जहाँ तेजी होती है वहाँ मंदी भी आती है। यह अर्थव्यवस्था का एक चक्र है जो शाश्वत है। लेकिन ऐसा बहुत कम बार ही हुआ है कि सारी दुनिया मंदी की चपेट में आ गई हो। पहले तो कोरोना वायरस ने सारी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को चोट पहुँचाई और फिर महंगाई का ऐसा दौर आया कि अमेरिका जैसा देश भी हिल गया। वहाँ महंगाई की दर बढ़कर 9 फ़ीसदी पर जा पहुँची थी। मंदी के चिन्ह वहां साफ दिखने लगे हैं।
दूसरी ओर चीन भी मंदी का शिकार हो गया। उसकी अर्थव्यवस्था 2021 में 17.46 खरब डॉलर की थी और यह 8 फ़ीसदी से भी ज़्यादा की दर से बढ़ रही थी। लेकिन अचानक ही उसका ग्रोथ मॉडल दरकने लगा और इसके गिरकर 2.8 फीसदी पर जा पहुँचने की ख़बरें आ रही हैं। महंगाई बढ़ने की भी ख़बरें आ रही हैं। यूरोप में भी मंदी दिखाई दे रही है और आसियान देश भी इसके जाल में फँसते जा रहे हैं। यूरोप की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ फ्रांस, जर्मनी, इटली और स्पेन सर्दियों के साथ-साथ मंदी भी झेलेंगे। इतना ही नहीं, वहां महंगाई की जबर्दस्त मार है।
उधर इंग्लैंड में महंगाई की दर 40 वर्षों के बाद 10 फ़ीसदी होने जा रही है और आशंका है कि यह बढ़कर 13 फ़ीसदी हो जायेगी जिसके बाद मंदी का लंबा दौर चलेगा।
दरअसल, कोविड महामारी के बाद दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएँ सिमटने लगीं क्योंकि लंबे समय तक लॉकडाउन रहा और औद्योगिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हुईं। लेकिन इससे पहले कि यूरोप इससे निकल पाता, रूस-यूक्रेन युद्ध ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। रूस के खिलाफ परोक्ष मोर्चा खोलकर यूरोपियन यूनियन और इंग्लैड ने भी अपने लिए मुसीबत बुला ली क्योंकि ये देश रूस में उत्पादित गैस पर एनर्जी की अपनी ज़रूरतों पर निर्भर करते हैं। एक ओर तो रूस ने गैस की सप्लाई पर रोक लगानी शुरू कर दी है तो दूसरी ओर सर्दियाँ आ रही हैं और वहाँ के नागरिकों को घर गर्म रखने के लिए गैस की ज़रूरत होती है। यह न केवल महंगी हो गई है बल्कि घटती भी जा रही है।
रूस और यूक्रेन दोनों ही गेहूं के बड़े उत्पादक देश हैं जो सारी दुनिया को इसकी सप्लाई करते हैं। लेकिन भीषण युद्ध के कारण सप्लाई बाधित ही नहीं हो गई है बल्कि रूस ने अपने दुश्मन यूक्रेन का साथ देने वाले देशों को उसकी सप्लाई पूरी तरह से बंद कर दी है। इससे सारी दुनिया में हाहाकार मच गया है क्योंकि इस बार मौसम खराब रहने के कारण दुनिया के कुछ देशों में अनाज का उत्पादन बहुत कम हुआ है और इनकी क़ीमतें बढ़ रही हैं जिससे महंगाई भी बढ़ रही है।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक दुनिया में 2022 में अनाज की कीमतें 13.8 फीसदी बढ़ गई हैं। भूख से बेहाल अफ्रीकी देशों के लिए यह बहुत ही बुरा है। गरीबी और कोविड महामारी से जूझ रहे अफ्रीका के सामने तो यह बहुत बड़ी चुनौती है।
इस अफ्रीकी महाद्वीप को कभी लूटने वाले देश आज इससे पल्ला झाड़कर खड़े हैं। लगभग 8 करोड़ लोगों को एक समय का खाना बमुश्किल मिल पा रहा है और लाखों बच्चे बीमारियों तथा कुपोषण के कारण काल कलवित हो गये। इस साल हॉर्न ऑफ अफ्रीका में 70 वर्षों का सबसे बड़ा सूखा पड़ने से वहाँ फसल की पैदावार काफी कम हो गई है। दुनिया के देश हैं कि उसकी मदद करने से कतरा रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह है कि डब्लूएचओ ने दानकर्ता देशों से साढ़े 12 करोड़ डॉलर की रक़म तुरंत मांगी है ताकि लाखों बच्चों की जानें बचाई जा सकें।
