उत्तर-पूर्व के राज्यों के स्थानीय निवासियों में अपनी पहचान को बचाने की जो चिंता है उसकी वजह से हमेशा 'स्थानीय बनाम बाहरी' के टकराव की नौबत आती रहती है। मेघालय में समय-समय पर इसी बात को लेकर जातीय दंगे होते रहे हैं। हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब ऐसे मुद्दों को संवाद के ज़रिये हल करने की जगह राजनीति करने की कोशिश की जाती है। राज्य के अल्पसंख्यक बंगालियों के ख़िलाफ़ स्थानीय खासी लोगों की नाराज़गी को समझने के लिए ज़मीनी हक़ीक़त को समझना ज़रूरी है।
बाहरी लोगों द्वारा कथित भड़काऊ कृत्यों के मुद्दे पर मेघालय के स्थानीय खासी समुदाय और अल्पसंख्यक बंगालियों के बीच तनाव का वातावरण निर्मित हो गया है और हिंसा की आशंका को देखते हुए शिलांग में सत्ता के गलियारों में ख़तरे की घंटी बज गई है।
संकट को देखते हुए मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने जनता से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की है। संगमा ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी पक्षों के साथ संवाद कर रही है कि क़ानून-व्यवस्था की स्थिति भंग न हो। उन्होंने कहा, ‘सभी पक्षों के साथ बातचीत करके सामान्य स्थिति बहाल की जाएगी।’ संगमा ने कहा कि इचामाती की घटना को लेकर कुछ महीने पहले तनाव पैदा हो गया था लेकिन ग़लतफहमी को दूर करने के लिए उनकी सरकार की तरफ़ से ठोस पहल की गई।
खासी छात्र संघ (केएसयू) ने बुधवार को मेघालय के बंगाली समुदाय को निशाना बनाते हुए शिलांग में पोस्टर लगाए। कुछ पोस्टरों में लिखा है, ‘मेघालय के सभी बंगाली बांग्लादेशी हैं’ और ‘खासी लोगों के लिए है ख़ासीलैंड; विदेशी लोग बाहर निकलो।’
बाद में पुलिस द्वारा पोस्टरों को हटा दिया गया। मेघालय पुलिस ने ट्वीट किया, ‘सार्वजनिक स्थानों पर आज प्रदर्शित किए गए बैनरों को हटा दिया गया है। हम सभी से अनुरोध करते हैं कि राज्य में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने में हमारे साथ सहयोग करें।’
ईस्ट खासी हिल्स ज़िले के डिप्टी कमिश्नर इस्वानंद लालू ने बताया, ‘हाँ पोस्टर लगाए गए थे और उन्हें हटा दिया गया है।’
कुछ पोस्टरों में लुरशाई हाइनेविता की हत्या का उल्लेख किया गया था। खासी व्यक्ति हाइनेविटा फ़रवरी में खासी समूह और ग़ैर-आदिवासियों, ज़्यादातर बंगालियों के बीच इचामाती में एक हिंसक झड़प में मारा गया था।
हिंसा तब भड़की थी जब केएसयू के सदस्यों की एक टीम बांग्लादेश सीमा के क़रीब स्थित इचामाटी गई, ताकि राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ और राज्य में इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की माँग के समर्थन में अभियान चलाया जा सके। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि मामले में मुख्य आरोपी फरार है लेकिन 41 लोगों को पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया गया है।
आईएलपी एक ब्रिटिश युग में प्रवर्तित प्रणाली है, जो नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और मणिपुर में किसी भारतीय नागरिक की यात्रा या प्रवास को नियंत्रित करती है।
हाइनेविटा की हत्या के बाद मेघालय के विभिन्न हिस्सों में कई ग़ैर-आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ इचामाटी में ग़ैर-आदिवासी निवासियों ने दावा किया है कि उन्हें फ़रवरी से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
