कोरोना महामारी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आशंकाएँ बढ़ रही हैं और लोगों को लग रहा है कि यह अनुमान से भी कम विकास कर पाएगी। इसे इससे समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी स्टैंडर्ड एंड पूअर (एस एंड पी) ने भारत की अनुमानित विकास दर में कटौती कर दी है।
एस एंड पी ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की दर से विकास दर्ज कर लेगी, पर अब उसका मानना है कि इसमें 9.5 प्रतिशत का ही विकास होगा। यानी, पहले के अनुमान से 1.5 प्रतिशत कम विकास होने की संभावना है।
एशिया के कुछ दूसरे देशों का भी यही हाल हो सकता है। फिलीपींस में विकास दर 7.9 प्रतिशत के बदले 6 प्रतिशत और मलेशिया में 6.2 प्रतिशत के बदले 4.1 प्रतिशत विकास दर हो सकती है।
चीन में तेज़ विकास
स्टैंडर्ड एंड पूअर के अनुसार कुछ दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था अनुमान से बेहतर काम कर सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत के बदले 8.3 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है। इसी तरह ब्राज़ील की विकास दर 3.4 प्रतिशत के बदले 4.7 प्रतिशत हो सकती है। मेक्सिको में 4.9 प्रतिशत के बजाय 5.8 प्रतिशत विकास दर दर्ज की जा सकती है।
दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड और रूस में भी आर्थिक विकास पहले के अनुमान से ज़्यादा हो सकता है।
कारण क्या है?
स्टैंडर्ड एंड पूअर ने कहा है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में टीकाकरण देर से शुरू हुआ। इसका यह भी कहना है कि एक स्तर तक टीकाकरण होने के बाद ही महामारी थमेगी।
इस रेटिंग एजेन्सी का मानना है कि टीकाकरण में देर होने की वजह से कोरोना महामारी के थमने में समय लग रहा है और इस वजह से अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं लौट रही है।
एस एंड पी ने अनुमान लगाया है कि विकासशील देशों में 100 लोगों में से प्रति दिन औसतन 0.2 लोगों का टीकाकरण हो रहा है। यदि यही रफ़्तार बरक़रार रही तो 70 प्रतिशत देशों में टीकाकरण करने में और 23 महीने का समय लग सकता है। ऐसा हुआ तो उनकी अर्थव्यवस्था को भी ठीक होने में पहले से अधिक समय लगेगा।
यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी दुरुस्त हुई और इसकी करेंसी डॉलर मजबूत हुई और वहां महंगाई बढ़ी तो दूसरे देशों पर बुरा असर पड़ेगा। क़र्ज़ पर टिकी अर्थव्यवस्थाओं को ब्याज के रूप में अधिक पैसे देने होंगे और उनकी दिक्क़तें बढ़ेंगी।
क्या कहा था यूबीएस ने?
इसके पहले स्विटज़रलैंड की संस्था यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया ने कहा था कि चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर शून्य से 12 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।
इसके पहले पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान पूरे देश में बग़ैर किसी तैयारी या पूर्व सूचना के लॉकडाउन का एलान कर दिया गया था।
इसका नतीजा यह हुआ था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 23.9 प्रतिशत नीचे चली गई थी।
एनएसओ का आँकड़ा
और तो और, केंद्र सरकार की संस्था नेशनल स्टैटैस्टिकल ऑफ़िस (एनएसओ) ने भी कहा है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही यानी जनवरी 2021 से मार्च 2021 के बीच विकास दर शून्य से छोड़ा ऊपर यानी 1.6 प्रतिशत पर रहा।
यह विकास दर खुश होने की नहीं चिंतित होने की बात है क्योंकि इस दौरान लॉकडाउन पूरी तरह हट चुका था और कामकाज सामान्य हो गया था। इसके बावजूद यह विकास दर यह संकेत देती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है।
याद दिला दें कि इसके पहले साल यानी वित्तीय वर्ष 2019-20 में 4 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी जो 11 वर्ष में सबके कम विकास दर थी। अर्थव्यवस्था के लिहाज यह खराब प्रदर्शन उत्पादन और निर्माण क्षेत्रों के सिकुड़ने की वजह से हुआ था। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहले तिमाही यानी अप्रैल 2020 से जून 2020 के दौरान विकास दर झटका खाते हुए -24.38 रही थी।
बता दें कि इस साल वित्तीय घाटा 78 हज़ार करोड़ रुपये का रहा है, जो पिछले साल के 2.9 लाख करोड़ रुपये के मुक़ाबले काफी कम है। अप्रैल में आठ कोर इंडस्ट्री यानी आठ मूलभूत उद्योगों की वृद्धि दर की बात करें तो यह 56.1 फीसदी रही है।