महाराष्ट्र में जब से शिवसेना ने एनडीए से अलग होकर सरकार बनायी है, बीजेपी उसके "हिंदुत्व" को लेकर सवाल खड़े करते रहती है। लेकिन इस बार यह सवाल प्रदेश के राज्यपाल की तरफ से खड़ा किया गया तो मामला गर्म हो गया। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को "हिंदुत्व" की याद दिलाई तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल को ही घेरे में लेते हुए सवाल खड़ा कर दिया कि आप जिस संविधान की शपथ लेकर पदासीन हुए हैं उसका मूल तत्व तो ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्षता) है तो क्या आपको उस पर विश्वास नहीं है
इस पत्र में राज्यपाल की भाषा को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ने भी एतराज जताया है। पवार ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकायती पत्र लिखा और उसे ट्विटर पर साझा भी किया है।
दरअसल, महाराष्ट्र में बीजेपी पिछले दो महीने से राज्य सरकार से मांग कर रही है कि वह मंदिरों को खोल दे। लेकिन प्रदेश सरकार कोरोना के बढ़ते संकट के कारण इससे इनकार कर रही है।
धार्मिक स्थल खोले जाएंगे तो सिर्फ हिन्दू ही नहीं अन्य धर्मों के भी खुलेंगे और ऐसे में दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ जैसा कोई वाक़या हो और किसी धर्म विशेष को निशाने पर लिया जाए, इन सभी आशंकाओं के चलते भी राज्य सरकार इस मामले में विशेष सतर्कता बरत रही है।
बीजेपी ने मंगलवार को मंदिर खुलवाने के लिए एक बार फिर से राज्यव्यापी आंदोलन किया। इस बार राज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा जिसको लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
‘अचानक सेक्युलर हो गए हैं’
राज्यपाल कोश्यारी ने अपने पत्र में कहा है कि उनसे तीन प्रतिनिधिमंडलों ने धार्मिक स्थलों को खोले जाने की मांग की है। कोश्यारी आरएसएस से जुड़े रहे हैं और बीजेपी के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने पत्र में उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा, ‘क्या आपको कोई दैवीय प्रेरणा मिल रही है कि आप मंदिर नहीं खोल रहे हैं। क्या आप अचानक सेक्युलर हो गए हैं पहले तो आप इस शब्द से ही नफरत करते थे।’
कोश्यारी ने पत्र में आगे लिखा, ‘दुर्भाग्य है कि अनलॉक के एलान के चार महीने बाद भी आपने एक बार फिर पूजा स्थलों पर लगा बैन बढ़ा दिया है।’ महामहिम ने लिखा है कि यह विडंबना है कि एक तरफ सरकार ने बार, रेस्टोरेंट ओर समुद्री बीच खोल दिए हैं, वहीं दूसरी तरफ देवी-देवता लॉकडाउन में रहने को अभिशप्त हैं।
कोश्यारी ने लिखा, 'आप हिंदुत्व के सशक्त पैरोकार रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद आपने अयोध्या जाकर श्रीराम के प्रति अपने समर्पण को सार्वजनिक किया। आप अषाढ़ी एकादशी को पंढरपुर के विट्ठल रुक्मिणी मंदिर गए और पूजा की। पर मुझे हैरानी है कि क्या धर्मस्थलों को खोलना टालते जाना है... क्या कोई ऐसा देव आदेश आपको मिला है।’
उद्धव ठाकरे ने पलटवार करते हुए अपने जवाब में कहा कि यह संयोग है कि कोश्यारी ने जिन तीन पत्रों का जिक्र किया है, वे बीजेपी पदाधिकारियों और समर्थकों के हैं।
ठाकरे ने सवाल किया कि क्या कोश्यारी के लिए हिंदुत्व का मतलब केवल धार्मिक स्थलों को पुन: खोलने से है और क्या उन्हें नहीं खोलने का मतलब धर्मनिरपेक्ष होना है।
ठाकरे ने कहा कि क्या धर्मनिरपेक्षता संविधान का अहम हिस्सा नहीं है, जिसके नाम पर आपने राज्यपाल बनते समय शपथ ग्रहण की थी। उन्होंने कहा, ‘लोगों की भावनाओं और आस्थाओं को ध्यान में रखने के साथ-साथ, उनके जीवन की रक्षा करना भी अहम है। लॉकडाउन अचानक लागू करना जिस तरह से एक बड़ी भूल है उसी तरह से उसे अचानक हटाना भी गलत साबित हो सकता है।’
शिव सेना प्रमुख ने कहा कि राज्य में कोरोना वायरस संबंधी हालात की पूरी समीक्षा के बाद धार्मिक स्थलों को खोलने का फैसला किया जाएगा। इस पत्र विवाद में अब राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार भी कूद पड़े हैं।
पवार ने जताई नाराजगी
