथ की ज़रूरत है क्योंकि पिछले दो विधानसभा चुनावों में हालात बिलकुल अलग थे। तब एआईएडीएमके की करिश्माई नेता जे. जयललिता जीवित थीं और उनकी अगुवाई में ही एआईएडीएमके ने 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में डीएमको को शिकस्त दी थी।
एआईएडीएमके की दिग्गज नेता शशिकला के जेल से बाहर आने के बाद पार्टी में उथल-पुथल ज़रूर होगी। कहा जा रहा है कि पलानिसामी और पन्नीरसेलवम शशिकला की वापसी के ख़िलाफ़ हैं। ऐसे में शशिकला के अगले क़दम पर भी निगाह रहेंगी।
दक्षिण में विस्तार चाहती है बीजेपी
उत्तर भारत में मजबूत पकड़ बनाने के बाद बीजेपी का फ़ोकस अब दक्षिण की ओर है। पार्टी की कर्नाटक में सरकार है, केरल में वह वाम मोर्चा की सरकार को लगातार घेर रही है। आंध्र प्रदेश में सरकार चला रही वाईएसआर कांग्रेस को वह एनडीए में शामिल करने की कोशिशों में जुटी है और तेलंगाना में अपने दम पर राजनीतिक सक्रियता बढ़ा रही है।
लेकिन दक्षिण के बड़े राज्य तमिलनाडु में वह अपनी सियासी ज़मीन मजबूत करना चाहती है और इसके लिए उसे एआईएडीएमके का साथ भी मिल गया है। बीजेपी चाहती है कि उसे राज्य सरकार में बेहतर भागीदारी मिले और साफ है कि इसके लिए उसे अपने संगठन को मजबूत करना होगा। शाह इसी मिशन पर जुट गए हैं।