भारत जो अफ्रीका तथा कई अन्य देशों में अनाज भेजा करता था, इस समय अपनी मुट्ठी बंद करके बैठा है। यहाँ भी महंगाई अपना सिर उठाये हुए बैठी है। अगस्त महीने में महंगाई की दर बढ़कर 7.62 फीसदी हो गई है। उसके पहले जुलाई में इसमें गिरावट देखी गई थी लेकिन इस बढ़ी हुई दर ने लोगों के बजट पर असर डाला है। त्योहारों के महीने अक्टूबर में इसका असर देखने को मिला जब ग्राहकों को हर सामान पहले से महंगा मिला। न केवल खाद्य पदार्थों की क़ीमतें बढ़ीं बल्कि कारखानों में उत्पादित सामान भी महंगा हो गया है। महामारी से देश निकल तो गया है और उसकी जीडीपी में बढ़ोतरी भी संतोषजनक है लेकिन आने वाले समय में इस बारे में कोई पक्की बात नहीं कही जा सकती है क्योंकि दुनिया के ज़्यादातर देश इस समय आर्थिक संकट की चपेट में हैं। भारत न केवल उन्हें एक्सपोर्ट करता है बल्कि ज़रूरी सामानों का इम्पोर्ट भी। अमेरिका और चीन ऐसे देश हैं जिनसे भारत के व्यापारिक संबंध गहरे हैं।
अमेरिका में इस समय स्थिति यह है कि जिस सामान को खरीदने के लिए 2021 में 1 डॉलर देना पड़ता था उसे खरीदने के लिए 1.07 डॉलर देना पड़ता है। इससे लोगों की क्रय क्षमता पर असर पड़ा है।
भारत अमेरिका ने इस साल के छह महीनों में 44 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट किया है। यह पिछले सालों की तुलना में ज़्यादा है लेकिन वहाँ महंगाई बढ़ने से इस पर ग्रहण लग सकता है। दोनों देश इस समय औसतन एक ख़रब डॉलर का व्यापार कर रहे हैं लेकिन महंगाई और मंदी से परेशान अमेरिका के लिए इसे बरकरार बनाये रखना काफी मुश्किल होगा।
लेकिन भारत को चीन की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट से बहुत ख़तरा है। चीन इस समय हाल के वर्षों में सबसे बुरी स्थिति में है। उसकी प्रगति की रीढ़ की हड्डी यानी रियल एस्टेट जो उसकी जीडीपी की 30 फ़ीसदी है, इस समय ध्वस्त हो चुकी है। अगले साल उसकी जीडीपी बढ़ोतरी की दर गिरकर 2.8 फ़ीसदी हो जाने की संभावना है। भारत चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। चीन भारत को बहुत सारे रोजमर्रा के सामान भेजता है जो वहाँ महंगाई और कोविड के कारण बड़े पैमाने पर हो रहे लॉकडाउन की वज़ह से महंगे हो जायेंगे। इतना ही नहीं, कारखानों के लिए पुर्जे, कई तरह के कपड़ों, रसायनों और यहाँ तक कि चिप की भी सप्लाई वहाँ से होती है। इनमें दवा बनाने में काम आने वाले रसायन बड़ी मात्रा में हैं। लैपटॉप, कंप्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिक के कई अन्य सामान भी भारत चीन से बड़े पैमाने पर खरीदता है क्योंकि ये वहाँ सस्ते हैं। अब अगर चीन में महंगाई बढ़ती है या उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगता है तो भारत के लिए संभलना मुश्किल होगा। ये सभी उत्पाद महंगे हो जाएंगे।
डॉलर के लगातार गिरने से भारत में विदेशी सामान महंगे होते जा रहे हैं जिसका असर कुछ दिनों में देखने को मिलेगा। सबसे पहला असर तो कच्चे तेल की खरीद पर पड़ेगा जो हम डॉलर देकर खरीदते हैं। अमेरिका की आर्थिक स्थिति में सुधार न होने पर भारत को बड़ा धक्का लग सकता है क्योंकि अमेरिका ऐसा देश है जहाँ भारत सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट करता है और उसका व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। ध्यान रहे कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत से गहरी दोस्ती होने के बावजूद घोर निराशा जताई थी। वहां लोगों की आय में कमी का असर हमारे एक्सपोर्टपर को देखने को मिलेगा ही।
भारत एक ही बात से आश्वस्त है और वह यह कि यहाँ अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। 2021 के आँकड़े बताते हैं कि इस साल 31 करोड़ 57 लाख टन अनाजों का उत्पादन हुआ जो पिछले साल की तुलना में 50 लाख टन ज़्यादा है। यह देश के लिए सुकून की बात है कि देश में खाने-पीने के सामानों की कोई कमी नहीं है।