पेट्रोल-डीज़ल पर चवन्नी बढ़ाकर तिजोरी भर रही है सरकार

10:24 am Jun 26, 2021 | यूसुफ़ अंसारी - सत्य हिन्दी

पुरानी कहावत है 'बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।' यहाँ तो पेट्रोल-डीज़ल की बूंदों से केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अपनी-अपनी तिजोरी भरने में लगी हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों में चवन्नी भर का इज़ाफ़ा होता है। आम आदमी की जेब ढीली होती है।

'बूंद-बूंद से घड़ा भरने' की कहावत को कहीं पीछे छोड़ते हुए पेट्रोल-डीज़ल की लगातार महंगी होती बूंदों से केंद्र और राज्य सरकारों के ख़जाने समुंदर की तरह लबालब भर रहे हैं।  

ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक़, केंद्र की मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाली एक्साइज़ ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क से वित्त वर्ष 2020-21 में 5.25 लाख करोड़ वसूले हैं। सरकार को आयकर से सिर्फ़ 4.69 लाख करोड़ रुपए हासिल हुए हैं। बड़े कॉरपोरेट घरानों से कर के तौर पर 4.57 लाख करोड़ रुपए मिले हैं। 

सरकार के खज़ाने में कॉरपोरेट घरानों और बड़े कर दाताओं से ज़्यादा पैसा आम आदमी की जेब से जा रहा है। ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार को आयकर से ज़्यादा आमदनी पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क से हुई है।

यह हाल तब है जब महंगाई और लॉकडाउन की वजह से पेट्रोल-डीज़ल की बिक्री कम हुई है।

 खपत बढ़ी

साल 2019-20 की तुलना में साल 2020-21 में पेट्रोल-डीज़ल की खपत 10.57 फ़ीसदी कम रही है। लेकिन 2019-20 की तुलना में 2020-21 में पेट्रोल-डीज़ल के टैक्स से सरकार को 25 फ़ीसदी का मुनाफा हुआ है।

साल 2014-15 में सरकार को होने वाली कमाई कुल कमाई में पेट्रोल-डीज़ल से आने वाले टैक्स की हिस्सेदारी सिर्फ 5.4 प्रतिशत थी।

पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें बढ़ने की रफ़्तार को देखते हुए चालू वित्त वर्ष में इसकी हिस्सेदारी के और बढ़ने के आसार हैं। आम आदमी की जेबों से पैसा निकल कर सरकारों की तिजोरी में जाता रहेगा।   

25 प्रतिशत की बढ़ोतरी

ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक़, पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स से केंद्र सरकार को राज्यों से ज़्यादा कमाई हुई है। वित्त वर्ष 2014-15 में सरकार ने तेल पर कर से 72,160 करोड़ रुपये कमाए थे, जबकि 2019-20 में 4.23 लाख करोड़ रुपये कमाए। वहीं, वित्त वर्ष 2020-21 में इस पर टैक्स से होने वाली कुल आय 5.25 लाख करोड़ रुपये हो गई। 

पिछले वित्त वर्ष की तुलना में आय में 25 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2014-15 में आयकर संग्रह 2.58 लाख करोड़ रुपये, 2019-20 में 4.80 लाख करोड़ रुपये और 2020-21 में 4.69 लाख करोड़ रुपये रहा।

 सरकार की कमाई

पेट्रोल-डीज़ल से सरकार की कमाई के मामले में मोदी सरकार ने तमाम पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स बढ़ाकर पिछले सात साल में अपनी आमदनी दोगुनी से भी अधिक कर ली है। केंद्र सरकार ने 2014-15 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क से 29,279 करोड़ और डीज़ल पर 42,881 करोड़ रुपये एकत्र किए थे।

दोनों को मिलाकर कुल आमदनी 72,160 करोड़ रुपए थी। यह मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला वित्त वर्ष था। 

मोदी सरकार के सात साल पूरे होते-होते वित्त वर्ष 2020-21 में पेट्रोल-डीज़ल पर संग्रह बढ़कर 5.25 लाख करोड़ रुपए हो गया।

आपदा में अवसर?

दरअसल आपदा में अवसर तलाशना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मूल मंत्र है।  

पिछले डेढ़ साल से हर कोई कोविड और ठप पड़े कामकाज से बुरी तरह परेशान है। बीच में ऐसा भी मौक़ा आया कि हर तरफ मौत का तांडव था। इसके बावजूद केंद्र को इनकम टैक्स से कहीं ज़्यादा पेट्रोल-डीज़ल पर कर से कमाई हुई है तो इसे पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक ही माना जाना चाहिए।

 

पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत पर निर्भर करती हैं। इनकी क़ीमतें बढ़ने पर अक्सर सरकार की तरफ़ से तर्क दिया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की क़ीमत बढ़ रही है इस लिए हमारे यहां पेट्रोल-डीज़ल महंगा हो रहा है। 

