मध्य प्रदेश के हड़ताली जूनियर डॉक्टर्स की ज्यादातर मांगें शिवराज सरकार ने अंततः सोमवार को मान लीं। सप्ताह भर से हड़ताल कर रहे जूनियर डॉक्टर मांगें मंजूर होने के बाद सोमवार को काम पर लौट आये। गतिरोध खत्म होने पर राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भर्ती कोरोना के रोगियों और उनके परिजनों ने राहत की सांस ली।
जूनियर डॉक्टर्स की एसोसिएशन के पदाधिकारियों और मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के बीच सोमवार को बात हुई। बातचीत में स्टाइपेंड में 17 प्रतिशत की वृद्धि की मुख्य मांग को मान लिया गया। साथ ही सीपीआई इंडेक्स की तर्ज पर वेतन में हर साल छह प्रतिशत की वृद्धि की मांग को भी मंजूर कर लिया गया।
हालांकि जूनियर डॉक्टर स्टाइपेंड में 24 प्रतिशत की वृद्धि की मांग कर रहे थे। मंत्री ने 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी और गांवों में सेवा देने से जुड़े मामले सहित कुछ अन्य मांगों पर विचार के लिये कमेटी बनाने का एलान कर दिया।
चिकित्सा शिक्षा मंत्री द्वारा मुख्य मांगें मंजूर करने और कमेटी बनाने के आश्वासन के तुरंत बाद जूनियर डॉक्टर्स ने आज ही से काम पर वापस लौटने की सहमति दे दी। अपनी सहमति के अनुसार दोपहर बाद से सभी पांचों मेडिकल कॉलेजों में जूनियर डॉक्टर्स के काम पर लौटने का सिलसिला शुरू हो गया।
ग्वालियर में अलग सुर
भोपाल में मंत्री से चर्चा और हड़ताल समाप्ति की घोषणा के कुछ देर बाद ग्वालियर से सूचना आयी कि गजरा राजा मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर तभी काम पर लौटेंगे जब सरकार की ओर से लिखित में मांगें मंजूर होने का सहमति पत्र उन्हें मिलेगा। रीवा और इंदौर में भी कतिपय जूनियर डॉक्टर्स ने ऐसी ही मांग को आगे बढ़ाया।
इन स्थितियों से ऐसा ध्वनित हुआ जूनियर डॉक्टर्स में फूट पड़ गई है। मगर प्रांतीय इकाई के पदाधिकारियों और सरकार की तरफ से स्थितियां साफ करने के बाद उपरोक्त तीनों मेडिकल कॉलेजों में भी जूनियर डॉक्टर्स के काम पर वापसी की सूचनाएं आने लगीं। इससे सरकार ने काफी राहत महसूस की।
बता दें, मध्य प्रदेश के जूनियर डॉक्टर पिछले सात दिनों से हड़ताल पर थे। छह सूत्रीय मांगों को लेकर उनके द्वारा हड़ताल की जा रही थी। उधर, राज्य में भी कोरोना की दूसरी लहर ने भारी तबाही मचायी। बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए और काफी संख्या में लोगों की जानें गईं।
मध्य प्रदेश में पिछले एक पखवाड़े से कोरोना का प्रकोप कम होना शुरू हो गया था। सरकार राहत महसूस कर रही थी। मगर सप्ताह भर पहले जूनियर डॉक्टर्स ने हड़ताल पर जाकर राज्य सरकार के संतोष को बेचैनी में बदल दिया। आज भी मध्य प्रदेश में कोरोना के 10 हजार से ज्यादा एक्टिव केस हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चरमराईं
जूनियर डॉक्टर्स ने पिछले सप्ताह जब हड़ताल शुरू की थी तब प्रदेश में कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या 20 हजार से ज्यादा थी। भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर गये थे। पांचों ही मेडिकल कॉलेजों में कोरोना के काफी बड़ी संख्या में रोगियों का उपचार चल रहा था। हड़ताल से व्यवस्थाएं चरमरा गईं थीं। सरकार के हाथ-पैर फूल रहे थे।