हालाँकि केएसयू के महासचिव डोनाल्ड थबाह ने मीडिया को बताया कि इस तरह के आरोपों ने ‘पूरे खासी समुदाय की ग़लत छवि’ को चित्रित किया है।
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इचामाती में महिलाओं और बच्चों के उत्पीड़न का कोई भी मामला नहीं पाया गया है।
थबाह ने कहा, ‘पोस्टर प्रदर्शन और विरोध राज्य के बाहर इचामती के अवैध प्रवासियों और उनके प्रति सहानुभूति रखने वालों के आधारहीन और झूठे बयानों और आरोपों के ख़िलाफ़ एक प्रतिक्रिया थी।’
हाल ही में कोलकाता में मेघालय हाउस के बाहर कुछ लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और बंगाली संगठन 'अखिल बंगाली युवा एवं छात्र संगठन' के एक नेता चन्दन चटर्जी ने बुधवार को इचामाती की यात्रा करने का इरादा ज़ाहिर किया था, लेकिन राज्य सरकार द्वारा अनुमति से इनकार कर दिया गया था।
अपने संगठन की कार्रवाई का बचाव करते हुए केएसयू प्रमुख लाम्बोक मारंगर ने कहा, ‘शिलांग और राज्य के अन्य हिस्सों में बैनरों के प्रदर्शन का उद्देश्य उन स्वार्थी तत्वों को संदेश देना था जो देश को गुमराह करने और विशेष रूप से इचामाती मुद्दे पर नफ़रत पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं।’
मारंगर ने कहा, ‘
“
जो लोग शिलांग के निवासी होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन कोलकाता और अन्य स्थानों पर रह रहे हैं, वे झूठे बयान दे रहे हैं कि खासी ग़ैर-आदिवासियों को निशाना बना रहे हैं और उन्होंने कोलकाता और सिलचर में विरोध प्रदर्शन किया है।
लाम्बोक मारंगर, केएसयू प्रमुख
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और असम के बंगाली बहुल बराक घाटी क्षेत्र की पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने शिलांग में पोस्टरों पर ट्वीट किया: ‘क्या हमें अपने देश में बंगालियों के उत्पीड़न के सबूतों की ज़रूरत है कृपया पोस्टर के सभी शब्दों को नोट करें।’
पोस्टरों के बारे में पूछे जाने पर थबाह ने जवाब दिया, ‘पश्चिम बंगाल से बंगाली मेघालय नहीं आए हैं। यहाँ के अधिकांश बंगालियों के पूर्वज शरणार्थी हैं जो 1971 के युद्ध के दौरान बांग्लादेश से आए थे। उन्होंने हमारी ज़मीन पर विस्तार और अतिक्रमण किया है।’
थबाह ने कहा कि शिलांग में पोस्टर लगाने के अलावा, केएसयू के सदस्यों ने री भोई और सोहरा में ‘अवैध बांग्लादेशियों’ के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी की।
मेघालय में प्रदर्शन असम और मिज़ोरम के बीच अंतरराज्यीय सीमा पर तनाव के समय हुआ है। मिज़ोरम नागरिक समाज समूहों ने दावा किया है कि ‘अवैध बांग्लादेशी’ मिज़ोरम के निवासियों के लिए समस्याएँ पैदा करते हैं।
थबाह ने कहा कि केएसयू ने ‘अवैध बांग्लादेशियों के ख़िलाफ़ मिज़ो समुदाय के साथ एकजुटता’ व्यक्त की है।
कोलकाता में रहने वाले मेघालय के पूर्व राज्यपाल और बीजेपी नेता तथागत रॉय ने ट्वीट किया: ‘मैं मेघालय के पूर्व राज्यपाल के रूप में इसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुए कहना चाहता हूँ कि केएसयू को एचएनएलसी की तरह ही प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। यह एक राष्ट्र-विरोधी आतंकवादी संगठन है, जो भारतीय नागरिकों को धमकी देता है, जिनमें से कुछ ब्रिटिश काल से मेघालय के निवासी हैं। मेरे परिवार की तरह दोनों तरफ़ से जिनका नाता रहा है।’