कोश्यारी के पत्र पर नाराजगी जताते हुए पवार ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में लिखा, ‘राज्यपाल का यह पत्र किसी राजनीतिक पार्टी के नेता के पत्र जैसा लगता है। राज्यपाल जैसे पद पर बैठे व्यक्ति का ऐसा नज़रिया खेदजनक लगता है।’
पवार ने लिखा, ‘वर्तमान में हम सब कोरोना से लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में आपने (प्रधानमंत्री) सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने की बात कही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रदेश में ‘मेरा परिवार-मेरी जिम्मेदारी’ मुहिम बड़े पैमाने पर चलाई जा रही है। इस मुहिम में लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग रखने की अपील भी की जा रही है।’
पूर्व केंद्रीय मंत्री पवार ने कहा कि सिद्धि विनायक, शिर्डी, विट्ठल मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखना असंभव सा है।
पवार ने कहा कि राज्यपाल की किसी मुद्दे पर अपनी अलग राय हो सकती है लेकिन जिस तरह की भाषा का उन्होंने इस पत्र में प्रयोग किया है और उसे मीडिया में सार्वजनिक किया है, वह बहुत दुःखद है।
राजभवनों की भूमिका पर सवाल
राज्यपाल के इस पत्र के बाद विवाद बढ़ गया है। सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्या धर्म के आधार पर फैसला लेने के लिए सरकार को पत्र लिख सकता है। देश में राज्यपालों पर अपनी पार्टी के हितों के लिए काम करने और राजभवनों को राजनीतिक अड्डे के रूप में इस्तेमाल करने की ख़बरें आम हो चुकी हैं।
राज्यों में जब दल-बदल या सरकारों को अस्थिर करने का खेल होता है, उसमें राज्यपाल के विवेकाधीन निर्णयों पर सुप्रीम कोर्ट तक ने सवाल उठाये हैं। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर भी ऐसे तमाम आरोप लग चुके हैं।
प्रदेश में गैर बीजेपी सरकार के गठन के वक्त शिवसेना ने पर्याप्त समय नहीं दिए जाने का आरोप लगाया था। उसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाने और रातों-रात उसे हटाकर सूर्योदय से पहले बीजेपी के मुख्यमंत्री को बिना बहुमत के शपथ दिलाने का खेल करीब एक साल पहले सबने देखा है।
राजभवन में जिस तरह से बीजेपी नेताओं की आवाजाही रहती है, उस पर शिवसेना नेता संजय राउत पहले भी सवाल खड़े कर चुके हैं। उन्होंने जब राज्यपाल से कहा था कि वे राजभवन को राजनीति का अड्डा न बनने दें तो काफी विवाद हुआ था।
अब संजय राउत ने राज्यपाल पर आरोप लगाते हुए कहा है, ‘महाराष्ट्र सरकार संविधान में लिखे गए ‘सेक्युलर’ शब्द के वास्तविक अर्थ को ध्यान में रखते हुए कोरोना वायरस की गंभीर स्थिति को लेकर फैसले ले रही है। ऐसे में, राज्यपाल का पत्र साबित करता है कि वे भारत के संविधान का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं।’
देखिए, इस विषय पर चर्चा।
बीजेपी का हमला
दूसरी ओर, बीजेपी की तरफ से भी बयानबाज़ी बढ़ गयी है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि उद्धव ठाकरे अपने आपको बाला साहेब ठाकरे की विरासत आगे बढ़ाने वाला नेता बोलते हैं लेकिन उनका हिंदुत्व दिखावटी है। इधर, इस मुद्दे पर बीजेपी के नेताओं ने शिर्डी, मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर सहित प्रदेश के सभी प्रमुख मंदिरों के बाहर आंदोलन किया।
हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश
दरअसल, इस पूरे प्रकरण में बीजेपी की तरफ से जो रणनीति नजर आ रही है वह हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की है। बीजेपी को अच्छी तरह से पता है कि महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में किसी भी चुनावी लड़ाई को जीतने में वह तभी सफल हो पाएगी जब वह शिवसेना के हिस्से वाला हिंदू वोट अपने पाले में कर लेगी और शायद इसी रणनीति के तहत वह शिवसेना पर लगातार इस बात को लेकर हमला करती है कि कांग्रेस के साथ जाकर वह धर्मनिरपेक्ष विचारों वाली पार्टी बन गयी है।
जनवरी माह में प्रदेश में कई महानगरपालिकाओं के चुनाव होने हैं और उनके परिणाम यह सिद्ध करेंगे कि क्या प्रदेश में गठबंधन की सरकार जमीनी स्तर पर वोटों को भी जोड़ पायी है। यदि ऐसा हो जाता है तो आने वाला समय बीजेपी के लिए काफी चुनौती पूर्ण रहेगा।