लेकिन हक़ीक़त इसके उलट है।

2014 में जब मोदी सरकार बनी थी तो कच्चे तेल की क़ीमत 105.52 डॉलर प्रति बैरल थी। तब पेट्रोल की क़ीमत 71 रुपए प्रति लीटर थी। आज कच्चे तेल की कीमत 73.3 डॉलर प्रति बैरल है, पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर का आँकड़ा पार गया है।

दरअसल कच्चे तेल की क़ीमतों में कमी का फ़ायदा आम आदमी को देने के बजाय मोदी सरकार उत्पाद शुल्क बढ़ाकर अपना ख़ज़ाना भर रही है। 2014 में दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की क़ीमत 71.41 रुपए थी। 

बेस प्राइस

इसमें 66% हिस्सा 47.12 रुपए पेट्रोल का बेस प्राइस था। केंद्र सरकार का उत्पाद शुल्क 14% के हिसाब से 10.39 रुपए और राज्य सरकार का वैट 17% के हिसाब से 11.90 रुपए था। 

आज पेट्रोल की क़ीमत में बेस प्राइस घटकर सिर्फ़ 38% यानी 35.63 रुपए रह गया है। उत्पाद शुल्क बढ़कर 32.90 रुपए यानी 35% और राज्य सरकार का 21.81 रुपए है जो कि 23% बैठता है। अलग-अलग राज्यों में वैट 21% से 25% तक है। 

उत्पाद शुल्क

मोदी सरकार बनने से पहले पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.48 रुपए और डीज़ल पर 3.56 रुपए था। आज यह पेट्रोल पर 32.90 और डीज़ल पर 31.80 रुपए है। ऐसा इसमें बेरहमी से बढ़ोतरी की वजह से हुआ है। मोदी सरकार ने आते ही इसे बढ़ाना शुरू किया। 2014 और 2016 के बीच इसमें बढ़ोतरी कम रही। 

लेकिन बाद में सरकार ने इसे बेरहमी से बढ़ाया। 2 अक्तूबर 2017 को इसमें दो रुपए की कटौती की गई। एक साल बाद फिर 1.50 रुपए की कटौती की गई। लेकिन जुलाई 2019 में फिर से दो रुपए बढ़ा दिए गए। 14 मार्च 2020 को पेट्रोल और डीज़ल दोनों पर उत्पाद शुल्क में 3 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई।

सरकार ने छह मई 2020 को रही सही कसर पूरी कर दी। पेट्रोल पर 10 रुपए और डीज़ल पर 13 रुपए उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया। यानी एक ही दिन में पेट्रोल 10 रुपए और डीड़ल 13 रुपए महंगा कर दिया। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम चल रही थीं।

यह वही दौर था जब देश भर में लागू लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में थे। काम काज ठप थे। ऐसे में आम जनता पर मोदी सरकार ने ये बड़ा बोझ़ डाला था। इसी वजह से गुजरे वित्त वर्ष में सरकार को पेट्रोल-डीज़ल से सबसे ज़्यादा कमाई हुई है।

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान मार्च और अप्रैल में एक बार भी पेट्रोल-डीज़ल के दाम नहीं बढे। 2 मई को चुनावों के नतीजे आए और 4 मई से दाम बढ़ने शुरू हो गए। तब से अब तक 30 बार दाम बढ़ चुके हैं। 16 बार मई में और 14 बार जून में।

इस दौरान पेट्रोल की क़ीमत में 7.36 रुपए और 7.57 रुपए का इज़ाफ़ा हो चुका है। देश के 250 से ज़्यादा ज़िलों में पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर के पार बिक रहा है। पाँच ज़िलों में डीज़ल भी 100 रुपए के पार पहुँच गया है। आर्थिक मामलों के जानकार जल्द ही पेट्रोल की क़ीमत सवा सौ रुपए के पार पहुँचने की आशंका जता रहे हैं। मोदी है तो यह भी मुमकिन है।  

और बढ़ेंगी कीमतें?

 

निकट भविष्य में पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों की बढ़ती रफ़्तार पर ब्रेक लगने के कोई आसार नहीं हैं। रिज़र्व बैंक की बार-बार नसीहत के बावजूद केंद्र सरकार पेट्रोल-डीज़ल पर उत्पाद शुल्क में कटौती से साफ़ इंकार कर चुकी है। राज्य सरकारें भी फ़िलहाल आम जनता को किसी तरह की राहत देने में मूड में नहीं हैं।

फ़िलहाल केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल-डीज़ल के सहारे ख़ज़ाना भरने को ही तरजीह दे रही हैं। जब जनता भी महंगा पेट्रोल-डीज़ल खरीदने को राष्ट्रवादी नज़रिए से देखेगी तो भला सरकारों को भला क्या पड़ी है कि वे महंगाई से लगातार टूटती आम जनता की कमर पर मरहाम लगाने के बारे में सोचे!