हाई कोर्ट की फटकार
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए हड़ताली जूनियर डॉक्टर्स को बीते गुरुवार को न केवल फटकार लगाई थी, बल्कि 24 घटों में काम पर लौटने का आदेश भी दिया था। कोर्ट ने साफ कहा था, ‘24 घंटे में जूनियर डॉक्टर काम पर नहीं लौटे तो सरकार सख्त कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगी।’
कोर्ट के आदेश के बाद बात और बिगड़ गई थी। दरअसल, राज्य के साढ़े तीन हजार जूनियर डॉक्टर्स ने इस्तीफे दे दिये थे। रेजिडेंट डॉक्टर, मेडिकल ऑफ़िसर्स और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने जूनियर डॉक्टर्स की हड़ताल का समर्थन करके सरकार की परेशानियों को और बढ़ा दिया था।
सरकार ने बनाया था दबाव
इधर, शिवराज सरकार ने हड़ताल तुड़वाने के लिए सख्ती दिखाना आरंभ कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले वाले दिन गुरुवार को ही राज्य की सरकार ने आदेश जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि जो भी जूनियर डॉक्टर बीच में सीट छोड़ेंगे उन्हें दाखिले के वक्त भरे गये बांड की राशि (10 लाख से लेकर 30 लाख बनती है) अविलंब भरनी होगी।
शुक्रवार को भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन ने 28 जूनियर डॉक्टर्स के इस्तीफे मंजूर करने और सभी जूनियर डॉक्टर्स से हॉस्टल खाली कराने का दांव भी खेल दिया था।
उधर, ग्वालियर में हड़ताल का समर्थन करने वाले 50 रेजिडेंट डॉक्टर्स के रजिस्ट्रेशन रद्द करने और नई भर्ती के लिए डीन ने विज्ञापन जारी कर हड़ताल तुड़वाने हेतु दबाव बनाया था। तमाम दबाव के बावजूद बात नहीं बन पायी थी। जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर डटे हुए थे। हाई कोर्ट के आदेश में दिये गये अल्टीमेटम की अवधि शुक्रवार को खत्म होने के बाद भी जूनियर डॉक्टर टस से मस नहीं हुए थे।
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से इनकी बातचीत बेनतीजा रही थी। शनिवार को सरकार ने अवमानना की अर्जी हाई कोर्ट में दाखिल कर दी थी। लेकिन गतिरोध दूर नहीं हो पाया था।
कोरोना रोगियों की हुई भारी फजीहत
जूनियर डॉक्टर्स और सरकार के बीच चले तमाम गतिरोध का खामियाजा मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में भर्ती कोरोना के रोगियों और उनके परिजनों को उठाना पड़ा। हालांकि सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्थाओं के दावे किये, लेकिन वे नाकाफी साबित हुए। सक्षम रोगी हड़ताल को देखते हुए मेडिकल कॉलेजों को छोड़कर प्राइवेट अस्पताल में उपचार के लिए चले गये। लेकिन गरीब किस्म के रोगी परेशान होते रहे।
प्रदेश भर के उन रोगियों को भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिन्हें पूर्व से आपरेशनों और अन्य उपचार के लिए मेडिकल कॉलेजों ने तारीखें दी हुईं थीं। दी गईं तारीखों पर पहुंचे मरीजों और उनके तीमारदारों को बैरंग लौटना पड़ा। अनेक गंभीर रोगी इलाज के लिए यहां-वहां भटकते रहे।
हाई कोर्ट में लगाई गई अवमानना याचिका पर सुनवाई अब मंगलवार को होगी। पूर्व में सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई होनी थी। हड़ताल खत्म होने की सूचना आने के बाद याचिका पर सुनवाई अगले दिन तक के लिए टाल दी गई।