राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग में अब सिर्फ 2 दिन का वक्त बचा है। चुनाव में सबसे बड़ा सस्पेंस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर है। यह साफ नहीं हो पाया है कि ममता बनर्जी कुछ विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करेंगी या फिर एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का। ममता बनर्जी उन नेताओं में से हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार के चयन के लिए आगे बढ़कर इस मामले की कमान संभाली थी।
ममता ने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में बैठक बुलाई थी और इसमें फैसला लिया गया था कि सभी विपक्षी दल चुनाव में मिलकर उम्मीदवार उतारेंगे।
पहले तो विपक्ष उम्मीदवार का ही चयन नहीं कर पाया और शरद पवार, गोपाल कृष्ण गांधी, फारूक अब्दुल्ला के इनकार के बाद बीजेपी में रहे पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया। खास बात यह है कि यशवंत सिन्हा ममता बनर्जी की पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर थे।
साथ छोड़ते गए विपक्षी दल
धीरे-धीरे चुनाव आगे बढ़ा तो कई विपक्षी दलों ने यशवंत सिन्हा का साथ छोड़ दिया। ऐसे दलों में बीजेपी का विरोध करने वाले दल भी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाने वाले दल भी शामिल हैं। कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र की महा विकास आघाडी सरकार में शामिल रही शिवसेना पार्टी में बगावत के बाद द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने को मजबूर हुई तो झारखंड में कांग्रेस के साथ सरकार चला रहा झारखंड मुक्ति मोर्चा भी मुर्मू के समर्थन में आ गया।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक यह जानना चाहते हैं कि ममता बनर्जी का स्टैंड आखिर क्या है। अब जबकि आम आदमी पार्टी, जेडीएस ने तक अपना स्टैंड बता दिया है।
ममता का ढुलमुल रवैया
अगर ममता बनर्जी यशवंत सिन्हा के साथ हैं तो उन्हें खुलकर आगे आना चाहिए और इसका एलान करना चाहिए लेकिन बजाय इसके वह खामोश हैं और कुछ दिन पहले तो उन्होंने यह तक कह दिया कि अगर उन्हें यह पता होता कि बीजेपी का उम्मीदवार कौन होगा तो हम इस पर सर्वदलीय बैठक में चर्चा कर सकते थे।
तभी से यह संकेत मिलने लगा था कि राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी का रवैया ढुलमुल है और वह खुलकर यशवंत सिन्हा के साथ नहीं खड़ी हैं।
आदिवासी समुदाय की नाराजगी का खतरा
ममता बनर्जी के ढुलमुल रवैये के पीछे वजह पश्चिम बंगाल में आदिवासी समुदाय की नाराजगी का खतरा भी है। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं और अगर वह चुनाव में जीत हासिल करती हैं तो भारत की आजादी के बाद पहली ऐसी आदिवासी महिला होंगी जो इस पद पर पहुंचेंगी। ममता शायद इसमें रोड़ा नहीं बनना चाहतीं।
पश्चिम बंगाल में आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 6 फीसद है और 2019 के लोकसभा चुनाव में इस समुदाय के बड़े हिस्से ने बीजेपी का समर्थन किया था। इसके अलावा द्रौपदी मुर्मू के महिला होने की वजह से भी ममता बनर्जी बहुत हद तक उनका विरोध करने में डर रही हैं।
असमंजस में हैं विधायक, सांसद
निश्चित रूप से ममता बनर्जी की खामोशी की वजह से तृणमूल कांग्रेस के विधायक और सांसद असमंजस में हैं कि आखिर उन्हें किसे वोट देना है। राष्ट्रपति के चुनाव में राजनीतिक दल व्हिप जारी नहीं कर सकते हैं। ऐसे में देखना होगा कि ममता बनर्जी अंतिम समय में क्या फैसला लेती हैं।
लेकिन इतना जरूर है कि एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाने के बाद विपक्षी एकता भरभराकर गिर गई है।